[ऋषि- देवगण । देवता- अग्नि सौचीक । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9319
महत्तदुल्बं स्थविरं तदासीद्येनाविष्टितः प्रविवेशिथापः ।
विश्वा अपश्यद्बहुधा ते अग्ने जातवेदस्तन्वो देव एकः॥1॥
अग्नि - देव का वह वितान भी अति-विशाल और सुखकर था।
जिससे घिर-कर वे खडे हुए थे देदीप्यमान और सुन्दर था॥1॥
9320
को मा ददर्श कतमः स देवो यो मे तन्वो बहुधा पर्यपश्यत् ।
क्वाह मित्रावरुणा क्षियन्त्यग्नेर्विश्वा: समिधो देवयानीः॥2॥
हे देव कौन थे जिसने मेरा विविध - रूप पहचान लिया ।
हे मित्र वरुण अब तुम्हीं कहो क्या सत्पथ को जान लिया॥2॥
9321
ऐच्छाम त्वा बहुधा जातवेदः प्रविष्टमग्ने अप्स्वोषधीषु ।
तं त्वा यमो अचिकेच्चित्रभानो दशान्तरुष्यादतिरोचमानम्॥3॥
हे अग्नि- देव जल औषधि के रस में भी तो तुम विद्यमान हो ।
परम-पूज्य तुम ही प्रणम्य हो अति-तेजस्वी कान्तिमान हो॥3॥
9322
होत्रादहं वरुण बिभ्यदायं नेदेव मा युनजन्नत्र देवा: ।
तस्य मे तन्वो बहुधा निविष्टा एतमर्थं न चिकेताहमग्निः ॥4॥
हे वरुण - देव मैं यजन-कर्म से डरकर जल में रहता हूँ ।
हवि-वहन-कर्म स्वीकार नहीं है अपनी बात तुमसे कहता हूँ॥4॥
9323
एहि मनुर्देवयुर्यज्ञकामोSरङ्कृत्या तमसि क्षेष्यग्ने ।
सुगान्पथः कृणुहि देवयानान्वह हव्यानि सुमनस्यमानः ॥5॥
हे अग्नि - देव तुमसे विनती है तुम हवि - वाहक बन जाओ ।
तुम तेजस्वी हो तमस मिटाओ सत के पथ को सरल बनाओ॥5॥
9324
अग्नेः पूर्वे भ्रातरो अर्थमेतं रथीवाध्वानमन्वावरीवुः ।
तस्माद्भिया वरुण दूरमायं गौरो न क्षेप्नोरविजे ज्याया: ॥6॥
रथी लक्ष्य तक पहुँचाता है हे अग्नि-देव दायित्व निभाओ ।
गत की चिन्ता छोडो प्रभुवर हवि-वाहक बनकर आ जाओ॥6॥
9325
कुर्मस्त आयुरजरं यदग्ने यथा युक्तो जातवेदो न रिष्या: ।
अथा वहासि सुमनस्यमानो भागं देवेभ्यो हविषः सुजात॥॥7॥
हे अग्नि - देव तुम अमर रहोगे हम सब देते हैं वरदान ।
अनल अनश्वर हुए आज से सबको देना अब हविष्यान्न॥7॥
9326
प्रयाजान्मे अनुयाजॉश्च केवलानूर्जस्वन्तं हविषो दत्त भागम् ।
घृतं चापां पुरुषं चौषधीनामग्नेश्च दीर्घमायुरस्तु देवा: ॥8॥
हवि - भाग सभी को पहुँचाऊँगा पर मुझे तृप्त करते रहना ।
जल का घृत का औषधि का भी सार-तत्व अर्पित करना॥8॥
9327
तव प्रयाजा अनुयाजाश्च केवल ऊर्जस्वन्तो हविषःसन्तु भागा:।
तवाग्ने यज्ञो3यमस्तु सर्वस्तुभ्यं नमन्तां प्रदिशश्चतस्त्रः ॥9॥
हे अग्नि - देव सब सार-तत्व हम तुम्हें ही अर्पित करते हैं ।
सभी यज्ञ है तुम्हें समर्पित प्रभु प्रणम्य से हम कहते हैं ॥9॥
9319
महत्तदुल्बं स्थविरं तदासीद्येनाविष्टितः प्रविवेशिथापः ।
