[ऋषि- रक्षा कवच । देवता- आपो देवता । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9093
प्र देवत्रा ब्रह्मणे गातुरेत्वपो अच्छा मनसो न प्रयुक्ति ।
महीं मित्रस्य वरुणस्य धासिं पृथुज्रयसे रीरधा सोवृक्ति॥1॥
मन की गति से पूजन पहुँचे यज्ञ-भोग का हो विस्तार ।
भाव-सहित उस परमेश्वर को मनुज नमन कर बारम्बार॥1॥
9094
अध्वर्यवो हविष्मन्तो हि भूताच्छाप इतोशतीरुशन्तः ।
अव याश्चष्टे अरुणः सुपर्णस्तमास्यध्वमूर्मिमद्या सुहस्ता:॥2॥
हविष्यान्न हो प्रचुर धरा पर जी लें हम भी सुखमय जीवन ।
रवि-रश्मि युक्त यह ऊर्मि सुनहरी हे यज्ञदेव अर्पित है तन-मन॥2॥
9095
अध्वर्यवोSप इता समुद्रमपां नपातं हविषा यजध्वम् ।
स वो दददूर्मिमद्या सुपूतं तस्मै सोमं मधुमन्तं सुनोत॥3॥
ओ आदित्य- देवता आओ करते हैं हम सब आवाहन ।
तुम्हें सोम अर्पित करते हैं सेवा में अर्पित पावन-मन॥3॥
9096
यो अनिध्मो दीदयदप्स्व1न्तर्यं विप्रास ईळते अध्वरेषु ।
अपां नपान्मधुमतीरपो दा याभिरिन्द्रो वावृधे वीर्याय॥4॥
हे सूर्यदेव तुम ही प्रणम्य हो तुम देते रिमझिम बरसात ।
अन्न फूल फल खाते हैं और खिल उठता है पात-पात॥4॥
9097
याभिः सोमो मोदते हर्षते च कल्याणीभिर्युवतिभिर्न मर्यः।
ता अध्वर्यो अपो अच्छा परेहि यदासिञ्चा ओषधीभिःपुनीतात्॥5॥
औषधियों का मान बढाओ पुनर्नवा होती है काया ।
हर पौधा औषधि है जिसने निर्बल-तन को सबल बनाया॥5॥
9098
एवेद्यूने युवतयो नमन्त यदीमुशन्नुशतीरेत्यच्छ ।
सं जानते मनसा सं चिकित्रेSध्वर्यवो धिषणापश्च देवीः॥6॥
जल जीवन है हम यह जानें वर्षा-जल का कर लें सञ्चय ।
नदी-जलाशय स्वच्छ रखें हम हमको लाभ मिलेगा निश्चय॥6॥
9099
यो वो वृताभ्यो अकृणोदु लोकं यो वो मह्या अभिशस्तेरमुञ्चत्।
तस्मा इन्द्राय मधुमन्तभूर्मिं देवमादनं प्र हिणोतनापः ॥7॥
हे वरुण - देव तुम ही वरेण्य हो तुम्हें नमन करता संसार ।
जल की गरिमा महिमा अद्भुत जल ही है जगती का सार॥7॥
9100
प्रास्मै हिनोत मधुमन्तभूर्मिं गर्भो यो वः सिन्धवो मध्व उत्सः।
घृतपृष्ठमीड्यमध्वरेष्वापो रेवतीः शृणुता हवं मे ॥8॥
सरिता कल-कल ध्वनि करती है सागर सब रहते गम्भीर ।
तुम रिमझिम रव लेकर आते हर लेते हो सबका पीर ॥8॥
9101
तं सिन्धवो मत्सरमिन्द्रपानमूर्मिं प्र हेत य उभे इर्यति ।
मदच्युतमौशानं नभोजां परि त्रितन्तुं विचरन्तमुत्सम्॥9॥
रवि-रश्मि सहित सरितायें भी मधु-रव के सँग भाग रही हैं।
प्राण उदान सँग बहती है सबके मन को लुभा रही है ॥9॥
9102
आवर्वृततीरध नु द्विधारा गोषुयुधो न नियवं चरन्तीः ।
ऋषे जनित्रीर्भुवनस्य पत्नीरपो वन्दस्व सवृधः सयोनीः॥10॥
जल - धारा में सोम समाया औषधि ऑचल में लाई है ।
विविध गुणों की यह निधान हमको पोषित करने आई है॥10॥
9103
