[ऋषि- वसु भारद्वाज । देवता- पवमान सोम । छन्द- जगती - त्रिष्टुप् ।]
8397
प्र सोमस्य पवमानस्योर्मय इन्द्रस्य यन्ति जठरं सुपेशसः ।
दध्ना यदीमुन्नीता यशसा गवां दानाय शूरमुदमन्दिषुःसुता:॥1॥
पूजनीय पावन परमेश्वर सज्जन को उत्साहित करते हैं ।
अन्तर्मन निर्मल करते हैं भक्तों को संस्कारित करते हैं॥1॥
8398
अच्छा हि सोमः कलशॉ असिष्यददत्यो न वोळ्हा रघुवर्तनिर्वृषा ।
अथा देवानामुभयस्य जन्मनो विद्वॉ अश्नोत्यमुत इतश्च यत् ॥2॥
यदि पथ पर आगे बढना है ज्ञान- कर्म दो ही साधन है ।
हे प्रभु तुम ही दीक्षित करना शतशः तेरा आराधन है ॥2॥
8399
आ नः सोम पवमानः किरा वस्विन्दो भव मघवा राधसो महः ।
शिक्षा वयोधो वसवे सु चेतना मा नो गयमारे अस्मत्परा सिचः॥3॥
वह परमेश्वर वैभव - शाली है हमें भी वैभव का दो दान ।
ज्ञान-वान तुम हमें बनाओ शुभ-धन हमको करो प्रदान ॥3॥
8400
आ नः पूषा पवमानः सुरातयो मित्रो गच्छन्तु वरुणः सजोषसः।
बृहस्पतिर्मरुतो वायुरश्विना त्वष्टा सविता सुयमा सरस्वती॥4॥
परमात्मा हमसे यह कहते हैं सत् - संगति है सबसे उत्तम ।
तुम नीति-निपुण बन जाओ जग को पथ बतलाओ अनुपम॥4॥
8401
उभे द्यावापृथिवी विश्वमिन्वे अर्यमा देवो अदितिर्विधाता ।
भगो नृशंस उर्व1न्तरिक्ष विश्वे देवा: पवमानं जुषन्त॥5॥
हे परमात्मा पावन मन दे दो अज्ञान तमस को तुम्हीं मिटाओ ।
तु सभी कलाओं के ज्ञाता हो हमको भी कुछ तो सिखलाओ॥5॥
8397
प्र सोमस्य पवमानस्योर्मय इन्द्रस्य यन्ति जठरं सुपेशसः ।
दध्ना यदीमुन्नीता यशसा गवां दानाय शूरमुदमन्दिषुःसुता:॥1॥
पूजनीय पावन परमेश्वर सज्जन को उत्साहित करते हैं ।
अन्तर्मन निर्मल करते हैं भक्तों को संस्कारित करते हैं॥1॥
8398
अच्छा हि सोमः कलशॉ असिष्यददत्यो न वोळ्हा रघुवर्तनिर्वृषा ।
अथा देवानामुभयस्य जन्मनो विद्वॉ अश्नोत्यमुत इतश्च यत् ॥2॥
यदि पथ पर आगे बढना है ज्ञान- कर्म दो ही साधन है ।
हे प्रभु तुम ही दीक्षित करना शतशः तेरा आराधन है ॥2॥
8399
आ नः सोम पवमानः किरा वस्विन्दो भव मघवा राधसो महः ।
शिक्षा वयोधो वसवे सु चेतना मा नो गयमारे अस्मत्परा सिचः॥3॥
वह परमेश्वर वैभव - शाली है हमें भी वैभव का दो दान ।
ज्ञान-वान तुम हमें बनाओ शुभ-धन हमको करो प्रदान ॥3॥
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आ नः पूषा पवमानः सुरातयो मित्रो गच्छन्तु वरुणः सजोषसः।
बृहस्पतिर्मरुतो वायुरश्विना त्वष्टा सविता सुयमा सरस्वती॥4॥
परमात्मा हमसे यह कहते हैं सत् - संगति है सबसे उत्तम ।
तुम नीति-निपुण बन जाओ जग को पथ बतलाओ अनुपम॥4॥
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उभे द्यावापृथिवी विश्वमिन्वे अर्यमा देवो अदितिर्विधाता ।
भगो नृशंस उर्व1न्तरिक्ष विश्वे देवा: पवमानं जुषन्त॥5॥
हे परमात्मा पावन मन दे दो अज्ञान तमस को तुम्हीं मिटाओ ।
तु सभी कलाओं के ज्ञाता हो हमको भी कुछ तो सिखलाओ॥5॥
सुन्दर भावानुवाद...
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