Friday, 14 February 2014

सूक्त - 30

[ऋषि- रक्षा कवच । देवता- आपो देवता । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

9093
प्र  देवत्रा  ब्रह्मणे  गातुरेत्वपो  अच्छा  मनसो  न  प्रयुक्ति ।
महीं मित्रस्य वरुणस्य धासिं पृथुज्रयसे रीरधा सोवृक्ति॥1॥

मन  की  गति  से  पूजन  पहुँचे  यज्ञ-भोग का हो विस्तार ।
भाव-सहित उस परमेश्वर को मनुज नमन कर बारम्बार॥1॥

9094
अध्वर्यवो   हविष्मन्तो   हि   भूताच्छाप   इतोशतीरुशन्तः ।
अव याश्चष्टे अरुणः सुपर्णस्तमास्यध्वमूर्मिमद्या सुहस्ता:॥2॥

हविष्यान्न  हो  प्रचुर  धरा पर जी लें हम भी सुखमय जीवन ।
रवि-रश्मि युक्त यह ऊर्मि सुनहरी हे यज्ञदेव अर्पित है तन-मन॥2॥

9095
अध्वर्यवोSप  इता  समुद्रमपां  नपातं  हविषा  यजध्वम् ।
स वो दददूर्मिमद्या सुपूतं तस्मै सोमं मधुमन्तं सुनोत॥3॥

ओ  आदित्य- देवता  आओ  करते  हैं हम सब आवाहन ।
तुम्हें सोम अर्पित करते हैं सेवा में अर्पित पावन-मन॥3॥

9096
यो  अनिध्मो  दीदयदप्स्व1न्तर्यं  विप्रास  ईळते अध्वरेषु ।
अपां  नपान्मधुमतीरपो  दा याभिरिन्द्रो वावृधे वीर्याय॥4॥

हे  सूर्यदेव  तुम ही प्रणम्य हो तुम देते रिमझिम बरसात ।
अन्न फूल फल खाते  हैं और खिल उठता है पात-पात॥4॥

9097
याभिः  सोमो  मोदते  हर्षते   च  कल्याणीभिर्युवतिभिर्न   मर्यः।
ता अध्वर्यो अपो अच्छा परेहि यदासिञ्चा ओषधीभिःपुनीतात्॥5॥

औषधियों   का   मान   बढाओ   पुनर्नवा  होती  है   काया ।
हर पौधा औषधि है जिसने निर्बल-तन को सबल बनाया॥5॥

9098
एवेद्यूने     युवतयो     नमन्त     यदीमुशन्नुशतीरेत्यच्छ ।
सं जानते मनसा सं चिकित्रेSध्वर्यवो धिषणापश्च देवीः॥6॥

जल  जीवन  है  हम  यह  जानें वर्षा-जल का कर लें सञ्चय ।
नदी-जलाशय स्वच्छ रखें हम हमको लाभ मिलेगा निश्चय॥6॥

9099
यो वो वृताभ्यो अकृणोदु लोकं यो वो मह्या अभिशस्तेरमुञ्चत्।
तस्मा  इन्द्राय  मधुमन्तभूर्मिं  देवमादनं  प्र हिणोतनापः ॥7॥

हे  वरुण - देव  तुम  ही  वरेण्य  हो तुम्हें नमन करता संसार ।
जल  की  गरिमा  महिमा अद्भुत जल ही है जगती का सार॥7॥

9100
प्रास्मै हिनोत मधुमन्तभूर्मिं गर्भो यो वः सिन्धवो मध्व उत्सः।
घृतपृष्ठमीड्यमध्वरेष्वापो   रेवतीः   शृणुता   हवं   मे  ॥8॥ 

सरिता कल-कल ध्वनि करती है सागर सब रहते गम्भीर ।
तुम  रिमझिम  रव  लेकर आते हर लेते हो सबका पीर ॥8॥

9101
तं  सिन्धवो  मत्सरमिन्द्रपानमूर्मिं  प्र  हेत  य उभे इर्यति ।
मदच्युतमौशानं नभोजां परि त्रितन्तुं विचरन्तमुत्सम्॥9॥

रवि-रश्मि सहित सरितायें भी मधु-रव के सँग भाग रही हैं।
प्राण  उदान  सँग  बहती है सबके मन को लुभा रही है ॥9॥

9102
आवर्वृततीरध  नु  द्विधारा  गोषुयुधो  न  नियवं  चरन्तीः ।
ऋषे जनित्रीर्भुवनस्य पत्नीरपो वन्दस्व सवृधः सयोनीः॥10॥

जल - धारा  में  सोम  समाया  औषधि  ऑचल  में  लाई  है ।
विविध गुणों की यह निधान हमको पोषित करने आई है॥10॥ 

9103
हिनोता  नो  अध्वरं  देवयज्या  हिनोत  ब्रह्म सनये धनानाम् ।
ऋतस्य योगे वि ष्यध्वमूधः श्रुष्टीवरीर्भूतनास्मभ्यमापः॥11॥

हे  प्रभु  हमें  समर्थ  बनाओ  वेद - ऋचाओं  का  दो  ज्ञान ।
जीवन के अवरोध मिटाओ मन से मिटे तमस अज्ञान ॥11॥

9104
आपो  रेवतीः  क्षयथा  हि  वस्वः  क्रतुं  च  भद्रं  बिभृथामृतं च ।
रायश्च स्थ स्वपत्यस्य पत्नीः सरस्वती तद्गृणते वयो धात्॥12॥

वरुण - देव  वैभव  के  स्वामी  मिट  जाए  मन का अभिमान ।
सुख-संतति देना तुम प्रभुवर कलुष मिटा-कर देना ज्ञान॥12॥

9105
प्रति   यदापो  अदृश्रमायतीर्घृतं   पयांसि   बिभ्रतीर्मधूनि ।
अध्वर्युभिर्मनसा संविदाना इन्द्राय सोमं सुषुतं भरन्तीः॥13॥

हे  प्रभु  जी  यश - वैभव  देना तुम ही रखते हो सबका ध्यान ।
मन-मति के प्रेरक बन जाओ भर दो देश-भूमि अभिमान॥13॥

9106
एमा अग्मन्रेवतीर्जीवधन्या अध्वर्यवः सादयता सखायः ।
नि बर्हिषि धत्तन सोम्यासोSपां नप्त्रा संविदानास एना:॥14॥

सभी सुखी हों सभी निरोगी जल की महिमा का हो गान ।
कुश-आसन पर सोम धरा है ग्रहण करो हे देव महान॥14॥ 

9107
आग्मन्नाप   उशतीर्बहिरेदं   न्यध्वरे   असदन्देवयन्तीः ।
अध्वर्यवःसुनुतेन्द्राय सोममभूदु वःसुशका देवयज्या॥15॥

यज्ञ - वेदिका के समीप ही जल से भरा कलश धर - कर ।
करते हैं हम जल की पूजा हे प्रभु वरुण अनुग्रह कर ॥15॥    
        

1 comment:

  1. जल जीवन है हम यह जानें वर्षा-जल का कर लें सञ्चय ।
    नदी-जलाशय स्वच्छ रखें हम हमको लाभ मिलेगा निश्चय॥6॥

    जलदेव को नमन...सुंदर संदेश देती पंक्तियाँ !

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