[ऋषि- वत्सप्रि भालन्दन । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9260
दिवस्परि प्रथमं जज्ञे अग्निरस्मद् द्वितीयं परि जातवेदा:।
तृतीयमप्सु नृमणा अजस्त्रमिन्धान एनं जरते स्वाधीः॥1॥
अग्नि - देव के तीन रूप हैं अति-मोहक आदित्य-रूप है ।
पृथ्वी पर पार्थिव पावक है नभ में वह विद्युत अनूप है॥1॥
9261
विद्मा ते अग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा ।
विद्मा ते नाम परमं गुहा यद्विद्मा तमुत्सं यत आजगन्थ॥2॥
अग्नि - देव के तीन रूप की जिज्ञासा हरदम रहती है ।
भिन्न-भिन्न मौसम के कारण विविध रूप धरती धरती है॥2॥
9262
समुद्रे त्वा नृमणा अप्स्व1न्तर्नृचक्षा ईधे दिवो अग्न ऊधन् ।
तृतीये त्वा रजसि तस्थिवांसमपामुपस्थे महिषा अवर्धन्॥3॥
सागर में तुम बडवानल हो आकाश में तुम आदित्य देव हो ।
मेघों में तुम ही विद्युत हो तुम अद्भुत आराध्य देव हो॥3॥
9263
अक्रन्ददग्निः स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद्वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिध्दो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः॥4॥
आलोक - प्रदाता तुम हो भगवन हम सब तेरी महिमा गाते हैं ।
मेघ - सदृश है स्वर समीर का तुमसे पौधे अँकुर पाते हैं ॥4॥
9264
श्रीणामुदारो धरुणो रयीणां मनीषिणां प्रार्पणः सोमगोपा: ।
वसुः सूनुः सहसो अप्सु राजा वि भात्यग्र उषसामिधानः॥5॥
तुम यश - वैभव के स्वामी हो तुम औषधियों के रक्षक हो ।
हे अग्निदेव तुम महाबली हो तुम ही तो हवि के वाहक हो॥5॥
9265
विश्वस्य केतुर्भुवनस्य गर्भ आ रोदसी अपृणाज्जायमानः ।
वीळुं चिदद्रिमभिनत्परायञ्जना यदग्निमयजन्त पञ्च॥6॥
अग्नि - देवता तमस मिटाते आलोक-मशाल लिए चलते हैं ।
रिमझिम बरसात वही देते हैं हम सब उनकी पूजा करते हैं॥6॥
9266
उशिक्पावको अरतिः सुमेधा मर्तेष्वग्निरमृतो नि धायि ।
इर्यति धूममरुषं भरिभ्रदुच्छुक्रेण शोचिषा द्यामिनक्षन् ॥7॥
अग्नि - देवता तेजस्वी हैं सबको देते हैं हविष्यान्न ।
प्राण - प्रकाश वही देते हैं हमको देते हैं अन्न-धान ॥7॥
9267
दृशानो रुक्म उर्विया व्यद्यौद्दुर्मर्षमायुः श्रिये रुचानः ।
अग्निरमृतो अभवद्वयोभिर्यदेनं द्यौर्जनययत्सुरेता: ॥8॥
आदित्य-देव अति अद्भुत हैं वे सबको उपलब्ध सहज हैं ।
सुधा-सदृश हैं सूर्य-देवता सूर्य-किरण काश्मीरज है ॥8॥
9268
यस्ते अद्य कृणवद्भद्रशोचेSपूपं देव घृतवन्तमग्ने ।
प्र तं नय प्रतरं वस्यो अच्छाभि सुम्नं देवभक्तं यविष्ठ ॥9॥
अग्नि-देव की अद्भुत गरिमा हम उनका आवाहन करते हैं।
सुख सौभाग्य वही देते हैं वे ही सबकी पीडा हरते हैं ॥9॥
9269
आ तं भज सौश्रवसेष्वग्न उक्थउक्थ आ भज शस्यमाने ।
प्रियःसूर्ये प्रियो अग्ना भवात्युज्जातेन भिनददुज्जनित्वैः॥10॥
तुम ही सत्पथ पर ले जाते हवि-भोग सभी को पहुँचाते हो ।
तुम पूजनीय तुम ही प्रणम्य हो सब देकर भी सकुचाते हो॥10॥
9270
त्वामग्ने यजमाना अनु द्यून्विश्वा वसु दधिरे वार्याणि ।
त्वया सह द्रविणमिच्छमाना व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः॥11॥
बडे प्रेम से आहुति देते हम सब तेरी पूजा करते हैं ।
उनका अभीष्ट तुम पूरा करते जो सत्पथ पर चलते हैं ॥11॥
9271
अस्ताव्यग्निर्नरां सुशेवो वैश्वानर ऋषिभिः सोमगोपा: ।
अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम्॥12॥
जगती को सुख देने वाला सबकी ऑखों का तारा है ।
पूजनीय पावक प्रणम्य है हम सबका वही सहारा है ॥12॥
9260
दिवस्परि प्रथमं जज्ञे अग्निरस्मद् द्वितीयं परि जातवेदा:।
तृतीयमप्सु नृमणा अजस्त्रमिन्धान एनं जरते स्वाधीः॥1॥
अग्नि - देव के तीन रूप हैं अति-मोहक आदित्य-रूप है ।
पृथ्वी पर पार्थिव पावक है नभ में वह विद्युत अनूप है॥1॥
