[ऋषि- हविर्धान आङ्गि । देवता- अग्नि । छन्द- जगती- त्रिष्टुप् ।]
8880
वृषा वृष्णे दुदुहे दोहसा दिवः पयांसि यह्वो अदितेरदाभ्यः ।
विश्वं स वेद वरुणो यथा धिया स यज्ञियो यजतु यज्ञियॉ ऋतून्॥1॥
पावन पावक से पावस पाते पृथ्वी पर आती हरियाली ।
खिल उठती है धरा वृष्टि से हरिया जाती है हर डाली॥1॥
8881
रपद्गन्धर्वीरप्या च योषणा नदस्य नादे परि पातु मे मनः।
इष्टस्य मध्ये अदितिर्नि धातु नो भ्राता नो ज्येष्ठःप्रथमो वि वोचति॥2॥
घन-गर्जन मन को ठीक रखे सत्पथ पर प्रभु तुम पहुँचाना ।
सत्कर्मों में लगा रहे मन तुम मेरे प्रेरक बन जाना ॥2॥
8882
सो चिन्नु भद्रा क्षुमती यशस्वत्युषा उवास मनवे स्वर्वती ।
यदीमुशन्तमुशतामनु क्रतुमग्निं होतारं विदथाय जीजनन्॥3॥
उषा - काल है पावन - अवसर जब होती है पूजा-अनुष्ठान ।
हे अग्नि - देव आवाहन है आओ ग्रहण करो हवि-धान ॥3॥
8883
अध त्यं द्रप्सं विभ्वं विचक्षणं विराभरदिषितः श्येनो अध्वरे ।
यदी विशो वृणते दस्ममार्या अग्निं होतारमध धीरजायत॥4॥
अग्नि श्याम-रँग में दिखता है तभी श्येन वह कहलाता है ।
सज्जन के सामीप्य-लाभ सम मंत्रोच्चारण वर-दाता है॥4॥
8884
सदासि रण्वो यवसेव पुष्यते होत्राभिरग्ने मनुषः स्वध्वरः।
विप्रस्य वा यच्छशमान उक्थ्यं1 वाजं ससवॉ उपयासि भूरिभिः॥5॥
अग्नि-देव के विविध रूप हैं सब सुन्दर सब ही मन-मोहक ।
बिना अग्नि के यज्ञ असंभव अग्नि-देव जगती के पोषक॥5॥
8885
उदीरय पितरा जार आ भगमियक्षति हर्यतो हृत्त इष्यति ।
विवक्ति वह्निःस्वपस्यते मखस्तविष्यते असुरो वेपते मती॥6॥
अग्नि - देव अति अद्भुत हैं अति - तेजस्वी उनका रूप ।
दुष्टों को वे दण्डित करते हैं अग्नि - देव भूपों के भूप॥6॥
8886
यस्ते अग्ने सुमतिं मर्तो अक्षत्सहसः सूनो अति स प्र शृण्वे ।
इषं दधानो वहमानो अश्वैरा स द्युमॉ अमवान्भूषति द्यून् ॥7॥
हे अग्नि-देव तुम रक्षा करना तुम धन से सबका घर भरना ।
यश-वैभव देना तुम प्रभुवर वरद-हस्त हम पर भी रखना॥7॥
8887
यदग्न एषा समितिर्भवाति देवी देवेषु यजता यजत्र ।
रत्ना च यद्विभजासि स्वधामो भागं नो अत्र वसुमन्तं वीतात्॥8॥
अग्नि-देव सबको हवि देते जगती को मिलता है हवि-भोग ।
वसुधा ही कुटुम्ब है अपना बस यह ही तो है कर्म-योग ॥8॥
8888
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम् ।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्या: ॥9॥
हे अग्नि-देव तुम ही प्रणम्य हो कर लो मेरी पूजा स्वीकार।
सब देवों के सँग-सँग आओ तुम हो सब गुण के आगार॥9॥
8880
