[ऋषि- कश्यप मारीच । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
8513
परि सुवानो हरिरंशुः पवित्रे रथो न सर्जि सनये हियानः ।
आपच्छ्लोकमिन्द्रियं पूयमानः प्रति देवॉ अजुषत प्रयोभिः॥1॥
प्रभु हम सब को प्रेरित करते रखते हैं हम सबका ध्यान ।
जो भी उपासना करता है बन जाता है मनुज महान॥1॥
8514
अच्छा नृचक्षा असरत्पवित्रे नाम दधानः कविरस्य योनौ ।
सीदन् होतेव सदने चमूषूपेमग्मन्नृषयः सप्त विप्रा: ॥2॥
कर्म - योग की राह रसीली प्रभु से हो जाए साक्षात्कार ।
मन मति संग-संग हो जाए मिल जाए जीवन का सार॥2॥
8515
प्र सुमेधा गातुविद्विश्वदेवः सोमः पुनानः सद एति नित्यम् ।
भुवद्वुश्वेषु काव्येषु रन्ताSनु जनान्यतते पञ्च धीरः ॥3॥
सर्व-व्याप्त है वह परमात्मा कण-कण में है दिन और रात ।
योगी को अनुभव होता है कितनी सुख-कर है यह बात॥3॥
8516
तव त्ये सोम पवमान निण्ये विश्वे देवास्त्रय एकादशासः ।
दश स्वधाभिरधि सानो अव्ये मृजन्ति त्वा नद्यःसप्त यह्वीः॥4॥
सात नाडियॉ सात नदी हैं ये ही प्रभु तक पहुँचाती हैं ।
परमात्मा को पाकर वह स्वयमेव धन्य हो जाती है ॥4॥
8517
तन्नु सत्यं पवमानस्यास्तु यत्र विश्वे कारवः संनसन्त ।
ज्योतिर्यदह्ने अकृणोदु लोकं प्रावन्मनुं दस्यवे करभीकम्॥5॥
परमात्मा पवित्र करता है सत्पथ पर वह ले जाता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता सच पर चलना सिखलाता है॥5॥
8518
परि सद्मेव पशुमान्ति होता राजा न सत्यः समितीरियानः ।
सोमः पुनानःकलशॉ अयासीत्सीदन्मृगो न महिषो वनेषु॥6॥
सत्पथ पर चलने वाले ही सचमुच बडा काम कर पाते हैं ।
दूजे को पहले पार लगाते खुद भी पार उतर जाते हैं ॥6॥
8513
परि सुवानो हरिरंशुः पवित्रे रथो न सर्जि सनये हियानः ।
आपच्छ्लोकमिन्द्रियं पूयमानः प्रति देवॉ अजुषत प्रयोभिः॥1॥
प्रभु हम सब को प्रेरित करते रखते हैं हम सबका ध्यान ।
जो भी उपासना करता है बन जाता है मनुज महान॥1॥
8514
अच्छा नृचक्षा असरत्पवित्रे नाम दधानः कविरस्य योनौ ।
सीदन् होतेव सदने चमूषूपेमग्मन्नृषयः सप्त विप्रा: ॥2॥
कर्म - योग की राह रसीली प्रभु से हो जाए साक्षात्कार ।
मन मति संग-संग हो जाए मिल जाए जीवन का सार॥2॥
8515
प्र सुमेधा गातुविद्विश्वदेवः सोमः पुनानः सद एति नित्यम् ।
भुवद्वुश्वेषु काव्येषु रन्ताSनु जनान्यतते पञ्च धीरः ॥3॥
सर्व-व्याप्त है वह परमात्मा कण-कण में है दिन और रात ।
योगी को अनुभव होता है कितनी सुख-कर है यह बात॥3॥
8516
तव त्ये सोम पवमान निण्ये विश्वे देवास्त्रय एकादशासः ।
दश स्वधाभिरधि सानो अव्ये मृजन्ति त्वा नद्यःसप्त यह्वीः॥4॥
सात नाडियॉ सात नदी हैं ये ही प्रभु तक पहुँचाती हैं ।
परमात्मा को पाकर वह स्वयमेव धन्य हो जाती है ॥4॥
8517
तन्नु सत्यं पवमानस्यास्तु यत्र विश्वे कारवः संनसन्त ।
ज्योतिर्यदह्ने अकृणोदु लोकं प्रावन्मनुं दस्यवे करभीकम्॥5॥
परमात्मा पवित्र करता है सत्पथ पर वह ले जाता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता सच पर चलना सिखलाता है॥5॥
8518
परि सद्मेव पशुमान्ति होता राजा न सत्यः समितीरियानः ।
सोमः पुनानःकलशॉ अयासीत्सीदन्मृगो न महिषो वनेषु॥6॥
सत्पथ पर चलने वाले ही सचमुच बडा काम कर पाते हैं ।
दूजे को पहले पार लगाते खुद भी पार उतर जाते हैं ॥6॥
जीवन में व्यवहार करने के सरल सूत्र।
ReplyDeleteप्रेरक सूक्त...
ReplyDeleteसात नाडियॉ सात नदी हैं ये ही प्रभु तक पहुँचाती हैं ।
ReplyDeleteपरमात्मा को पाकर वह स्वयमेव धन्य हो जाती है ॥4॥
साधना के सूत्र..