[ऋषि- इन्द्र मुष्कवान् । देवता- इन्द्र । छन्द- जगती ।]
9191
अस्मिन्न इन्द्र पृत्सुतौ यशस्वति शिमीवती क्रन्दसि प्राव सातये ।
यत्र घोषाता धृषितेषु खादिषु विष्वक्पतन्ति दिद्यवो नृषाह्ये ॥1॥
आदित्य - देव अति तेजस्वी हैं शौर्य - धैर्य से हैं भर- पूर ।
वे हम सबकी रक्षा करते दुनियॉ भर में हैं मशहूर ॥1॥
9192
स नः क्षुमन्तं सदने व्यूर्णुहि गोअर्णसं रयिमिन्द्र सश्रवाय्यम् ।
स्याम ते जयतः शक्र मेदिनो यथा वयमुश्मसि तद्वसो कृधि॥2॥
मेरा अभीष्ट मिल जाए प्रभु - वर संकल्प - शक्ति मुझको देना ।
हे प्रभु अन्न - धान तुम देना आत्मीय समझ अपना लेना ॥2॥
9193
यो नो दास आर्यो वा पुरुष्टुतादेव इन्द्र युधये चिकेतति ।
अस्माभिष्टे सुषहा:सन्तु शत्रवस्त्वया वयं तान्वनुयाम सङ्गमे॥3॥
हे पावन - प्रभु तुम प्रणम्य हो हम सब गौरव - पथ पर जायें ।
हमको हरदम जीत मिले प्रभु हम यश- धन सब कुछ पायें॥3॥
9194
यो दभ्रेभिर्हव्यो यश्च भूरिभिर्यो अभीके वरिवोविन्नृषाह्ये ।
तं विखादे सस्निमद्य श्रुतं नरमर्वाञ्चमिन्द्रमवसे करामहे॥4॥
तुम जन- प्रिय हो सूर्य - देवता तुम ही जगती के पालक हो ।
सज्जन की रक्षा करते हो असुरों के तुम संहारक हो ॥4॥
9195
स्ववृजं हि त्वामहमिन्द्र शुश्रवानानुदं वृषभ रध्रचोदनम् ।
प्र मुञ्चस्व परि कुत्सादिहा गहि किमु त्वावानन्मुष्कयोर्बध्द आसते॥5॥
हे पूजनीय तुम ही वरेण्य हो तुम ही तो प्रभु मेरे प्रेरक हो ।
प्रभु पावन - पथ पर पहुँचाना तुम ही तो मेरे रक्षक हो ॥5॥
9191
अस्मिन्न इन्द्र पृत्सुतौ यशस्वति शिमीवती क्रन्दसि प्राव सातये ।
यत्र घोषाता धृषितेषु खादिषु विष्वक्पतन्ति दिद्यवो नृषाह्ये ॥1॥
आदित्य - देव अति तेजस्वी हैं शौर्य - धैर्य से हैं भर- पूर ।
वे हम सबकी रक्षा करते दुनियॉ भर में हैं मशहूर ॥1॥
9192
स नः क्षुमन्तं सदने व्यूर्णुहि गोअर्णसं रयिमिन्द्र सश्रवाय्यम् ।
स्याम ते जयतः शक्र मेदिनो यथा वयमुश्मसि तद्वसो कृधि॥2॥
मेरा अभीष्ट मिल जाए प्रभु - वर संकल्प - शक्ति मुझको देना ।
हे प्रभु अन्न - धान तुम देना आत्मीय समझ अपना लेना ॥2॥
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यो नो दास आर्यो वा पुरुष्टुतादेव इन्द्र युधये चिकेतति ।
अस्माभिष्टे सुषहा:सन्तु शत्रवस्त्वया वयं तान्वनुयाम सङ्गमे॥3॥
हे पावन - प्रभु तुम प्रणम्य हो हम सब गौरव - पथ पर जायें ।
हमको हरदम जीत मिले प्रभु हम यश- धन सब कुछ पायें॥3॥
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यो दभ्रेभिर्हव्यो यश्च भूरिभिर्यो अभीके वरिवोविन्नृषाह्ये ।
तं विखादे सस्निमद्य श्रुतं नरमर्वाञ्चमिन्द्रमवसे करामहे॥4॥
तुम जन- प्रिय हो सूर्य - देवता तुम ही जगती के पालक हो ।
सज्जन की रक्षा करते हो असुरों के तुम संहारक हो ॥4॥
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स्ववृजं हि त्वामहमिन्द्र शुश्रवानानुदं वृषभ रध्रचोदनम् ।
प्र मुञ्चस्व परि कुत्सादिहा गहि किमु त्वावानन्मुष्कयोर्बध्द आसते॥5॥
हे पूजनीय तुम ही वरेण्य हो तुम ही तो प्रभु मेरे प्रेरक हो ।
प्रभु पावन - पथ पर पहुँचाना तुम ही तो मेरे रक्षक हो ॥5॥
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.02.2014) को " सर्दी गयी वसंत आया (चर्चा -1515)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
ReplyDeleteहे पूजनीय तुम ही वरेण्य हो तुम ही तो प्रभु मेरे प्रेरक हो ।
ReplyDeleteप्रभु पावन - पथ पर पहुँचाना तुम ही तो मेरे रक्षक हो ॥5॥
प्रभु के अलावा और कौन हमारा मार्गदर्शक बन सकता है..
सुन्दर अनुवाद
ReplyDeleteखूबसूरत...
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