[ऋषि- बृहदुक्थ वामदेव । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9345
तां सु ते कीर्तिं मघवन्महित्वा यत्त्वा भीते रोदसी अह्वेयेताम् ।
प्रावो देवॉ आतिरो दासमोजः प्रजायै त्वस्यै यदशिक्ष इन्द्र॥1॥
हे परम-पूज्य पावन प्रभुवर तुम ही हो अतुलित बल-धामी ।
तुम दिव्य-भाव की रक्षा करते तुम ही हो जगती के स्वामी॥1॥
9346
यदचरस्तन्वा वावृधानो बलानीन्द्र प्रबुवाणो जनेषु ।
मायेत्सा ते यानि युध्दान्याहुर्नाद्य शत्रुं ननु पुरा विवित्से।॥2॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा वेद - ऋचायें वह गाता है ।
अजात - शत्रु है सचमुच वह तो माया-वितान भरमाता है ॥2॥
9347
क उ नु ते महिमनः समस्यास्मत्पूर्व ऋषयोSन्तमापुः ।
यन्मातरं च पितरं च साकमजनयथा स्तन्व1: स्वाया: ॥3॥
अपरम्पार है तेरी महिमा नहीं है तुम सा कोई दूजा ।
हम सब तुम्हें नमन करते हैं जग करता है तेरी पूजा ॥3॥
9348
चत्वारि ते असुर्याणि नामादाभ्यानि महिषस्य सन्ति ।
त्वमङ्ग तानि विश्वानि वित्से येभिःकर्माणि मघवञ्चकर्थ॥4॥
हे पूजनीय हे परमेश्वर तुम सर्जक पालक पोषक हो ।
जरा -रहित हो निज-स्वरूप हो दुष्टों के तुम संहारक हो ॥4॥
9349
त्वं विश्वा दधिषे केवलानि यान्याविर्या च गुहा वसूनि ।
काममिन्मे मघवन्मा वि तारीस्त्वमाज्ञाता त्वमिन्द्रासि दाता॥5॥
साधारण और गूढ - रहस्यों दोनों में ही तुम प्रवीण हो ।
मेरा अभीष्ट दे देना प्रभुवर तुम ही दाता चिर-नवीन हो ॥5॥
9350
यो अदधाज्ज्योतिषि ज्योतिरन्तर्यो असृजन्मधुना सं मधूनि ।
अध प्रियं शूषमिन्द्राय मन्म ब्रह्मकृतो बृहदुक्थादवाचि ॥6॥
सभी ज्योति की शिखा तुम्हीं हो परमेश्वर पावन हो सरबस ।
तुम जल से जल निर्मित करते भर देते हो औषधि में रस॥6॥
9345
तां सु ते कीर्तिं मघवन्महित्वा यत्त्वा भीते रोदसी अह्वेयेताम् ।
प्रावो देवॉ आतिरो दासमोजः प्रजायै त्वस्यै यदशिक्ष इन्द्र॥1॥
हे परम-पूज्य पावन प्रभुवर तुम ही हो अतुलित बल-धामी ।
तुम दिव्य-भाव की रक्षा करते तुम ही हो जगती के स्वामी॥1॥
9346
यदचरस्तन्वा वावृधानो बलानीन्द्र प्रबुवाणो जनेषु ।
मायेत्सा ते यानि युध्दान्याहुर्नाद्य शत्रुं ननु पुरा विवित्से।॥2॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा वेद - ऋचायें वह गाता है ।
अजात - शत्रु है सचमुच वह तो माया-वितान भरमाता है ॥2॥
9347
क उ नु ते महिमनः समस्यास्मत्पूर्व ऋषयोSन्तमापुः ।
यन्मातरं च पितरं च साकमजनयथा स्तन्व1: स्वाया: ॥3॥
अपरम्पार है तेरी महिमा नहीं है तुम सा कोई दूजा ।
हम सब तुम्हें नमन करते हैं जग करता है तेरी पूजा ॥3॥
9348
चत्वारि ते असुर्याणि नामादाभ्यानि महिषस्य सन्ति ।
त्वमङ्ग तानि विश्वानि वित्से येभिःकर्माणि मघवञ्चकर्थ॥4॥
हे पूजनीय हे परमेश्वर तुम सर्जक पालक पोषक हो ।
जरा -रहित हो निज-स्वरूप हो दुष्टों के तुम संहारक हो ॥4॥
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त्वं विश्वा दधिषे केवलानि यान्याविर्या च गुहा वसूनि ।
काममिन्मे मघवन्मा वि तारीस्त्वमाज्ञाता त्वमिन्द्रासि दाता॥5॥
साधारण और गूढ - रहस्यों दोनों में ही तुम प्रवीण हो ।
मेरा अभीष्ट दे देना प्रभुवर तुम ही दाता चिर-नवीन हो ॥5॥
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यो अदधाज्ज्योतिषि ज्योतिरन्तर्यो असृजन्मधुना सं मधूनि ।
अध प्रियं शूषमिन्द्राय मन्म ब्रह्मकृतो बृहदुक्थादवाचि ॥6॥
सभी ज्योति की शिखा तुम्हीं हो परमेश्वर पावन हो सरबस ।
तुम जल से जल निर्मित करते भर देते हो औषधि में रस॥6॥
सभी ज्योति की शिखा तुम्हीं हो परमेश्वर पावन हो सरबस ।
ReplyDeleteतुम जल से जल निर्मित करते भर देते हो औषधि में रस॥6॥
अनोखा है वह परम प्रभु...