Thursday, 6 February 2014

सूक्त - 38

[ऋषि- इन्द्र मुष्कवान् । देवता- इन्द्र । छन्द- जगती ।]

9191
अस्मिन्न इन्द्र पृत्सुतौ यशस्वति शिमीवती क्रन्दसि प्राव सातये ।
यत्र  घोषाता  धृषितेषु  खादिषु  विष्वक्पतन्ति  दिद्यवो नृषाह्ये ॥1॥

आदित्य - देव  अति  तेजस्वी  हैं  शौर्य - धैर्य  से  हैं  भर- पूर ।
वे  हम  सबकी  रक्षा  करते  दुनियॉ   भर   में   हैं   मशहूर ॥1॥

9192
स  नः क्षुमन्तं सदने व्यूर्णुहि गोअर्णसं रयिमिन्द्र सश्रवाय्यम् ।
स्याम ते जयतः शक्र मेदिनो यथा वयमुश्मसि तद्वसो कृधि॥2॥

मेरा अभीष्ट  मिल  जाए  प्रभु - वर संकल्प - शक्ति मुझको देना ।
हे  प्रभु अन्न - धान  तुम देना आत्मीय समझ अपना लेना ॥2॥

9193
यो   नो   दास   आर्यो   वा   पुरुष्टुतादेव  इन्द्र  युधये  चिकेतति ।
अस्माभिष्टे सुषहा:सन्तु शत्रवस्त्वया वयं तान्वनुयाम सङ्गमे॥3॥ 

हे  पावन - प्रभु  तुम  प्रणम्य  हो  हम सब गौरव - पथ पर जायें ।
हमको  हरदम  जीत  मिले  प्रभु हम यश- धन सब कुछ पायें॥3॥

9194
यो  दभ्रेभिर्हव्यो  यश्च  भूरिभिर्यो  अभीके  वरिवोविन्नृषाह्ये ।
तं  विखादे  सस्निमद्य श्रुतं  नरमर्वाञ्चमिन्द्रमवसे करामहे॥4॥

तुम जन- प्रिय हो सूर्य - देवता तुम  ही  जगती  के  पालक  हो ।
सज्जन   की  रक्षा  करते  हो  असुरों  के  तुम  संहारक  हो ॥4॥ 

9195
स्ववृजं  हि  त्वामहमिन्द्र  शुश्रवानानुदं  वृषभ  रध्रचोदनम् ।
प्र मुञ्चस्व परि कुत्सादिहा गहि किमु त्वावानन्मुष्कयोर्बध्द आसते॥5॥

हे  पूजनीय  तुम  ही  वरेण्य  हो तुम ही तो प्रभु मेरे प्रेरक हो ।
प्रभु  पावन - पथ  पर  पहुँचाना  तुम ही तो मेरे रक्षक हो ॥5॥   

4 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.02.2014) को " सर्दी गयी वसंत आया (चर्चा -1515)" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

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  2. हे पूजनीय तुम ही वरेण्य हो तुम ही तो प्रभु मेरे प्रेरक हो ।
    प्रभु पावन - पथ पर पहुँचाना तुम ही तो मेरे रक्षक हो ॥5॥

    प्रभु के अलावा और कौन हमारा मार्गदर्शक बन सकता है..

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