विश्वा अपश्यद्बहुधा ते अग्ने जातवेदस्तन्वो देव एकः॥1॥
अग्नि - देव का वह वितान भी अति-विशाल और सुखकर था।
जिससे घिर-कर वे खडे हुए थे देदीप्यमान और सुन्दर था॥1॥
9320
को मा ददर्श कतमः स देवो यो मे तन्वो बहुधा पर्यपश्यत् ।
क्वाह मित्रावरुणा क्षियन्त्यग्नेर्विश्वा: समिधो देवयानीः॥2॥
हे देव कौन थे जिसने मेरा विविध - रूप पहचान लिया ।
हे मित्र वरुण अब तुम्हीं कहो क्या सत्पथ को जान लिया॥2॥
9321
ऐच्छाम त्वा बहुधा जातवेदः प्रविष्टमग्ने अप्स्वोषधीषु ।
तं त्वा यमो अचिकेच्चित्रभानो दशान्तरुष्यादतिरोचमानम्॥3॥
हे अग्नि- देव जल औषधि के रस में भी तो तुम विद्यमान हो ।
परम-पूज्य तुम ही प्रणम्य हो अति-तेजस्वी कान्तिमान हो॥3॥
9322
होत्रादहं वरुण बिभ्यदायं नेदेव मा युनजन्नत्र देवा: ।
तस्य मे तन्वो बहुधा निविष्टा एतमर्थं न चिकेताहमग्निः ॥4॥
हे वरुण - देव मैं यजन-कर्म से डरकर जल में रहता हूँ ।
हवि-वहन-कर्म स्वीकार नहीं है अपनी बात तुमसे कहता हूँ॥4॥
9323
एहि मनुर्देवयुर्यज्ञकामोSरङ्कृत्या तमसि क्षेष्यग्ने ।
सुगान्पथः कृणुहि देवयानान्वह हव्यानि सुमनस्यमानः ॥5॥
हे अग्नि - देव तुमसे विनती है तुम हवि - वाहक बन जाओ ।
तुम तेजस्वी हो तमस मिटाओ सत के पथ को सरल बनाओ॥5॥
9324
अग्नेः पूर्वे भ्रातरो अर्थमेतं रथीवाध्वानमन्वावरीवुः ।
तस्माद्भिया वरुण दूरमायं गौरो न क्षेप्नोरविजे ज्याया: ॥6॥
रथी लक्ष्य तक पहुँचाता है हे अग्नि-देव दायित्व निभाओ ।
गत की चिन्ता छोडो प्रभुवर हवि-वाहक बनकर आ जाओ॥6॥
9325
कुर्मस्त आयुरजरं यदग्ने यथा युक्तो जातवेदो न रिष्या: ।
अथा वहासि सुमनस्यमानो भागं देवेभ्यो हविषः सुजात॥॥7॥
हे अग्नि - देव तुम अमर रहोगे हम सब देते हैं वरदान ।
अनल अनश्वर हुए आज से सबको देना अब हविष्यान्न॥7॥
9326
प्रयाजान्मे अनुयाजॉश्च केवलानूर्जस्वन्तं हविषो दत्त भागम् ।
घृतं चापां पुरुषं चौषधीनामग्नेश्च दीर्घमायुरस्तु देवा: ॥8॥
हवि - भाग सभी को पहुँचाऊँगा पर मुझे तृप्त करते रहना ।
जल का घृत का औषधि का भी सार-तत्व अर्पित करना॥8॥
9327
तव प्रयाजा अनुयाजाश्च केवल ऊर्जस्वन्तो हविषःसन्तु भागा:।
तवाग्ने यज्ञो3यमस्तु सर्वस्तुभ्यं नमन्तां प्रदिशश्चतस्त्रः ॥9॥
हे अग्नि - देव सब सार-तत्व हम तुम्हें ही अर्पित करते हैं ।
सभी यज्ञ है तुम्हें समर्पित प्रभु प्रणम्य से हम कहते हैं ॥9॥
बहुत सुन्दर अनुवाद।
ReplyDeleteहे अग्नि- देव जल औषधि के रस में भी तो तुम विद्यमान हो ।
ReplyDeleteपरम-पूज्य तुम ही प्रणम्य हो अति-तेजस्वी कान्तिमान हो॥3॥
तत्वों के भीतर छुपे हैं तत्व...