Monday, 7 April 2014

सूक्त - 90

 [ऋषि- वसिष्ठ मैत्रावरुणि । देवता- पवमान सोम । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8501
प्र  हिन्वानो  जनिता रोदस्यो रथो न वाजं सनिष्यन्नयासीत् ।
इन्द्रं गच्छन्नायुधा संशिशानो विश्वा वसु हस्तयोरादधानः॥1॥

आयुध  विविध  धार  वाला  हो  तभी  रहेगा  देश  सुरक्षित ।
नूतन अस्त्र-शस्त्र  जुडने  से  सेना  होगी  पुनः  परीक्षित॥1॥

8502
अभि  त्रिपृष्ठं  वृषणं वयोधामाङ्गूषाणामवावशन्त  वाणीः ।
वना वसानो वरुणो न सिन्धून्वि  रत्नधा दयते वार्याणि॥2॥

वाणी  अविरल   वैभव  गाती  सोम -  देव   की  बारम्बार ।
अम्बर अवनि और अम्बुज पर सोम-देव का है घर-द्वार॥2॥

8503
शूरग्रामः  सर्ववीरः  सहावाञ्जेता  पवस्व  सनिता  धनानि ।
तिग्मायुधःक्षिप्रधन्वा समत्स्वषाळ्हःसाह्वान् पृतनासु शत्रून्॥3॥

धीर-वीर  वह  कहलाता  है  जो  सबका  हित  लेकर  चलता
विविध-विधा के आयुध द्वारा देश-भूमि को रक्षित करता॥3॥

8504
उरुगव्यूतिरभयानि कृण्वन्त्समीचीने आ पवस्वा पुरन्धी ।
अपःसिषासन्नुषसःस्व1र्गा:सं चिक्रदो महो अस्मभ्यं वाजान्॥4॥

धर्म-राह  पर  निर्भय  हो-कर  जो  साधक  चलते  रहते  हैं ।
कर्मानुरूप शुभ फल पाते हैं प्रगति पन्थ पर वे बढते हैं ॥4॥

8505
मत्सि सोम वरुणं मत्सि मित्रं मत्सीन्द्रमिन्दो पवमान विष्णुम् ।
मत्सि शर्धो मारुतं मत्सि देवान्मत्सि महामिन्द्रमिन्दो मदाय॥5॥

कर्म-मार्ग का पथिक हमेशा सबका  प्रिय  बन  जाता  है ।
अध्यात्म राह पर वह चलता है यश-वैभव वह पाता है॥5॥

8506
एवा  राजेव  क्रतुमॉ  अमेन  विश्वा  घनिघ्नद् दुरिता पवस्व ।
इन्दो सूक्ताय वचसे वयो धा यूयं पात स्वस्तिभिःसदा नः॥6॥

शुभ- चिन्तन  ही  शुभ  फल देता आओ यही मार्ग अपनायें ।
सबके हित-चिन्तन से हम भी परमेश्वर का  प्रसाद  पायें॥6॥

4 comments:

  1. सबका हित, सर्वाधिक।

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  2. शुभ- चिन्तन ही शुभ फल देता...शुभ करमन ते कबहुँ न टरो...

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  3. कितने उज्ज्वल विचार ! संस्कृत साहित्य में जैसी विश्व-मंगल की कामना और मानव एवं प्रकृति का तादात्म्य है वह अन्यत्र दुर्लभ है - आप उसे सब के लिए सुलभ कर रही हैं आभार आपका !

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  4. शुभ- चिन्तन ही शुभ फल देता आओ यही मार्ग अपनायें ।
    सबके हित-चिन्तन से हम भी परमेश्वर का प्रसाद पायें॥6॥

    सार्थक पोस्ट !

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