[ऋषि- गौपायन । देवता- मन आवर्तन । छन्द- अनुष्टुप् ।]
9372
यत्ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥1॥
वैद बीमार से यह कहता है ठीक हो तुम कुछ नही हुआ है ।
यम से वापस ला सकता हूँ तुम्हें निराशा ने छू लिया है॥1॥
9373
यत्ते दिवं यत्पृथिवीं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥2॥
इसी धरा पर ही खुश रहो तुम कहीं और नहीं जा सकते हो ।
तुम्हें स्वस्थ तन-मन देता हूँ मुझे बताओ क्या कहते हो॥2॥
9374
यत्ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥॥3॥
तुम आशा का दामन पकडो खुश होकर जीवन जीना है ।
रोग तुम्हारा हरिण हो गया सुख का अब अमृत पीना है॥3॥
9375
यत्ते चतस्त्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥4॥
उल्टा-पुल्टा मत सोचो तुम तुम बिल्कुल बीमार नहीं हो ।
पुनर्नवा औषधि देता हूँ अब तो तुम एकदम सही हो ॥4॥
9376
यत्ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥5॥
दुःचिन्ता से बाहर निकलो मन को समझाकर वापस लाओ।
जीवन में लालित्य चाहिए आओ सुख-सागर में नहाओ॥5॥
9377
यत्ते मरीचिः प्रवतो मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥6॥
मानव-तन का मोल समझना खुद पर सदा भरोसा करना ।
बहुत दिनों तक यहॉ है रहना गिर कर भी है हमें संभलना॥6॥
9378
यत्ते अपो यदोषदधीर्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तमामसीह क्षयाय जीवसे ॥7॥
आओ आशा का ऑचल पकडें मानव-जीवन का रस पी लें ।
कर्म-भूमि यह तुम्हें बुलाती आओ सुख से जीवन जी लें॥7॥
9379
यत्ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥8॥
अपनी महिमा को पहचानो अपने मन का अवसाद मिटाओ ।
यह जीवन कितना सुन्दर है जियो और जीना सिखलाओ॥8॥
9380
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥9॥
माथे पर चिन्ता की सलवट यह मानव की पहचान नहीं है ।
तुम्हें बहुत दिन तक जीना है हँस कर देखो खुशी यहीं है॥9॥
9381
यत्ते विश्वमिदं जगन्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥10॥
मन को निराश मत होने दो कितना सुन्दर है यह जीवन ।
विविध-विधा के फूल खिलेंगे श्रम से सींचो अपना उपवन॥10॥
9382
यत्ते परा: परावतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥11॥
मन को कहीं भटकने न दो जहॉ भी हो वापस आ जाओ ।
सौ बरस जियोगे धरती पर मन में यह विश्वास जगाओ॥11॥
9383
यत्ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥12॥
गत-आगत में मत भरमाओ वर्तमान की महिमा जानो ।
कल को किसने देखा है आज जिन्दगी को पहचानो॥12॥
9372
यत्ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥1॥
वैद बीमार से यह कहता है ठीक हो तुम कुछ नही हुआ है ।
यम से वापस ला सकता हूँ तुम्हें निराशा ने छू लिया है॥1॥
9373
यत्ते दिवं यत्पृथिवीं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥2॥
इसी धरा पर ही खुश रहो तुम कहीं और नहीं जा सकते हो ।
तुम्हें स्वस्थ तन-मन देता हूँ मुझे बताओ क्या कहते हो॥2॥
9374
यत्ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥॥3॥
तुम आशा का दामन पकडो खुश होकर जीवन जीना है ।
रोग तुम्हारा हरिण हो गया सुख का अब अमृत पीना है॥3॥
9375
यत्ते चतस्त्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥4॥
उल्टा-पुल्टा मत सोचो तुम तुम बिल्कुल बीमार नहीं हो ।
पुनर्नवा औषधि देता हूँ अब तो तुम एकदम सही हो ॥4॥
9376
यत्ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥5॥
दुःचिन्ता से बाहर निकलो मन को समझाकर वापस लाओ।
जीवन में लालित्य चाहिए आओ सुख-सागर में नहाओ॥5॥
9377
यत्ते मरीचिः प्रवतो मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥6॥
मानव-तन का मोल समझना खुद पर सदा भरोसा करना ।
बहुत दिनों तक यहॉ है रहना गिर कर भी है हमें संभलना॥6॥
9378
यत्ते अपो यदोषदधीर्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तमामसीह क्षयाय जीवसे ॥7॥
आओ आशा का ऑचल पकडें मानव-जीवन का रस पी लें ।
कर्म-भूमि यह तुम्हें बुलाती आओ सुख से जीवन जी लें॥7॥
9379
यत्ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥8॥
अपनी महिमा को पहचानो अपने मन का अवसाद मिटाओ ।
यह जीवन कितना सुन्दर है जियो और जीना सिखलाओ॥8॥
9380
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥9॥
माथे पर चिन्ता की सलवट यह मानव की पहचान नहीं है ।
तुम्हें बहुत दिन तक जीना है हँस कर देखो खुशी यहीं है॥9॥
9381
यत्ते विश्वमिदं जगन्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥10॥
मन को निराश मत होने दो कितना सुन्दर है यह जीवन ।
विविध-विधा के फूल खिलेंगे श्रम से सींचो अपना उपवन॥10॥
9382
यत्ते परा: परावतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥11॥
मन को कहीं भटकने न दो जहॉ भी हो वापस आ जाओ ।
सौ बरस जियोगे धरती पर मन में यह विश्वास जगाओ॥11॥
9383
यत्ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥12॥
गत-आगत में मत भरमाओ वर्तमान की महिमा जानो ।
कल को किसने देखा है आज जिन्दगी को पहचानो॥12॥
स्वास्थ्य में उपयोगी मानसिक स्थिति, उसका विधिवत ध्यान रखते हमारे शास्त्र।
ReplyDeleteडॉक्टर यदि रोगी का आत्मबल बढ़ा सकें तो सम्भवतः यह सर्वोत्तम औषधी होगी...
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