[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- बृहस्पति । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
9508
इमां धियं सप्तशीर्ष्णीं पिता न ऋतप्रजातां बृहतीमविन्दत् ।
तुरीयं स्विज्जनयद्विश्वजन्योSयास्य उक्थमिन्द्राय शंसन्॥1॥
ऋषि ने मन्त्रों की रचना की जो सत्य-भूमि में उपजा है ।
जन-कल्याण निहित है इसमें इसीलिए ऋषि ने सिरजा है॥1॥
9509
ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीरा: ।
विप्रं पदमङ्गिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त॥2॥
ज्ञान-कर्म और सत्य सिखाते पावन-पथ पर ही चलते हैं ।
ऋषि पर-हित में रत रहते हैं वे सत्कर्म सतत करते हैं॥2॥
9510
हंसैरिव सखिभिर्वावदद्भिरश्मन्मयानि नहना व्यस्यन् ।
बृहस्पतिरभिकनिक्रदद्गा उत प्रास्तौदुच्च विद्वॉ अगायत्॥3॥
मधुर-वचन की अद्भुत-महिमा सज्जन की होती मीठी बोली।
समवेत-स्वरों में सब गाते हैं फिर करते हैं सभी ठिठोली॥3॥
9511
अवो द्वाभ्यां पर एकया गा गुहा तिष्ठन्तीरनृतस्य सेतौ ।
बृहस्पतिस्तमसि ज्योतिरिच्छन्नुदुस्त्रा आकर्वि हि तिस्त्र आवः॥4॥
परा-पश्यन्ती और मध्यमा दिव्य वाक्-दर्शन करवाओ ।
हे प्रभु तम से हमें उबारो उजियारे पथ-पर पहुँचाओ॥4॥
9512
विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निस्त्रीणि साकमुदधेरकृन्तत् ।
बृहस्पतिरुषसं सूर्यं गामर्कं विवेद स्तनयन्निव द्यौः ॥5॥
हे प्रभु भव-बन्धन तुम काटो ज्ञान-ज्योति तुम दिखलाओ।
जीवन यह सार्थक हो जाए ऐसी कोई जुगत बताओ ॥5॥
9513
इन्द्रो वलं रक्षितारं दुघानां करेणेव वि चकर्ता रवेण ।
स्वेदाञ्जिभिराशिरमिच्छमानोSरोदयत्पणिमा गा अमुष्णात्॥6॥
आदित्य - देव आलोक - प्रदाता पावस को प्रेरित करता है ।
बरसात सुहानी तब होती है मानव सुख अनुभव करता है ॥6॥
9514
स ईं सत्येभिः सखिभिः शुचद्भिर्गोधायसं वि धनसैरदर्दः ।
ब्रह्मणस्पतिर्वृषभिर्वराहैर्घर्मस्वेदेभिर्द्रविणं व्यानट् ॥7॥
प्रकृति-नटी की क्षमता अद्भुत चुप-चुप चलता कार्य-कलाप ।
होती नहीं खबर पर वह तो कुछ-कुछ करती है चुपचाप ॥7॥
9515
ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभिः ।
बृहस्पतिर्मिथो अवद्यपेभिरुदुस्त्रिया असृजत स्वयुग्भिः॥8॥
आदित्य-देव का अभिवादन है करते हैं उनका गुण-गान।
जीवन के आलोक तुम्हीं हो करो अनुग्रह दयानिधान ॥8॥
9516
तं वर्धयन्तो मतिभिः शिवाभिः सिहमिव नानदतं सधस्थे ।
बृहस्पतिं वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदेम जिष्णुम् ॥9॥
सिह-सम मेघ गरजते नभ में फिर होती सुखकर बरसात ।
तुम सबका कल्याण करो प्रभु करें प्रणाम सभी दिन-रात॥9॥
9517
यदा वाजमसनद्विश्वरुपमा द्यामरुक्षदुत्तराणि सद्म ।
बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा॥10॥
आदित्य - देवता जल देते हैं जिससे मिलता है धन-धान ।
हे प्रभु सब हों सुखी यहॉ पर सबको देना यश-वैभव-दान॥10॥
9518
सत्यामाशिसषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्धय्वथ स्वेभिरेवैः ।
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे॥11॥
अन्न - शाक भर-पूर मिले प्रभु यही प्रार्थना हम करते हैं ।
सभी सुखी हों सभी निरोगी बारम्बार यही कहते हैं ॥11॥
9519
इन्द्रो मह्ना महतो अर्णवस्य वि मूर्धानमभिनदर्बुदस्य ।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धून्देवैर्द्यावापृथिवी प्रावतं नः॥12॥
शस्य - श्यामला पावन - वसुधा हम सब जीवों की जननी है ।
मेघदेव तुम जल बरसाना यह धरणी जीवन की तरणी है॥12॥
9508
इमां धियं सप्तशीर्ष्णीं पिता न ऋतप्रजातां बृहतीमविन्दत् ।
