[ऋषि- प्रस्कण्व काण्व । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
8529
कनिक्रन्ति हरिरा सृज्यमानः सीदन्वनस्य जठरे पुनानः ।
नृभिर्यतः कृणुते निर्णिजं गा अतो मतीर्जनयत स्वधाभिः॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा भक्तों के मन में बसता है ।
मन को पहले अनुकूल बनाता उस पर कृपा किया करता है॥1॥
8530
हरिः सृजानः पथ्यामृतस्येयर्ति वाचमरितेव नावम् ।
देवो देवानां गुह्यानि नामाविष्कृणोति बर्हिषि प्रवाचे॥2॥
आत्म- ज्ञान हो इसके पहले भक्तों को प्रेरित करता हैं ।
मन का अनुकूलन होने पर आनन्द-राह पर ले चलता है॥2॥
8531
अपामिवेदूर्मयस्तर्तुराणा: प्र मनीषा ईरते सोममच्छ ।
नमस्यन्तीरूप च यन्ति सं चा च विशन्त्युशतीरुशन्तम्॥3॥
पूजा भी जल-ऊर्मि सदृश ही अत्यन्त वेग से चलती है ।
भगवान-भक्त मिल जाते हैं आनन्द-ऊर्मि यह कहती है ॥3॥
8532
तं मर्मृजानं महिषं न सानावंशु दुहन्त्युक्षणं गिरिष्ठाम् ।
तं वावशानं मतयः सचन्ते त्रितो बिभर्ति वरुणं समुद्रे॥4॥
परमेश्वर है अति बल-शाली सज्जन - संग उन्हें प्यारा है ।
परमात्मा अत्यन्त सूक्ष्म है साधक का वही सहारा है॥4॥
8533
इष्यन्वाचमुपवक्तेव होतुः पुनान इन्दो वि ष्या मनीषाम् ।
इन्द्रश्च यत्क्षयथः सौभगाय सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥5॥
हे परम-मित्र हे परमेश्वर तुम प्रज्ञा हमें प्रदान करो ।
सत्पथ तुम ही हमें बताओ तुम ही मेरा खट-राग हरो॥5॥
8529
कनिक्रन्ति हरिरा सृज्यमानः सीदन्वनस्य जठरे पुनानः ।
नृभिर्यतः कृणुते निर्णिजं गा अतो मतीर्जनयत स्वधाभिः॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा भक्तों के मन में बसता है ।
मन को पहले अनुकूल बनाता उस पर कृपा किया करता है॥1॥
8530
हरिः सृजानः पथ्यामृतस्येयर्ति वाचमरितेव नावम् ।
देवो देवानां गुह्यानि नामाविष्कृणोति बर्हिषि प्रवाचे॥2॥
आत्म- ज्ञान हो इसके पहले भक्तों को प्रेरित करता हैं ।
मन का अनुकूलन होने पर आनन्द-राह पर ले चलता है॥2॥
8531
अपामिवेदूर्मयस्तर्तुराणा: प्र मनीषा ईरते सोममच्छ ।
नमस्यन्तीरूप च यन्ति सं चा च विशन्त्युशतीरुशन्तम्॥3॥
पूजा भी जल-ऊर्मि सदृश ही अत्यन्त वेग से चलती है ।
भगवान-भक्त मिल जाते हैं आनन्द-ऊर्मि यह कहती है ॥3॥
8532
तं मर्मृजानं महिषं न सानावंशु दुहन्त्युक्षणं गिरिष्ठाम् ।
तं वावशानं मतयः सचन्ते त्रितो बिभर्ति वरुणं समुद्रे॥4॥
परमेश्वर है अति बल-शाली सज्जन - संग उन्हें प्यारा है ।
परमात्मा अत्यन्त सूक्ष्म है साधक का वही सहारा है॥4॥
8533
इष्यन्वाचमुपवक्तेव होतुः पुनान इन्दो वि ष्या मनीषाम् ।
इन्द्रश्च यत्क्षयथः सौभगाय सुवीर्यस्य पतयः स्याम ॥5॥
हे परम-मित्र हे परमेश्वर तुम प्रज्ञा हमें प्रदान करो ।
सत्पथ तुम ही हमें बताओ तुम ही मेरा खट-राग हरो॥5॥
पूजा भी जल-ऊर्मि सदृश ही अत्यन्त वेग से चलती है ।
ReplyDeleteभगवान-भक्त मिल जाते हैं आनन्द-ऊर्मि यह कहती है ॥3॥
भक्ति मार्ग का निरूपण करती पंक्तियाँ..
प्रेरणा और उत्प्रेरणा, दोनों ही ईश्वर ही देता है।
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