Wednesday 26 February 2014

सूक्त -19

[ऋषि- मथित यामायन । देवता- गो- माता । छन्द- अनुष्टुप्- गायत्री ।]

8975
नि  वर्तध्वं  मानु गातास्मान्त्सिषक्त रेवतीः ।
अग्नीषोमा पुनर्वसू अस्मे धारयतं रयिम्॥1॥

हे गो - माता तुम लक्ष्मी हो घर को तुम सम्पन्न  बनाओ ।
सुधा-सदृश गो-रस तुम दे दो यश पाने का मंत्र बताओ॥1॥

8976
पुनरेना   नि   वर्तय   पुनरेना   न्या   कुरु ।
इन्द्र एणा नि यच्छत्वग्निरेना उपाजतु॥2॥

प्रतिदिन गो  मॉ  का दर्शन हो हरी - दूब हम नित्य खिलायें ।
गो-रस का सेवन करें निरन्तर गो-रस से हर रोग मिटायें॥2॥

8977
पुनरेता नि वर्तन्तामस्मिन्पुष्यन्तु गोपतौ ।
इहैवाग्ने  नि  धारयेह  तिष्ठतु  या  रयिः ॥3॥

गो - माता  की करें सुरक्षा नित्य समय पर दें जल - भोजन ।
सदा रहें वे स्वस्थ प्रफुल्लित यह जीवन बन जाए उपवन॥3॥

8978
यन्नियानं  न्ययनं संज्ञानं यत्परायणम् ।
आवर्तनं निवर्तनं यो गोपा अपि तं हुवे॥4॥

हे  गो - रक्षक  तुम  वरेण्य  हो गो-माता का रखते हो ध्यान ।
प्रतिदिन गो-माई गो-चर जाए कभी न टूटे यह अभियान॥4॥

8979
य  उदानड्   व्ययनं  य   उदानट्   परायणम् ।
आवर्तनम् निवर्तनमपि गोपा नि वर्तताम्॥5॥

गोपाल  रिझाते  गो - माता  को  सँग - सँग  उनके  रहते  हैं ।
वंशी  की  तान  सुनाते  हैं  वे  देख-भाल उनकी  करते  हैं॥5॥

8980
आ निवर्त नि वर्तय पुनर्न इन्द्र गा देहि ।
जीवाभिर्भुनजामहै ॥6॥

हे  प्रभु  गो - माता  रक्षित  हों  घर  में  आए  धन और धान ।
सुख - वैभव  की  प्राप्ति  हमें  हो  करते  रहें सदा गो-दान॥6॥

8981
परि   वो   विश्वतो   दध   ऊर्जा   घृतेन   पयसा ।
ये देवा: के च यज्ञियास्ते रय्या सं सृजन्तु नः॥7॥

प्रभु गो-रस अर्पित करते  हैं  तुम  देते रहना अन्न और धान।
गो - माता  यश - वैभव  देतीं गो-माता हैं अत्यन्त महान॥7॥

8982
आ   निवर्तनं    वर्तय    नि   निवर्तन   वर्तय ।
भूम्याश्चतस्त्रःप्रदिशस्ताभ्य एना नि वर्तय॥8॥

गो - मॉ  का  दर्शन  नित्य  करें  इनके  बछडे  हों  तंदरुस्त ।
इनका वध करना बँद करो गो-वध की सभी कडी हो ध्वस्त॥8॥         

3 comments:

  1. गाय के सामाजिक महत्व को सिद्ध करती पंक्तियाँ

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  2. इन्हीं वजहों से गौ में तैतीस करोड़ देवताओं की संकल्पना की गयी है...सुंदर।

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  3. गो - माता की करें सुरक्षा नित्य समय पर दें जल - भोजन ।
    सदा रहें वे स्वस्थ प्रफुल्लित यह जीवन बन जाए उपवन॥3॥

    गायों का सम्मान हो रहा है भारत में युगों युगों से...सुंदर पंक्तियाँ !

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