[ऋषि- विमद ऐन्द्र । देवता- इन्द्र । छन्द- जगती- त्रिष्टुप्- अभिसारिणी ।]
9016
यजामह इन्द्रं वज्रदक्षिणं हरीणां रथ्यं1 विव्रतानाम् ।
प्र श्मश्रु दोधुवदूर्ध्वथा भूद्वि सेनाभिर्दयमानो वि राधसा॥1॥
हे प्रभु तुम यश - वैभव देना सदा हमारी रक्षा करना ।
सत्पथ पर ही हम चलते हैं धन-धान हमें देते रहना॥1॥
9017
हरी न्यस्य या वने विदे वस्विन्द्रो मघैर्मघवा वृत्रहा भुवत् ।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षा:पत्यते शवोSव क्ष्णौमि दासस्य नाम चित्॥2॥
इन्द्र - देव अति तेजस्वी हैं दुष्टों को दण्ड वही देते हैं ।
भूल से कोई भूल हो जाए अपने - पन से अपनाते हैं॥2॥
9018
यदा वज्रं हिरण्यमिदथा रथं हरी यमस्य वहतो वि सूरिभिः ।
आ तिष्ठति मघवा सनश्रुत इन्द्रो वाजस्य दीर्घश्रवसस्पतिः॥3॥
तुम यश - वैभव के स्वामी हो वरद - हस्त हम पर रखना ।
बार - बार तुम हमें सिखाना कर्म - योग पथ पर चलना ॥3॥
9019
सो चिन्नु वृष्टिर्यूथ्या3 स्वा सचॉ इन्द्रः श्मश्रूणि हरिताभि प्रष्णुते।
अव वेति सुक्षयं सुते मधूदिद्दधूनोति वातो यथा वनम् ॥4॥
रिमझिम बरसात तुम्हीं देते हो बारिश की है बात निराली ।
धरा भीग - कर उर्वर होती पृथ्वी पर आती हरियाली ॥4॥
9020
यो वाचा विवाचो मृध्रवाचः पुरू सहस्त्राशिवा जघान ।
तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसि पितेव यस्तविषीं वावृधे शवः॥5॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है तुम्हीं हमारी रक्षा करना ।
इन्द्र - देव तुम पिता-सदृश हो तुम ही सबकी पीडा हरना ॥5॥
9021
स्तोमं त इन्द्र विमदा अजीजनन्नपूर्व्यं पुरुतमं सुदानवे ।
विद्मा ह्यस्य भोजनमिनस्य यदा पशुं न गोपा: करामहे॥6॥
तुम धन - वैभव के स्वामी हो हमको भी देना धन-धान ।
अति-आत्मीय तुम्हीं लगते हो वेद-ऋचाओं का दो ज्ञान॥6॥
9022
माकिर्न एना सख्या वि यौषुस्तव चेन्द्र विमदस्य च ऋषेः।
विद्मा हि ते प्रमतिं देव जामिवदस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि॥7॥
अति - प्रिय सखा सदा तुम मेरे सख्य-भाव यह रहे निरन्तर ।
बनें प्रेरणा एक - दूजे के प्रेरित करते रहें परस्पर ॥7॥
9016
यजामह इन्द्रं वज्रदक्षिणं हरीणां रथ्यं1 विव्रतानाम् ।
प्र श्मश्रु दोधुवदूर्ध्वथा भूद्वि सेनाभिर्दयमानो वि राधसा॥1॥
हे प्रभु तुम यश - वैभव देना सदा हमारी रक्षा करना ।
सत्पथ पर ही हम चलते हैं धन-धान हमें देते रहना॥1॥
9017
हरी न्यस्य या वने विदे वस्विन्द्रो मघैर्मघवा वृत्रहा भुवत् ।
ऋभुर्वाज ऋभुक्षा:पत्यते शवोSव क्ष्णौमि दासस्य नाम चित्॥2॥
इन्द्र - देव अति तेजस्वी हैं दुष्टों को दण्ड वही देते हैं ।
भूल से कोई भूल हो जाए अपने - पन से अपनाते हैं॥2॥
9018
यदा वज्रं हिरण्यमिदथा रथं हरी यमस्य वहतो वि सूरिभिः ।
आ तिष्ठति मघवा सनश्रुत इन्द्रो वाजस्य दीर्घश्रवसस्पतिः॥3॥
तुम यश - वैभव के स्वामी हो वरद - हस्त हम पर रखना ।
बार - बार तुम हमें सिखाना कर्म - योग पथ पर चलना ॥3॥
9019
सो चिन्नु वृष्टिर्यूथ्या3 स्वा सचॉ इन्द्रः श्मश्रूणि हरिताभि प्रष्णुते।
अव वेति सुक्षयं सुते मधूदिद्दधूनोति वातो यथा वनम् ॥4॥
रिमझिम बरसात तुम्हीं देते हो बारिश की है बात निराली ।
धरा भीग - कर उर्वर होती पृथ्वी पर आती हरियाली ॥4॥
9020
यो वाचा विवाचो मृध्रवाचः पुरू सहस्त्राशिवा जघान ।
तत्तदिदस्य पौंस्यं गृणीमसि पितेव यस्तविषीं वावृधे शवः॥5॥
दुष्ट - दमन अति आवश्यक है तुम्हीं हमारी रक्षा करना ।
इन्द्र - देव तुम पिता-सदृश हो तुम ही सबकी पीडा हरना ॥5॥
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स्तोमं त इन्द्र विमदा अजीजनन्नपूर्व्यं पुरुतमं सुदानवे ।
विद्मा ह्यस्य भोजनमिनस्य यदा पशुं न गोपा: करामहे॥6॥
तुम धन - वैभव के स्वामी हो हमको भी देना धन-धान ।
अति-आत्मीय तुम्हीं लगते हो वेद-ऋचाओं का दो ज्ञान॥6॥
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माकिर्न एना सख्या वि यौषुस्तव चेन्द्र विमदस्य च ऋषेः।
विद्मा हि ते प्रमतिं देव जामिवदस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि॥7॥
अति - प्रिय सखा सदा तुम मेरे सख्य-भाव यह रहे निरन्तर ।
बनें प्रेरणा एक - दूजे के प्रेरित करते रहें परस्पर ॥7॥
जीवन के सुन्दर भाव
ReplyDeleteकाश हम सत्पथ पर ही चलें !
ReplyDeleteमंगलकामनाएं आपको !
ऋग्वेद हम शायद ही कभी पढ़ पाते , आपकी कृपा से समझ भी लिया !!
ReplyDeleteअति - प्रिय सखा सदा तुम मेरे सख्य-भाव यह रहे निरन्तर ।
ReplyDeleteबनें प्रेरणा एक - दूजे के प्रेरित करते रहें परस्पर ॥7॥
परम सखा को नमन !
बहुत खूबसूरत...
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