Wednesday, 8 January 2014

सूक्त - 67

[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- बृहस्पति । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

9508
इमां धियं सप्तशीर्ष्णीं पिता न ऋतप्रजातां बृहतीमविन्दत् ।
तुरीयं स्विज्जनयद्विश्वजन्योSयास्य उक्थमिन्द्राय शंसन्॥1॥

ऋषि  ने  मन्त्रों  की  रचना  की  जो सत्य-भूमि में उपजा है ।
जन-कल्याण निहित है इसमें इसीलिए ऋषि ने सिरजा है॥1॥

9509
ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीरा: ।
विप्रं पदमङ्गिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त॥2॥

ज्ञान-कर्म और सत्य सिखाते पावन-पथ पर ही चलते हैं ।
ऋषि पर-हित में रत रहते हैं वे सत्कर्म सतत करते हैं॥2॥

9510
हंसैरिव सखिभिर्वावदद्भिरश्मन्मयानि नहना व्यस्यन्  ।
बृहस्पतिरभिकनिक्रदद्गा उत प्रास्तौदुच्च विद्वॉ अगायत्॥3॥

मधुर-वचन की अद्भुत-महिमा सज्जन की होती मीठी बोली।
समवेत-स्वरों में सब गाते हैं फिर करते हैं सभी ठिठोली॥3॥

9511
अवो द्वाभ्यां पर एकया गा गुहा तिष्ठन्तीरनृतस्य सेतौ ।
बृहस्पतिस्तमसि ज्योतिरिच्छन्नुदुस्त्रा आकर्वि हि तिस्त्र आवः॥4॥

परा-पश्यन्ती और मध्यमा दिव्य वाक्-दर्शन करवाओ ।
हे प्रभु तम से हमें उबारो उजियारे पथ-पर पहुँचाओ॥4॥

9512
विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निस्त्रीणि साकमुदधेरकृन्तत् ।
बृहस्पतिरुषसं सूर्यं गामर्कं विवेद स्तनयन्निव द्यौः ॥5॥

हे प्रभु भव-बन्धन तुम काटो ज्ञान-ज्योति तुम दिखलाओ।
जीवन  यह  सार्थक  हो जाए ऐसी कोई जुगत बताओ ॥5॥

9513
इन्द्रो  वलं  रक्षितारं  दुघानां  करेणेव  वि  चकर्ता  रवेण ।
स्वेदाञ्जिभिराशिरमिच्छमानोSरोदयत्पणिमा गा अमुष्णात्॥6॥

आदित्य - देव आलोक - प्रदाता पावस को प्रेरित करता है ।
बरसात सुहानी तब होती है मानव सुख अनुभव करता है ॥6॥

9514
स ईं सत्येभिः सखिभिः शुचद्भिर्गोधायसं वि धनसैरदर्दः ।
ब्रह्मणस्पतिर्वृषभिर्वराहैर्घर्मस्वेदेभिर्द्रविणं     व्यानट् ॥7॥

प्रकृति-नटी की क्षमता अद्भुत चुप-चुप चलता कार्य-कलाप ।
होती नहीं खबर पर वह तो कुछ-कुछ करती है चुपचाप ॥7॥

9515
ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभिः ।
बृहस्पतिर्मिथो अवद्यपेभिरुदुस्त्रिया असृजत स्वयुग्भिः॥8॥

आदित्य-देव का अभिवादन है करते हैं उनका गुण-गान।
जीवन के आलोक तुम्हीं हो करो अनुग्रह दयानिधान ॥8॥

9516
तं वर्धयन्तो मतिभिः शिवाभिः सिहमिव नानदतं सधस्थे ।
बृहस्पतिं वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनु मदेम जिष्णुम् ॥9॥

सिह-सम मेघ गरजते नभ में फिर होती सुखकर बरसात ।
तुम सबका कल्याण करो प्रभु करें प्रणाम सभी दिन-रात॥9॥

9517
यदा   वाजमसनद्विश्वरुपमा   द्यामरुक्षदुत्तराणि   सद्म ।
बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा॥10॥

आदित्य - देवता  जल  देते  हैं  जिससे  मिलता है धन-धान ।
हे प्रभु सब हों सुखी यहॉ पर सबको देना यश-वैभव-दान॥10॥

9518
सत्यामाशिसषं  कृणुता  वयोधै  कीरिं  चिद्धय्वथ स्वेभिरेवैः ।
पश्चा मृधो अप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे॥11॥

अन्न - शाक  भर-पूर  मिले  प्रभु  यही  प्रार्थना हम करते हैं ।
सभी  सुखी  हों  सभी  निरोगी  बारम्बार  यही कहते हैं ॥11॥

9519
इन्द्रो  मह्ना  महतो  अर्णवस्य  वि  मूर्धानमभिनदर्बुदस्य ।
अहन्नहिमरिणात्सप्त सिन्धून्देवैर्द्यावापृथिवी प्रावतं नः॥12॥

शस्य - श्यामला  पावन - वसुधा हम सब जीवों की जननी है ।
मेघदेव तुम जल बरसाना यह धरणी जीवन की तरणी है॥12॥          

     

2 comments:

  1. शस्य - श्यामला पावन - वसुधा हम सब जीवों की जननी है ।
    मेघदेव तुम जल बरसाना यह धरणी जीवन की तरणी है॥12॥

    धरा और बादल का नाता कितना पुराना है

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  2. ऋषियों ने जन कल्याण में जीवन खपा दिया, उन्हें नमन।

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