हिनोता नो अध्वरं देवयज्या हिनोत ब्रह्म सनये धनानाम् ।
ऋतस्य योगे वि ष्यध्वमूधः श्रुष्टीवरीर्भूतनास्मभ्यमापः॥11॥
हे प्रभु हमें समर्थ बनाओ वेद - ऋचाओं का दो ज्ञान ।
जीवन के अवरोध मिटाओ मन से मिटे तमस अज्ञान ॥11॥
9104
आपो रेवतीः क्षयथा हि वस्वः क्रतुं च भद्रं बिभृथामृतं च ।
रायश्च स्थ स्वपत्यस्य पत्नीः सरस्वती तद्गृणते वयो धात्॥12॥
वरुण - देव वैभव के स्वामी मिट जाए मन का अभिमान ।
सुख-संतति देना तुम प्रभुवर कलुष मिटा-कर देना ज्ञान॥12॥
9105
प्रति यदापो अदृश्रमायतीर्घृतं पयांसि बिभ्रतीर्मधूनि ।
अध्वर्युभिर्मनसा संविदाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तीः॥13॥
हे प्रभु जी यश - वैभव देना तुम ही रखते हो सबका ध्यान ।
मन-मति के प्रेरक बन जाओ भर दो देश-भूमि अभिमान॥13॥
9106
एमा अग्मन्रेवतीर्जीवधन्या अध्वर्यवः सादयता सखायः ।
नि बर्हिषि धत्तन सोम्यासोSपां नप्त्रा संविदानास एना:॥14॥
सभी सुखी हों सभी निरोगी जल की महिमा का हो गान ।
कुश-आसन पर सोम धरा है ग्रहण करो हे देव महान॥14॥
9107
आग्मन्नाप उशतीर्बहिरेदं न्यध्वरे असदन्देवयन्तीः ।
अध्वर्यवःसुनुतेन्द्राय सोममभूदु वःसुशका देवयज्या॥15॥
यज्ञ - वेदिका के समीप ही जल से भरा कलश धर - कर ।
करते हैं हम जल की पूजा हे प्रभु वरुण अनुग्रह कर ॥15॥
9093
प्र देवत्रा ब्रह्मणे गातुरेत्वपो अच्छा मनसो न प्रयुक्ति ।
महीं मित्रस्य वरुणस्य धासिं पृथुज्रयसे रीरधा सोवृक्ति॥1॥
मन की गति से पूजन पहुँचे यज्ञ-भोग का हो विस्तार ।
भाव-सहित उस परमेश्वर को मनुज नमन कर बारम्बार॥1॥
9094
अध्वर्यवो हविष्मन्तो हि भूताच्छाप इतोशतीरुशन्तः ।
अव याश्चष्टे अरुणः सुपर्णस्तमास्यध्वमूर्मिमद्या सुहस्ता:॥2॥
हविष्यान्न हो प्रचुर धरा पर जी लें हम भी सुखमय जीवन ।
रवि-रश्मि युक्त यह ऊर्मि सुनहरी हे यज्ञदेव अर्पित है तन-मन॥2॥
9095
अध्वर्यवोSप इता समुद्रमपां नपातं हविषा यजध्वम् ।
स वो दददूर्मिमद्या सुपूतं तस्मै सोमं मधुमन्तं सुनोत॥3॥
ओ आदित्य- देवता आओ करते हैं हम सब आवाहन ।
तुम्हें सोम अर्पित करते हैं सेवा में अर्पित पावन-मन॥3॥
9096
यो अनिध्मो दीदयदप्स्व1न्तर्यं विप्रास ईळते अध्वरेषु ।
अपां नपान्मधुमतीरपो दा याभिरिन्द्रो वावृधे वीर्याय॥4॥
हे सूर्यदेव तुम ही प्रणम्य हो तुम देते रिमझिम बरसात ।
अन्न फूल फल खाते हैं और खिल उठता है पात-पात॥4॥
9097
याभिः सोमो मोदते हर्षते च कल्याणीभिर्युवतिभिर्न मर्यः।
ता अध्वर्यो अपो अच्छा परेहि यदासिञ्चा ओषधीभिःपुनीतात्॥5॥
औषधियों का मान बढाओ पुनर्नवा होती है काया ।
हर पौधा औषधि है जिसने निर्बल-तन को सबल बनाया॥5॥
9098
एवेद्यूने युवतयो नमन्त यदीमुशन्नुशतीरेत्यच्छ ।
सं जानते मनसा सं चिकित्रेSध्वर्यवो धिषणापश्च देवीः॥6॥
