Tuesday, 21 January 2014

सूक्त - 54

[ऋषि- बृहदुक्थ वामदेव । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

9345
तां  सु  ते कीर्तिं मघवन्महित्वा यत्त्वा भीते रोदसी अह्वेयेताम् ।
प्रावो  देवॉ आतिरो दासमोजः प्रजायै त्वस्यै यदशिक्ष इन्द्र॥1॥

हे  परम-पूज्य  पावन  प्रभुवर  तुम ही हो अतुलित बल-धामी ।
तुम दिव्य-भाव की रक्षा करते तुम ही हो जगती के स्वामी॥1॥

9346
यदचरस्तन्वा    वावृधानो    बलानीन्द्र    प्रबुवाणो    जनेषु ।
मायेत्सा  ते यानि युध्दान्याहुर्नाद्य शत्रुं ननु पुरा विवित्से।॥2॥

सर्व - व्याप्त  है  वह  परमात्मा  वेद - ऋचायें  वह  गाता  है ।
अजात - शत्रु  है सचमुच वह तो माया-वितान भरमाता है ॥2॥

9347
क  उ  नु  ते  महिमनः  समस्यास्मत्पूर्व  ऋषयोSन्तमापुः ।
यन्मातरं  च  पितरं  च साकमजनयथा स्तन्व1: स्वाया: ॥3॥

अपरम्पार  है  तेरी  महिमा  नहीं  है  तुम  सा  कोई  दूजा ।
हम  सब  तुम्हें  नमन  करते  हैं  जग  करता है तेरी पूजा ॥3॥

9348
चत्वारि   ते   असुर्याणि   नामादाभ्यानि   महिषस्य   सन्ति ।
त्वमङ्ग तानि विश्वानि वित्से येभिःकर्माणि मघवञ्चकर्थ॥4॥

हे   पूजनीय   हे  परमेश्वर   तुम   सर्जक   पालक   पोषक   हो ।
जरा  -रहित  हो  निज-स्वरूप  हो  दुष्टों के तुम संहारक हो ॥4॥

9349
त्वं  विश्वा  दधिषे  केवलानि  यान्याविर्या  च  गुहा  वसूनि ।
काममिन्मे मघवन्मा वि तारीस्त्वमाज्ञाता त्वमिन्द्रासि दाता॥5॥

साधारण  और  गूढ - रहस्यों  दोनों  में  ही  तुम  प्रवीण  हो ।
मेरा  अभीष्ट  दे  देना  प्रभुवर तुम ही दाता चिर-नवीन हो ॥5॥

9350
यो अदधाज्ज्योतिषि ज्योतिरन्तर्यो असृजन्मधुना सं मधूनि ।
अध  प्रियं  शूषमिन्द्राय  मन्म  ब्रह्मकृतो  बृहदुक्थादवाचि ॥6॥

सभी  ज्योति  की  शिखा  तुम्हीं हो परमेश्वर पावन हो सरबस ।
तुम  जल  से जल निर्मित करते भर देते हो औषधि में रस॥6॥     

1 comment:

  1. सभी ज्योति की शिखा तुम्हीं हो परमेश्वर पावन हो सरबस ।
    तुम जल से जल निर्मित करते भर देते हो औषधि में रस॥6॥
    अनोखा है वह परम प्रभु...

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