Saturday, 19 April 2014

सूक्त - 78

[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- जगती ।]

8382
प्र  राजा  वाचं  जनयन्नसिष्यददपो  वसानो  अभि  गा  इयक्षति ।
गृभ्णाति रिप्रमविरस्य तान्वा शुध्दो देवानामुप याति निष्कृतम्॥1॥

परमेश्वर  पर  जिसे  भरोसा  है  प्रभु  उसकी  रक्षा  करता  है ।
उसका  परिमार्जन  करता  है  उसके  दोषों  को  हरता  है ॥1॥

8383
इन्द्राय सोम परि षिच्यसे नृभिर्नृचक्षा ऊर्मिः कविरज्यसे वने ।
पूर्वीर्हि  ते स्त्रुतयः सन्ति यातवे सहस्त्रमश्वा  हरयश्चमूषदः ॥2॥

जो  प्रभु  पर  निर्भर  रहता  है  प्रभु उसका  सम्बल  बनता है ।
तेज - ओज सब कुछ देता है उसका बल- वर्धन  करता  है ॥2॥

8384
समुद्रिया अप्सरसो मनीषिणमासीना अन्तरभि सोममक्षरन् ।
ता ईं हिन्वन्ति हर्म्यस्य सक्षणिं याचन्ते सुम्नं पवमानमक्षितम्॥3॥

प्रभु  उपासना  जो  करते  हैं  प्रभु  उनको  प्रेरित  करते  हैं ।
उन्हें  समर्थ  बना  देते  हैं अपने निकट उन्हें रखते  हैं ॥3॥

8385
गोजिन्नःसोमो रथजिध्दिरण्यजित्स्वर्जिदब्जित्पवते सहस्त्रजित्।
यं  देवासश्चक्रिरे  पीतये  मदं  स्वादिष्ठं  द्रप्समरुणं  मयोभुवम् ॥4॥

प्रभु  की  तुलना  में  जगती  की  सभी  शक्तियॉ  तृण - समान  है ।
परमेश्वर  की  लीला  अद्भुत  है  परमेश्वर  सचमुच  महान  है  ॥4॥

8386
एतानि सोम पवमानो अस्मयुः सत्यानि कृण्वन्द्रविणान्यर्षसि ।
जहि शत्रुमन्तिके दूरके च य उर्वी गव्यूतिमभयं च नस्कृधि॥5॥

दुष्ट - दलन अति आवश्यक है प्रभु रिपु - दल  से  हमें  बचाना ।
तुम्हीं  सुरक्षा  देना  प्रभु - वर  हमें  साहसी अभय  बनाना ॥5॥

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