Friday, 4 April 2014

सूक्त - 93

[ऋषि- नोधा गौतम । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8519
साकमुक्षो मर्जयन्त स्वसारो दश धीरस्य धीतयो धनुत्रीः ।
हरिः पर्यद्रवज्जा: सूर्यस्य द्रोणं ननक्षे अत्यो न वाजी ॥1॥

योगी मन- निग्रह करता है वह करता है प्रभु का ध्यान ।
कर्म-योग पथ पर आखिर में दर्शन देते  हैं  भगवान॥1॥

8520
सं मातृभिर्न शिशुर्वावशानो वृषा दधन्वे पुरुवारो अद्भिः ।
मर्यो न योषामभि निष्कृतं यन्त्सं गच्छते कलश उस्त्रियाभिः॥2॥

कर्म - योग  वरणीय - पन्थ  है  सत्कर्मों का  है अभियान ।
उद्योगी ही विभूति पाता है चिन्तनीय है यह व्याख्यान॥2॥

8521
उत  प्र  पिप्य ऊधरघ्न्याया  इन्दुर्धाराभिः  सचते  सुमेधा: ।
मूर्धानं गावः पयसा चमूष्वभि श्रीणन्ति वसुभिर्न निक्तैः॥3॥

प्रकाश-रूप वह परमात्मा ही अनन्त-शक्तियों का स्वामी है ।
सत्पथ पर चलने वाला ही  प्रभु का सच्चा अनुगामी  है ॥3॥

8522
स  नो  देवेभिः  पवमान  रदेन्दो  रयिमश्विनं  वावशानः ।
रथिरायतामुशती पुरन्धिरस्मद्रय1गा दावने वसूनाम्॥4॥

ज्ञान - कर्म  दोनों  ही अद्भुत  परमात्मा  तक  पहुँचाते हैं ।
प्रभु ही यश - वैभव  देते  हैं सबको प्रेम से समझाते हैं॥4॥ 

8523
नू नो रयिमुप मास्व नृवन्तं पुनानो वाताप्यं विश्वश्चन्द्रम् ।
प्र वन्दितोरिन्दो तार्यायुः प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात्॥5॥

प्रेम - रूप  है  वह  परमेश्वर  प्रेम - पन्थ  पर  पहुँचाता  है ।
मुझको बहुत-बहुत भाता है क्या जानूँ उससे क्या नाता है॥5॥  

1 comment:

  1. समाज को सुन्दर और व्यवस्थित बनाती शब्द संरचना।

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