तुरीयं स्विज्जनयद्विश्वजन्योSयास्य उक्थमिन्द्राय शंसन्॥1॥
ऋषि ने मन्त्रों की रचना की जो सत्य-भूमि में उपजा है ।
जन-कल्याण निहित है इसमें इसीलिए ऋषि ने सिरजा है॥1॥
9509
ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीरा: ।
विप्रं पदमङ्गिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त॥2॥
ज्ञान-कर्म और सत्य सिखाते पावन-पथ पर ही चलते हैं ।
ऋषि पर-हित में रत रहते हैं वे सत्कर्म सतत करते हैं॥2॥
9510
हंसैरिव सखिभिर्वावदद्भिरश्मन्मयानि नहना व्यस्यन् ।
बृहस्पतिरभिकनिक्रदद्गा उत प्रास्तौदुच्च विद्वॉ अगायत्॥3॥
मधुर-वचन की अद्भुत-महिमा सज्जन की होती मीठी बोली।
समवेत-स्वरों में सब गाते हैं फिर करते हैं सभी ठिठोली॥3॥
9511
अवो द्वाभ्यां पर एकया गा गुहा तिष्ठन्तीरनृतस्य सेतौ ।
बृहस्पतिस्तमसि ज्योतिरिच्छन्नुदुस्त्रा आकर्वि हि तिस्त्र आवः॥4॥
परा-पश्यन्ती और मध्यमा दिव्य वाक्-दर्शन करवाओ ।
हे प्रभु तम से हमें उबारो उजियारे पथ-पर पहुँचाओ॥4॥
9512
विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निस्त्रीणि साकमुदधेरकृन्तत् ।
बृहस्पतिरुषसं सूर्यं गामर्कं विवेद स्तनयन्निव द्यौः ॥5॥
हे प्रभु भव-बन्धन तुम काटो ज्ञान-ज्योति तुम दिखलाओ।
जीवन यह सार्थक हो जाए ऐसी कोई जुगत बताओ ॥5॥
9513
इन्द्रो वलं रक्षितारं दुघानां करेणेव वि चकर्ता रवेण ।
स्वेदाञ्जिभिराशिरमिच्छमानोSरोदयत्पणिमा गा अमुष्णात्॥6॥
आदित्य - देव आलोक - प्रदाता पावस को प्रेरित करता है ।
बरसात सुहानी तब होती है मानव सुख अनुभव करता है ॥6॥
9514
स ईं सत्येभिः सखिभिः शुचद्भिर्गोधायसं वि धनसैरदर्दः ।
ब्रह्मणस्पतिर्वृषभिर्वराहैर्घर्मस्वेदेभिर्द्रविणं व्यानट् ॥7॥
प्रकृति-नटी की क्षमता अद्भुत चुप-चुप चलता कार्य-कलाप ।
होती नहीं खबर पर वह तो कुछ-कुछ करती है चुपचाप ॥7॥
9515
ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभिः ।
बृहस्पतिर्मिथो अवद्यपेभिरुदुस्त्रिया असृजत स्वयुग्भिः॥8॥
आदित्य-देव का अभिवादन है करते हैं उनका गुण-गान।
जीवन के आलोक तुम्हीं हो करो अनुग्रह दयानिधान ॥8॥
9516
तं वर्धयन्तो मतिभिः शिवाभिः सिहमिव नानदतं सधस्थे ।
बृहस्पतिं वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदेम जिष्णुम् ॥9॥
सिह-सम मेघ गरजते नभ में फिर होती सुखकर बरसात ।
तुम सबका कल्याण करो प्रभु करें प्रणाम सभी दिन-रात॥9॥
9517
यदा वाजमसनद्विश्वरुपमा द्यामरुक्षदुत्तराणि सद्म ।
बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा॥10॥
आदित्य - देवता जल देते हैं जिससे मिलता है धन-धान ।
हे प्रभु सब हों सुखी यहॉ पर सबको देना यश-वैभव-दान॥10॥
9518
सत्यामाशिसषं कृणुता वयोधै कीरिं चिद्धय्वथ स्वेभिरेवैः ।
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे॥11॥
अन्न - शाक भर-पूर मिले प्रभु यही प्रार्थना हम करते हैं ।
सभी सुखी हों सभी निरोगी बारम्बार यही कहते हैं ॥11॥
9519
इन्द्रो मह्ना महतो अर्णवस्य वि मूर्धानमभिनदर्बुदस्य ।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धून्देवैर्द्यावापृथिवी प्रावतं नः॥12॥
शस्य - श्यामला पावन - वसुधा हम सब जीवों की जननी है ।
मेघदेव तुम जल बरसाना यह धरणी जीवन की तरणी है॥12॥
शस्य - श्यामला पावन - वसुधा हम सब जीवों की जननी है ।
ReplyDeleteमेघदेव तुम जल बरसाना यह धरणी जीवन की तरणी है॥12॥
धरा और बादल का नाता कितना पुराना है
ऋषियों ने जन कल्याण में जीवन खपा दिया, उन्हें नमन।
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