[ऋषि- बृहदुक्थ वामदेव । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- त्रिष्टुप्- जगती ।]
9359
इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन ज्योतिषा सं विशस्व ।
संवेशने तन्व1 श्चारुरेधि प्रियो देवानां परमे जनित्रे ॥1॥
हे मनुज जगत है एक ज्योति और जीवात्मा भी एक ज्योति है।
परमेश्वर ही सबका पालक है वह प्रभु ही तो दिव्य-शक्ति है ॥1॥
9360
तनूष्टे वाजितन्वं1 नयन्ती वाममस्मभ्यं धातु शर्म तुभ्यम् ।
अह्रुतो महो धरुणाय देवान्दिवीव ज्योतिः स्वमा मिमीया: ॥2॥
तन तेरा निर्जीव हो गया अब तुम्हें दूसरा देह मिले ।
इस घटना से हम भी कुछ सीखें परम-प्राप्ति का फूल खिले ॥2॥
9361
वाज्यसि वाजिनेना सुवेनीः सुवितः स्तोमं सुवितो दिवं गा: ।
सुवितो धर्म प्रथमानु सत्या सुवितो देवान्सुवितोSनु पत्म॥3॥
हे आत्मा तुम महाबली हो सत्पथ पर ही तुम चलना ।
दिव्य-गुणों को धारण करना स्वर्ग-लोक में तुम रहना ॥3॥
9362
महिम्न एषां पितरश्चनेशिरे देवा देवेष्वदधुरपि क्रतुम् ।
समविव्यचुरुत यान्यत्विषुरैषां तनूषु नि विविशुः पुनः ॥4॥
पितर हमारे पूजनीय हैं वे अद्भुत बलशाली हैं ।
देव - स्वरूप कर्म हैं उनके वे अतिशय प्रभावशाली हैं ॥4॥
9363
सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रजः पूर्वा धामान्यमिता मिमाना: ।
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु॥5॥
अतुलित बल धारे पितर हमारे अन्य लोक में भी जाते हैं ।
जन कल्याण हेतु अर्पित हैं आत्मीय समझ वे अपनाते हैं॥5॥
9364
द्विधा सूनवोSसुरं स्वर्विदमास्थापयन्त तृतीयेन कर्मणा ।
स्वां प्रजां पितरः पित्र्यं सह आवरेष्वदधुस्तन्तुमाततम् ॥6॥
पितरों ने परम्परा गढ - कर सन्तानों को सद्भाव दिया है ।
संस्कारों के बीज रोप-कर हम पर यह उपकार किया है ॥6॥
9365
नावा न क्षोदः प्रदिशः पृथिव्या: स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
स्वां प्रजां बृहदुक्थो महित्वावरेष्वदधादा परेषु ॥7॥
नौका में बैठा हुआ व्यक्ति तो जब चाहे जल में जा सकता है ।
वैसे ही ईश्वर का बेटा जो चाहे वह सब पा सकता है ॥7॥
9359
इदं त एकं पर ऊ त एकं तृतीयेन ज्योतिषा सं विशस्व ।
संवेशने तन्व1 श्चारुरेधि प्रियो देवानां परमे जनित्रे ॥1॥
हे मनुज जगत है एक ज्योति और जीवात्मा भी एक ज्योति है।
परमेश्वर ही सबका पालक है वह प्रभु ही तो दिव्य-शक्ति है ॥1॥
9360
तनूष्टे वाजितन्वं1 नयन्ती वाममस्मभ्यं धातु शर्म तुभ्यम् ।
अह्रुतो महो धरुणाय देवान्दिवीव ज्योतिः स्वमा मिमीया: ॥2॥
तन तेरा निर्जीव हो गया अब तुम्हें दूसरा देह मिले ।
इस घटना से हम भी कुछ सीखें परम-प्राप्ति का फूल खिले ॥2॥
9361
वाज्यसि वाजिनेना सुवेनीः सुवितः स्तोमं सुवितो दिवं गा: ।
सुवितो धर्म प्रथमानु सत्या सुवितो देवान्सुवितोSनु पत्म॥3॥
हे आत्मा तुम महाबली हो सत्पथ पर ही तुम चलना ।
दिव्य-गुणों को धारण करना स्वर्ग-लोक में तुम रहना ॥3॥
9362
महिम्न एषां पितरश्चनेशिरे देवा देवेष्वदधुरपि क्रतुम् ।
समविव्यचुरुत यान्यत्विषुरैषां तनूषु नि विविशुः पुनः ॥4॥
पितर हमारे पूजनीय हैं वे अद्भुत बलशाली हैं ।
देव - स्वरूप कर्म हैं उनके वे अतिशय प्रभावशाली हैं ॥4॥
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सहोभिर्विश्वं परि चक्रमू रजः पूर्वा धामान्यमिता मिमाना: ।
तनूषु विश्वा भुवना नि येमिरे प्रासारयन्त पुरुध प्रजा अनु॥5॥
अतुलित बल धारे पितर हमारे अन्य लोक में भी जाते हैं ।
जन कल्याण हेतु अर्पित हैं आत्मीय समझ वे अपनाते हैं॥5॥
9364
द्विधा सूनवोSसुरं स्वर्विदमास्थापयन्त तृतीयेन कर्मणा ।
स्वां प्रजां पितरः पित्र्यं सह आवरेष्वदधुस्तन्तुमाततम् ॥6॥
पितरों ने परम्परा गढ - कर सन्तानों को सद्भाव दिया है ।
संस्कारों के बीज रोप-कर हम पर यह उपकार किया है ॥6॥
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नावा न क्षोदः प्रदिशः पृथिव्या: स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा।
स्वां प्रजां बृहदुक्थो महित्वावरेष्वदधादा परेषु ॥7॥
नौका में बैठा हुआ व्यक्ति तो जब चाहे जल में जा सकता है ।
वैसे ही ईश्वर का बेटा जो चाहे वह सब पा सकता है ॥7॥
गुण जीवन के साथ रहेंगे,
ReplyDeleteतन तो आनी जानी है।
सुंदर जीवन सूत्र...
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