वृषा वृष्णे दुदुहे दोहसा दिवः पयांसि यह्वो अदितेरदाभ्यः ।
विश्वं स वेद वरुणो यथा धिया स यज्ञियो यजतु यज्ञियॉ ऋतून्॥1॥
पावन पावक से पावस पाते पृथ्वी पर आती हरियाली ।
खिल उठती है धरा वृष्टि से हरिया जाती है हर डाली॥1॥
8881
रपद्गन्धर्वीरप्या च योषणा नदस्य नादे परि पातु मे मनः।
इष्टस्य मध्ये अदितिर्नि धातु नो भ्राता नो ज्येष्ठःप्रथमो वि वोचति॥2॥
घन-गर्जन मन को ठीक रखे सत्पथ पर प्रभु तुम पहुँचाना ।
सत्कर्मों में लगा रहे मन तुम मेरे प्रेरक बन जाना ॥2॥
8882
सो चिन्नु भद्रा क्षुमती यशस्वत्युषा उवास मनवे स्वर्वती ।
यदीमुशन्तमुशतामनु क्रतुमग्निं होतारं विदथाय जीजनन्॥3॥
उषा - काल है पावन - अवसर जब होती है पूजा-अनुष्ठान ।
हे अग्नि - देव आवाहन है आओ ग्रहण करो हवि-धान ॥3॥
8883
अध त्यं द्रप्सं विभ्वं विचक्षणं विराभरदिषितः श्येनो अध्वरे ।
यदी विशो वृणते दस्ममार्या अग्निं होतारमध धीरजायत॥4॥
अग्नि श्याम-रँग में दिखता है तभी श्येन वह कहलाता है ।
सज्जन के सामीप्य-लाभ सम मंत्रोच्चारण वर-दाता है॥4॥
8884
सदासि रण्वो यवसेव पुष्यते होत्राभिरग्ने मनुषः स्वध्वरः।
विप्रस्य वा यच्छशमान उक्थ्यं1 वाजं ससवॉ उपयासि भूरिभिः॥5॥
अग्नि-देव के विविध रूप हैं सब सुन्दर सब ही मन-मोहक ।
बिना अग्नि के यज्ञ असंभव अग्नि-देव जगती के पोषक॥5॥
8885
उदीरय पितरा जार आ भगमियक्षति हर्यतो हृत्त इष्यति ।
विवक्ति वह्निःस्वपस्यते मखस्तविष्यते असुरो वेपते मती॥6॥
अग्नि - देव अति अद्भुत हैं अति - तेजस्वी उनका रूप ।
दुष्टों को वे दण्डित करते हैं अग्नि - देव भूपों के भूप॥6॥
8886
यस्ते अग्ने सुमतिं मर्तो अक्षत्सहसः सूनो अति स प्र शृण्वे ।
इषं दधानो वहमानो अश्वैरा स द्युमॉ अमवान्भूषति द्यून् ॥7॥
हे अग्नि-देव तुम रक्षा करना तुम धन से सबका घर भरना ।
यश-वैभव देना तुम प्रभुवर वरद-हस्त हम पर भी रखना॥7॥
8887
यदग्न एषा समितिर्भवाति देवी देवेषु यजता यजत्र ।
रत्ना च यद्विभजासि स्वधामो भागं नो अत्र वसुमन्तं वीतात्॥8॥
अग्नि-देव सबको हवि देते जगती को मिलता है हवि-भोग ।
वसुधा ही कुटुम्ब है अपना बस यह ही तो है कर्म-योग ॥8॥
8888
श्रुधी नो अग्ने सदने सधस्थे युक्ष्वा रथममृतस्य द्रवित्नुम् ।
आ नो वह रोदसी देवपुत्रे माकिर्देवानामप भूरिह स्या: ॥9॥
हे अग्नि-देव तुम ही प्रणम्य हो कर लो मेरी पूजा स्वीकार।
सब देवों के सँग-सँग आओ तुम हो सब गुण के आगार॥9॥
प्रकृति चक्र, सब लगे हुये हैं।
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