Friday, 17 January 2014

सूक्त - 58

[ऋषि- गौपायन । देवता- मन आवर्तन । छन्द- अनुष्टुप् ।]

9372
यत्ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥1॥

वैद बीमार से यह कहता है ठीक हो तुम कुछ नही हुआ  है ।
यम से वापस ला सकता हूँ तुम्हें निराशा ने छू लिया है॥1॥

9373
यत्ते दिवं यत्पृथिवीं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥2॥

इसी धरा पर ही खुश रहो तुम कहीं और नहीं जा सकते हो ।
तुम्हें स्वस्थ तन-मन देता हूँ मुझे बताओ क्या कहते हो॥2॥

9374
यत्ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥॥3॥

तुम आशा का दामन पकडो खुश होकर जीवन जीना है ।
रोग तुम्हारा हरिण हो गया सुख का अब अमृत पीना है॥3॥

9375
यत्ते चतस्त्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥4॥

उल्टा-पुल्टा मत सोचो तुम तुम बिल्कुल बीमार नहीं हो ।
पुनर्नवा औषधि देता हूँ अब तो तुम एकदम सही हो ॥4॥

9376
यत्ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥5॥

दुःचिन्ता से बाहर निकलो मन को समझाकर वापस लाओ।
जीवन में लालित्य चाहिए आओ सुख-सागर में नहाओ॥5॥

9377
यत्ते मरीचिः प्रवतो मनो जगाम दूरकम्।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ॥6॥

मानव-तन का मोल समझना खुद पर सदा भरोसा करना ।
बहुत दिनों तक यहॉ है रहना गिर कर भी है हमें संभलना॥6॥

9378
यत्ते अपो यदोषदधीर्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तमामसीह क्षयाय जीवसे ॥7॥

आओ आशा का ऑचल पकडें मानव-जीवन का रस पी लें ।
कर्म-भूमि यह तुम्हें बुलाती आओ सुख से जीवन जी लें॥7॥

9379
यत्ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥8॥

अपनी महिमा को पहचानो अपने मन का अवसाद मिटाओ ।
यह जीवन कितना सुन्दर है जियो और जीना सिखलाओ॥8॥

9380
यत्ते पर्वतान्बृहतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥9॥

माथे पर चिन्ता की सलवट यह मानव की पहचान नहीं है ।
तुम्हें बहुत दिन तक जीना है हँस कर देखो खुशी यहीं है॥9॥

9381
यत्ते विश्वमिदं जगन्मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥10॥

मन  को  निराश  मत  होने  दो  कितना सुन्दर है यह जीवन ।
विविध-विधा के फूल खिलेंगे श्रम से सींचो अपना उपवन॥10॥

9382
यत्ते परा: परावतो मनो जगाम दूरकम् ।
तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥11॥

मन  को  कहीं  भटकने  न  दो  जहॉ भी हो वापस आ जाओ ।
सौ बरस जियोगे धरती पर मन में यह विश्वास जगाओ॥11॥

9383
यत्ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम् ।
 तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे॥12॥

गत-आगत में मत भरमाओ वर्तमान की महिमा जानो ।
कल को किसने देखा है आज जिन्दगी को पहचानो॥12॥
   

2 comments:

  1. स्वास्थ्य में उपयोगी मानसिक स्थिति, उसका विधिवत ध्यान रखते हमारे शास्त्र।

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  2. डॉक्टर यदि रोगी का आत्मबल बढ़ा सकें तो सम्भवतः यह सर्वोत्तम औषधी होगी...

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