9261
विद्मा ते अग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा ।
विद्मा ते नाम परमं गुहा यद्विद्मा तमुत्सं यत आजगन्थ॥2॥
अग्नि - देव के तीन रूप की जिज्ञासा हरदम रहती है ।
भिन्न-भिन्न मौसम के कारण विविध रूप धरती धरती है॥2॥
9262
समुद्रे त्वा नृमणा अप्स्व1न्तर्नृचक्षा ईधे दिवो अग्न ऊधन् ।
तृतीये त्वा रजसि तस्थिवांसमपामुपस्थे महिषा अवर्धन्॥3॥
सागर में तुम बडवानल हो आकाश में तुम आदित्य देव हो ।
मेघों में तुम ही विद्युत हो तुम अद्भुत आराध्य देव हो॥3॥
9263
अक्रन्ददग्निः स्तनयन्निव द्यौः क्षामा रेरिहद्वीरुधः समञ्जन्।
सद्यो जज्ञानो वि हीमिध्दो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः॥4॥
आलोक - प्रदाता तुम हो भगवन हम सब तेरी महिमा गाते हैं ।
मेघ - सदृश है स्वर समीर का तुमसे पौधे अँकुर पाते हैं ॥4॥
9264
श्रीणामुदारो धरुणो रयीणां मनीषिणां प्रार्पणः सोमगोपा: ।
वसुः सूनुः सहसो अप्सु राजा वि भात्यग्र उषसामिधानः॥5॥
तुम यश - वैभव के स्वामी हो तुम औषधियों के रक्षक हो ।
हे अग्निदेव तुम महाबली हो तुम ही तो हवि के वाहक हो॥5॥
9265
विश्वस्य केतुर्भुवनस्य गर्भ आ रोदसी अपृणाज्जायमानः ।
वीळुं चिदद्रिमभिनत्परायञ्जना यदग्निमयजन्त पञ्च॥6॥
अग्नि - देवता तमस मिटाते आलोक-मशाल लिए चलते हैं ।
रिमझिम बरसात वही देते हैं हम सब उनकी पूजा करते हैं॥6॥
9266
उशिक्पावको अरतिः सुमेधा मर्तेष्वग्निरमृतो नि धायि ।
इर्यति धूममरुषं भरिभ्रदुच्छुक्रेण शोचिषा द्यामिनक्षन् ॥7॥
अग्नि - देवता तेजस्वी हैं सबको देते हैं हविष्यान्न ।
प्राण - प्रकाश वही देते हैं हमको देते हैं अन्न-धान ॥7॥
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दृशानो रुक्म उर्विया व्यद्यौद्दुर्मर्षमायुः श्रिये रुचानः ।
अग्निरमृतो अभवद्वयोभिर्यदेनं द्यौर्जनययत्सुरेता: ॥8॥
आदित्य-देव अति अद्भुत हैं वे सबको उपलब्ध सहज हैं ।
सुधा-सदृश हैं सूर्य-देवता सूर्य-किरण काश्मीरज है ॥8॥
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यस्ते अद्य कृणवद्भद्रशोचेSपूपं देव घृतवन्तमग्ने ।
प्र तं नय प्रतरं वस्यो अच्छाभि सुम्नं देवभक्तं यविष्ठ ॥9॥
अग्नि-देव की अद्भुत गरिमा हम उनका आवाहन करते हैं।
सुख सौभाग्य वही देते हैं वे ही सबकी पीडा हरते हैं ॥9॥
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आ तं भज सौश्रवसेष्वग्न उक्थउक्थ आ भज शस्यमाने ।
प्रियःसूर्ये प्रियो अग्ना भवात्युज्जातेन भिनददुज्जनित्वैः॥10॥
तुम ही सत्पथ पर ले जाते हवि-भोग सभी को पहुँचाते हो ।
तुम पूजनीय तुम ही प्रणम्य हो सब देकर भी सकुचाते हो॥10॥
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त्वामग्ने यजमाना अनु द्यून्विश्वा वसु दधिरे वार्याणि ।
त्वया सह द्रविणमिच्छमाना व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः॥11॥
बडे प्रेम से आहुति देते हम सब तेरी पूजा करते हैं ।
उनका अभीष्ट तुम पूरा करते जो सत्पथ पर चलते हैं ॥11॥
9271
अस्ताव्यग्निर्नरां सुशेवो वैश्वानर ऋषिभिः सोमगोपा: ।
अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम्॥12॥
जगती को सुख देने वाला सबकी ऑखों का तारा है ।
पूजनीय पावक प्रणम्य है हम सबका वही सहारा है ॥12॥
सागर में तुम बडवानल हो आकाश में तुम आदित्य देव हो ।
ReplyDeleteमेघों में तुम ही विद्युत हो तुम अद्भुत आराध्य देव हो॥3॥
अग्निदेव के तीनों रूपों को नमन..
अति सुंदर रूपांतरण...
ReplyDeleteप्रकृति सदा ही पूज्या रही है हमारे पूर्वजों की, हर शब्द में वही कृतज्ञता के भाव।
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