Sunday, 2 March 2014

सूक्त - 15

[ऋषि- शङ्ख यामायन । देवता- पितृगण । छन्द- त्रिष्टुप् - जगती ।]

8919
उदीरतामवर   उत्परास   उन्मध्यमा:   पितरः   सोम्यासः ।
असुं   य  ईयुरवृका  ऋतज्ञास्ते  नोSवन्तु  पितरो  हवेषु॥1॥

अनुष्ठान  में  हम  बैठे  हैं  करो  अनुग्रह  तुम  सब  आओ ।
प्रभु हवि-भोग ग्रहण कर लो कुछ प्रेरक-प्रसंग कह जाओ॥1॥

8920
इदं  पितृभ्यो  नमो अस्त्वद्य  ये  पूर्वासो  य  उपरास ईयुः ।
ये  पार्थिवे  रजस्या  निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु॥2॥

पूजनीय  हैं  पूर्व-पिता  भी  जो  पुनः-पुनः पृथ्वी पर आए ।
प्रेम-पात्र परिजन प्रणम्य हैं पथ-पर परिवार पुनः पाए॥2॥

8921
आहं पितृन्त्सुविदत्रॉ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठा:॥3॥

अपने पूर्वज से हम कुछ सीखें अपना जीवन सफल बनायें ।
उनसे विनम्र व्यवहार करें हो सके तो उनके काम आयें॥3॥

8922
बर्हिषदः पितर ऊत्य1 र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।
त  आ  गतावसा  शन्तमेनाथा  नः  शं  योररपो दधात ॥4॥

हे पूर्व-पिता तुम ही प्रणम्य हो कुश-आसन पर बैठो आकर।
जो वस्तु चाहिए ग्रहण करो हम हर्षित हैं तुमको पाकर॥4॥

8923
उपहूता:   पितरः   सोम्यासो   बर्हिष्येषु   निधिषु   प्रियेषु ।
त  ता गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेSवन्त्वस्मान्॥5॥

हे  पूर्व - पिता  आवाहन  है  अर्पित  करते  हैं  हविष्यान्न ।
हम बारम्बार नमन करते हैं पूजन करते हैं धरते ध्यान॥5॥

8924
आच्या  जानु  दक्षिणतो  निषद्येमं  यज्ञमभि  गृणीत विश्वे ।
मा हिंसिष्ट पितरः केनचिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम॥6॥

आराम   की   मुद्रा   में  बैठो  तुम  देते  रहो  मुझे  उपदेश ।
हे पूर्व-पिता गुण के निधान तुम से ही है पावन-परिवेश॥6॥

8925
आसीनासो   अरुणीनामुपस्थे रयिं  धत्त  दाशुषे  मर्त्याय ।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात॥7॥

वरद - हस्त  हम पर रखना प्रभु यश-वैभव भी देते रहना ।
सुख-सन्तति भी देना भगवन तुम सबकी रक्षा करना॥7॥

8926
ये   नः  पूर्वे  पितरः सोम्यासोSनूहिरे  सोमपीथं  वसिष्ठा: ।
तेभिर्यमः  संरराणो   हवींष्युशन्नुशद्भिः  प्रतिकाममत्तु॥8॥

पूज्य-जनों के जो सेवक हैं उन पर देना है समुचित ध्यान।
वे होनहार सैनिक भविष्य के वे होंगे कल के अभिमान॥8॥    

8927
ये   तातृषुर्देवत्रा   जेहमाना   होत्राविदः  स्तोमतष्टासो   अर्कैः ।
आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैःकव्यैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥9॥

देवत्व - प्राप्ति  के पथ पर तुम हो करो राष्ट्र  का  नव-निर्माण ।
धन की कमी कभी न  होगी जब तक है इस  तन  में प्राण॥9॥

8928
ये  सत्यासो  हविरदो  हविष्पा  इन्द्रेण  देवैः सरथं दधाना: ।
आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥10॥

अग्नि - वायु  का  युग्म अनूठा इस पर अनेक अन्वेषण हो ।
दिव्य--पदार्थ घुली सरिता पर पुनः-पुनः परिशोधन हो॥10॥

8929
अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सुप्रणीतयः।
अत्ता  हवींषि  प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन॥11॥

पावक-पुराण  को  समझें  जानें अनगिन   हैं इनके आयाम ।
विविध-विभिन्न नाम हैं इनके गुण क्रम से हैं सारे नाम॥11॥

8930
त्वमग्न  ईळितो  जातवेदोSवाड्ढव्यानि  सुरभीणि  कृत्वी ।
प्रादा:पितृभ्यःस्वधया ते अक्षन्नध्दि त्वं देव प्रयता हवींषि॥12॥

हवि सुगन्धि विस्तारित करता बन जाता है कवच-वितान ।
इस पर हमें शोध करना है हम क्यों गाते हैं साम-गान ॥12॥

8931
ये  चेह  पितरो  ये  च  नेह  यॉश्च  विद्म  यॉ  उ  च न प्रविद्म ।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदःस्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व॥13॥

पूर्व - पिता  प्रतिदिन  प्रणम्य  हैं सम्प्रेषण  से देते ज्ञान ।
वे  नित  रहते  साथ हमारे रखते सदा हमारा ध्यान॥13॥

8932
ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवःस्वधया मादयन्ते।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां   यथावशं   तन्वं  कल्पयस्व ॥14॥

देव - सदृश  हैं  पितर  हमारे  वे हम पर प्यार लुटाते हैं ।
अनुदान अदृश्य वही देते हैं अद्भुत ये रिश्ते-नाते हैं॥14॥              

3 comments:

  1. पितरों को समर्पित सुंदर वाणी..

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  2. पितरों का समुचित सम्मान।

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  3. पितरों को याद रखने की प्रथा है...

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