जल जीवन है हम यह जानें वर्षा-जल का कर लें सञ्चय ।
नदी-जलाशय स्वच्छ रखें हम हमको लाभ मिलेगा निश्चय॥6॥
9099
यो वो वृताभ्यो अकृणोदु लोकं यो वो मह्या अभिशस्तेरमुञ्चत्।
तस्मा इन्द्राय मधुमन्तभूर्मिं देवमादनं प्र हिणोतनापः ॥7॥
हे वरुण - देव तुम ही वरेण्य हो तुम्हें नमन करता संसार ।
जल की गरिमा महिमा अद्भुत जल ही है जगती का सार॥7॥
9100
प्रास्मै हिनोत मधुमन्तभूर्मिं गर्भो यो वः सिन्धवो मध्व उत्सः।
घृतपृष्ठमीड्यमध्वरेष्वापो रेवतीः शृणुता हवं मे ॥8॥
सरिता कल-कल ध्वनि करती है सागर सब रहते गम्भीर ।
तुम रिमझिम रव लेकर आते हर लेते हो सबका पीर ॥8॥
9101
तं सिन्धवो मत्सरमिन्द्रपानमूर्मिं प्र हेत य उभे इर्यति ।
मदच्युतमौशानं नभोजां परि त्रितन्तुं विचरन्तमुत्सम्॥9॥
रवि-रश्मि सहित सरितायें भी मधु-रव के सँग भाग रही हैं।
प्राण उदान सँग बहती है सबके मन को लुभा रही है ॥9॥
9102
आवर्वृततीरध नु द्विधारा गोषुयुधो न नियवं चरन्तीः ।
ऋषे जनित्रीर्भुवनस्य पत्नीरपो वन्दस्व सवृधः सयोनीः॥10॥
जल - धारा में सोम समाया औषधि ऑचल में लाई है ।
विविध गुणों की यह निधान हमको पोषित करने आई है॥10॥
9103
हिनोता नो अध्वरं देवयज्या हिनोत ब्रह्म सनये धनानाम् ।
ऋतस्य योगे वि ष्यध्वमूधः श्रुष्टीवरीर्भूतनास्मभ्यमापः॥11॥
हे प्रभु हमें समर्थ बनाओ वेद - ऋचाओं का दो ज्ञान ।
जीवन के अवरोध मिटाओ मन से मिटे तमस अज्ञान ॥11॥
9104
आपो रेवतीः क्षयथा हि वस्वः क्रतुं च भद्रं बिभृथामृतं च ।
रायश्च स्थ स्वपत्यस्य पत्नीः सरस्वती तद्गृणते वयो धात्॥12॥
वरुण - देव वैभव के स्वामी मिट जाए मन का अभिमान ।
सुख-संतति देना तुम प्रभुवर कलुष मिटा-कर देना ज्ञान॥12॥
9105
प्रति यदापो अदृश्रमायतीर्घृतं पयांसि बिभ्रतीर्मधूनि ।
अध्वर्युभिर्मनसा संविदाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तीः॥13॥
हे प्रभु जी यश - वैभव देना तुम ही रखते हो सबका ध्यान ।
मन-मति के प्रेरक बन जाओ भर दो देश-भूमि अभिमान॥13॥
9106
एमा अग्मन्रेवतीर्जीवधन्या अध्वर्यवः सादयता सखायः ।
नि बर्हिषि धत्तन सोम्यासोSपां नप्त्रा संविदानास एना:॥14॥
सभी सुखी हों सभी निरोगी जल की महिमा का हो गान ।
कुश-आसन पर सोम धरा है ग्रहण करो हे देव महान॥14॥
9107
आग्मन्नाप उशतीर्बहिरेदं न्यध्वरे असदन्देवयन्तीः ।
अध्वर्यवःसुनुतेन्द्राय सोममभूदु वःसुशका देवयज्या॥15॥
यज्ञ - वेदिका के समीप ही जल से भरा कलश धर - कर ।
करते हैं हम जल की पूजा हे प्रभु वरुण अनुग्रह कर ॥15॥
जल जीवन है हम यह जानें वर्षा-जल का कर लें सञ्चय ।
ReplyDeleteनदी-जलाशय स्वच्छ रखें हम हमको लाभ मिलेगा निश्चय॥6॥
जलदेव को नमन...सुंदर संदेश देती पंक्तियाँ !