Wednesday, 9 April 2014

सूक्त - 88

[ऋषि- उशना काव्य देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8486
अयं  सोम  इन्द्र  तुभ्यं  सुन्वे तुभ्यं पवते  त्वमस्य  पाहि ।
त्वं ह यं चकृषे त्वं ववृष इन्दुं  मदाय  युज्याय  सोमम्॥1॥

परमेश्वर मन  पावन  करते  मति में  देते  हैं  शुभ-विचार ।
जो प्रभु की पूजा करते हैं सुख-सागर  में  करते  विहार॥1॥

8487
स ईं रथो न भुरिशाळयोजि  महः  पुरूणि  सातये  वसूनि ।
आदीं विश्वा नहुष्याणि जाता स्वर्षाता वन ऊर्ध्वा नवन्त॥2॥

सोमदेव   ही   गति   देते   हैं   वे   ही   देते   हैं   धन - धान ।
दुष्ट- दलन  वे  ही  करते  हैं  वे  ही  हैं  आनन्द- निधान ॥2॥

8488
वायुर्न यो नियुत्वॉ इष्टयामा नासत्येव हव आ शम्भविष्ठः ।
विश्ववारो द्रविणोदाइव त्मन्पूषेव धीजवनोSसि सोम ॥3॥

सोम - देव  तुम  ही  वरेण्य  हो  पवन - वेग  से चलते हो ।
सुख - सन्तति तुम ही देते हो सबका पोषण करते हो ॥3॥

8489
इन्द्रो न यो महा कर्माणि चक्रिर्हन्ता वृत्राणामसि सोम पूर्भित्।
पैद्वो न हि त्वमहिनाम्नां हन्ता विश्वस्यासि सोम दस्योः॥4॥

अज्ञान-तमस को तुम्हीं मिटाते साधक को  प्रेरित  करते हो ।
हम  सबको  सुख-साधन देते  रिपु-बल से रक्षा करते  हो ॥4॥

8490
अग्निर्न यो वन आ सृज्यमानो वृथा पाजांसि कृणुते नदीषु ।
जनो न युध्वा महत उपब्दिरियर्ति सोमःपवमान ऊर्मिम्॥5॥

जल  में  थल  में और  गगन  में  सोम - देव  रक्षा  करते  हैं ।
आनन्द - अमृत  वे  देते  हैं  वे  सबकी  विपदा  हरते  हैं ॥5॥

8491
एते  सोमा अति  वाराण्यव्या दिव्या न  कोशासो अभ्रवर्षा: ।
वृथा समुद्रं सिन्धवो न नीचीःसुतासो अभि कलशॉ असृग्रन्॥6॥

जिस  साधक  का  मन  पावन  है  वह  ही पाता  है आनन्द ।
चिन्तन-मनन-निदिध्यासन से पा सकता है परमानन्द॥6॥

8492
शुष्मी शर्धो न मारुतं पवस्वानSभिशस्ता दिव्या यथा विट् ।
आपो न मक्षू सुमतिर्भवा नःसहस्त्राप्सा:पृतनाषाण्न यज्ञः॥7॥

परमात्मा  सबको  सुख   देते  सबका  रखते  हैं   वे  ध्यान ।
अनन्त बलों का वह मालिक है वह परमेश्वर कृपानिधान॥7॥

8493
राज्ञो  नु  ते  वरुणस्य  व्रतानि  बृहद्गभीरं  तव  सोम  धाम ।
शुचिष्ट्वमसि प्रियो न मित्रो दक्षाय्यो अर्यमेवासि सोम॥8॥

वह  परमेश्वर  नित्य  शुध्द  है  सख्य-भाव  से अपनाता है ।
नेम-नियम वह ही समझाता प्रेम-पन्थ पर पहुँचाता  है॥8॥
  


2 comments:

  1. वह परमेश्वर नित्य शुध्द है सख्य-भाव से अपनाता है ।
    नेम-नियम वह ही समझाता प्रेम-पन्थ पर पहुँचाता है॥8॥

    वह पल पल की खबर रखता है

    ReplyDelete
  2. सुन्दर काव्यानुवाद।

    ReplyDelete