Sunday, 6 April 2014

सूक्त - 91

[ऋषि- कश्यप मारीच । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8507
असर्जि  वक्वा  रथ्ये  यथाजौ  धिया मनोता प्रथमो मनीषी ।
दश स्वसारो अंधि सानो अव्येSजन्ति वह्निं सदनान्यच्छ॥1॥

जो सबका हित-चिन्तन करते प्रतिदिन करते प्राणायाम ।
ऐसे साधक  यश  पाते  हैं  खुश  रहते  हैं आठों - याम ॥1॥ 

8508
वीती जनस्य दिव्यस्य कव्यैरधि सुवानो नहुष्येभिरिन्दुः ।
प्र  यो  नृभिरमृतो मर्त्येभिर्मर्मृजानोSविभिर्गोभिरद्भिः ॥2॥

ज्ञान-कर्म  दोनों  ही  सचमुच जीवन में अति आवश्यक है ।
सज्जन सरल सहज होते  हैं  प्रभु  ही  उनका  रक्षक है ॥2॥

8509
वृषा  वृष्णे  रोरुवदंशुरस्मै  पवमानो  रुशदीर्ते  पयो  गोः ।
सहस्त्रमृक्वा पथिभिर्वचोविदध्वस्मभिःसूरो अण्वं वि याति॥3॥

अभीष्ट वही पूरा करता है सज्जन का बढता आभा-मण्डल ।
सूक्ष्म-साधना जो करता है उसको मिलता है चारों बल ॥3॥

8510
रुजा दृळ्हा चिद्रक्षसः सदांसि पुनान इन्द ऊर्णुहि वि वाजान।
वृश्चोपरिष्टात्तुजता  वधेन  ये  अन्ति   दूरादुपनायमेषाम् ॥4॥

जो  साधक  समर्थ  हो  कर  भी  प्रभु  पर  निर्भर  रहते  हैं ।
प्रभु  उसकी  विपदा  हरते  हैं  वे  उसकी  रक्षा  करते  हैं ॥4॥

8511
स  प्रत्न  वन्नव्यसे  विश्ववार  सूक्ताय  पथः  कृणुहि  प्राचः ।
ये दुष्षहासो वनुषा बृहन्तस्तॉस्ते अश्याम पुरुकृत्पुरुक्षो॥5॥

हे परमात्मा पिता हमारे  पथ  के  कण्टक  तुम्हीं  हटाओ ।
अपने सब गुण हमें सिखाओ खट्-रागों से हमें बचाओ॥5॥

8512
एवा पुनानो अपः स्व1र्गा अस्मभ्यं  तोका  तनयानि  भूरि ।
शं नःक्षेत्रमुरु ज्योतिंषि सोम ज्योङ्नःसूर्यं दृशये रिरीहि॥6॥

हे  सोम - देव  यश - वैभव देना  प्राण-पवन  दे  देना  जल ।
सौ बरस सूर्य का दर्शन हो  परमेश्वर  दें  शुभ-शुभ  फल॥6॥

4 comments:

  1. ईश्वर सबके हित रचता है जीवन पथ।

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  2. सब माया प्रभु की लीला है...उसका ओर है न छोर...

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  3. जो सबका हित-चिन्तन करते प्रतिदिन करते प्राणायाम ।
    ऐसे साधक यश पाते हैं खुश रहते हैं आठों - याम ॥1॥


    साधना का महत्व बताती पंक्तियाँ..

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