Sunday, 19 January 2014

सूक्त - 56

[ऋषि- बृहदुक्थ वामदेव । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- त्रिष्टुप्- जगती ।]

9359
इदं  त  एकं  पर  ऊ  त  एकं  तृतीयेन  ज्योतिषा  सं  विशस्व ।
संवेशने   तन्व1  श्चारुरेधि   प्रियो   देवानां  परमे   जनित्रे ॥1॥

हे मनुज जगत है एक ज्योति और जीवात्मा भी एक ज्योति है।
परमेश्वर ही सबका पालक है वह प्रभु ही तो दिव्य-शक्ति है ॥1॥

9360
तनूष्टे  वाजितन्वं1  नयन्ती  वाममस्मभ्यं  धातु शर्म तुभ्यम् ।
अह्रुतो महो धरुणाय देवान्दिवीव ज्योतिः स्वमा मिमीया: ॥2॥

तन   तेरा  निर्जीव  हो   गया   अब   तुम्हें  दूसरा   देह   मिले ।
इस घटना से हम भी कुछ सीखें परम-प्राप्ति का फूल खिले ॥2॥

9361
वाज्यसि  वाजिनेना  सुवेनीः सुवितः स्तोमं सुवितो दिवं गा: ।
सुवितो धर्म प्रथमानु सत्या सुवितो देवान्सुवितोSनु पत्म॥3॥

हे  आत्मा  तुम  महाबली  हो  सत्पथ  पर  ही  तुम  चलना ।
दिव्य-गुणों  को  धारण  करना  स्वर्ग-लोक में तुम रहना ॥3॥

9362
महिम्न   एषां   पितरश्चनेशिरे   देवा   देवेष्वदधुरपि   क्रतुम् ।
समविव्यचुरुत  यान्यत्विषुरैषां  तनूषु  नि  विविशुः पुनः ॥4॥

पितर     हमारे     पूजनीय    हैं    वे    अद्भुत    बलशाली    हैं ।
देव - स्वरूप  कर्म  हैं  उनके  वे  अतिशय  प्रभावशाली  हैं ॥4॥

9363
सहोभिर्विश्वं  परि  चक्रमू  रजः पूर्वा धामान्यमिता मिमाना: ।
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु॥5॥

अतुलित  बल  धारे  पितर  हमारे  अन्य लोक में भी जाते हैं ।
जन कल्याण हेतु अर्पित हैं आत्मीय समझ वे अपनाते हैं॥5॥

9364
द्विधा  सूनवोSसुरं  स्वर्विदमास्थापयन्त  तृतीयेन  कर्मणा ।
स्वां प्रजां पितरः पित्र्यं सह आवरेष्वदधुस्तन्तुमाततम् ॥6॥

पितरों  ने  परम्परा गढ - कर सन्तानों को सद्भाव दिया है ।
संस्कारों  के  बीज रोप-कर हम पर यह उपकार किया है ॥6॥

9365
नावा न क्षोदः प्रदिशः पृथिव्या: स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
स्वां    प्रजां     बृहदुक्थो     महित्वावरेष्वदधादा     परेषु ॥7॥

नौका में बैठा हुआ व्यक्ति तो जब चाहे जल में जा सकता है ।
वैसे  ही  ईश्वर  का  बेटा  जो  चाहे  वह  सब पा सकता है ॥7॥      
 

2 comments:

  1. गुण जीवन के साथ रहेंगे,
    तन तो आनी जानी है।

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  2. सुंदर जीवन सूत्र...

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