[ऋषि- शङ्ख यामायन । देवता- पितृगण । छन्द- त्रिष्टुप् - जगती ।]
8919
उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितरः सोम्यासः ।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोSवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अनुष्ठान में हम बैठे हैं करो अनुग्रह तुम सब आओ ।
प्रभु हवि-भोग ग्रहण कर लो कुछ प्रेरक-प्रसंग कह जाओ॥1॥
8920
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु॥2॥
पूजनीय हैं पूर्व-पिता भी जो पुनः-पुनः पृथ्वी पर आए ।
प्रेम-पात्र परिजन प्रणम्य हैं पथ-पर परिवार पुनः पाए॥2॥
8921
आहं पितृन्त्सुविदत्रॉ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठा:॥3॥
अपने पूर्वज से हम कुछ सीखें अपना जीवन सफल बनायें ।
उनसे विनम्र व्यवहार करें हो सके तो उनके काम आयें॥3॥
8922
बर्हिषदः पितर ऊत्य1 र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।
त आ गतावसा शन्तमेनाथा नः शं योररपो दधात ॥4॥
हे पूर्व-पिता तुम ही प्रणम्य हो कुश-आसन पर बैठो आकर।
जो वस्तु चाहिए ग्रहण करो हम हर्षित हैं तुमको पाकर॥4॥
8923
उपहूता: पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ।
त ता गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेSवन्त्वस्मान्॥5॥
हे पूर्व - पिता आवाहन है अर्पित करते हैं हविष्यान्न ।
हम बारम्बार नमन करते हैं पूजन करते हैं धरते ध्यान॥5॥
8924
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्वे ।
मा हिंसिष्ट पितरः केनचिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम॥6॥
आराम की मुद्रा में बैठो तुम देते रहो मुझे उपदेश ।
हे पूर्व-पिता गुण के निधान तुम से ही है पावन-परिवेश॥6॥
8925
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय ।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात॥7॥
वरद - हस्त हम पर रखना प्रभु यश-वैभव भी देते रहना ।
सुख-सन्तति भी देना भगवन तुम सबकी रक्षा करना॥7॥
8926
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासोSनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठा: ।
तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु॥8॥
पूज्य-जनों के जो सेवक हैं उन पर देना है समुचित ध्यान।
वे होनहार सैनिक भविष्य के वे होंगे कल के अभिमान॥8॥
8927
ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोमतष्टासो अर्कैः ।
आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैःकव्यैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥9॥
देवत्व - प्राप्ति के पथ पर तुम हो करो राष्ट्र का नव-निर्माण ।
धन की कमी कभी न होगी जब तक है इस तन में प्राण॥9॥
8928
ये सत्यासो हविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं दधाना: ।
आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥10॥
अग्नि - वायु का युग्म अनूठा इस पर अनेक अन्वेषण हो ।
दिव्य--पदार्थ घुली सरिता पर पुनः-पुनः परिशोधन हो॥10॥
8929
अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सुप्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन॥11॥
पावक-पुराण को समझें जानें अनगिन हैं इनके आयाम ।
विविध-विभिन्न नाम हैं इनके गुण क्रम से हैं सारे नाम॥11॥
8930
त्वमग्न ईळितो जातवेदोSवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी ।
प्रादा:पितृभ्यःस्वधया ते अक्षन्नध्दि त्वं देव प्रयता हवींषि॥12॥
हवि सुगन्धि विस्तारित करता बन जाता है कवच-वितान ।
इस पर हमें शोध करना है हम क्यों गाते हैं साम-गान ॥12॥
8931
ये चेह पितरो ये च नेह यॉश्च विद्म यॉ उ च न प्रविद्म ।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदःस्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व॥13॥
पूर्व - पिता प्रतिदिन प्रणम्य हैं सम्प्रेषण से देते ज्ञान ।
वे नित रहते साथ हमारे रखते सदा हमारा ध्यान॥13॥
8932
ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवःस्वधया मादयन्ते।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥14॥
देव - सदृश हैं पितर हमारे वे हम पर प्यार लुटाते हैं ।
अनुदान अदृश्य वही देते हैं अद्भुत ये रिश्ते-नाते हैं॥14॥
8919
उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितरः सोम्यासः ।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोSवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अनुष्ठान में हम बैठे हैं करो अनुग्रह तुम सब आओ ।
प्रभु हवि-भोग ग्रहण कर लो कुछ प्रेरक-प्रसंग कह जाओ॥1॥
8920
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु॥2॥
पूजनीय हैं पूर्व-पिता भी जो पुनः-पुनः पृथ्वी पर आए ।
प्रेम-पात्र परिजन प्रणम्य हैं पथ-पर परिवार पुनः पाए॥2॥
8921
आहं पितृन्त्सुविदत्रॉ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठा:॥3॥
अपने पूर्वज से हम कुछ सीखें अपना जीवन सफल बनायें ।
उनसे विनम्र व्यवहार करें हो सके तो उनके काम आयें॥3॥
8922
बर्हिषदः पितर ऊत्य1 र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।
त आ गतावसा शन्तमेनाथा नः शं योररपो दधात ॥4॥
हे पूर्व-पिता तुम ही प्रणम्य हो कुश-आसन पर बैठो आकर।
जो वस्तु चाहिए ग्रहण करो हम हर्षित हैं तुमको पाकर॥4॥
8923
उपहूता: पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ।
त ता गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेSवन्त्वस्मान्॥5॥
हे पूर्व - पिता आवाहन है अर्पित करते हैं हविष्यान्न ।
हम बारम्बार नमन करते हैं पूजन करते हैं धरते ध्यान॥5॥
8924
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्वे ।
मा हिंसिष्ट पितरः केनचिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम॥6॥
आराम की मुद्रा में बैठो तुम देते रहो मुझे उपदेश ।
हे पूर्व-पिता गुण के निधान तुम से ही है पावन-परिवेश॥6॥
8925
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय ।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात॥7॥
वरद - हस्त हम पर रखना प्रभु यश-वैभव भी देते रहना ।
सुख-सन्तति भी देना भगवन तुम सबकी रक्षा करना॥7॥
8926
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासोSनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठा: ।
तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु॥8॥
पूज्य-जनों के जो सेवक हैं उन पर देना है समुचित ध्यान।
वे होनहार सैनिक भविष्य के वे होंगे कल के अभिमान॥8॥
8927
ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोमतष्टासो अर्कैः ।
आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैःकव्यैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥9॥
देवत्व - प्राप्ति के पथ पर तुम हो करो राष्ट्र का नव-निर्माण ।
धन की कमी कभी न होगी जब तक है इस तन में प्राण॥9॥
8928
ये सत्यासो हविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं दधाना: ।
आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैःपितृभिर्घर्मसद्भिः॥10॥
अग्नि - वायु का युग्म अनूठा इस पर अनेक अन्वेषण हो ।
दिव्य--पदार्थ घुली सरिता पर पुनः-पुनः परिशोधन हो॥10॥
8929
अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सुप्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन॥11॥
पावक-पुराण को समझें जानें अनगिन हैं इनके आयाम ।
विविध-विभिन्न नाम हैं इनके गुण क्रम से हैं सारे नाम॥11॥
8930
त्वमग्न ईळितो जातवेदोSवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी ।
प्रादा:पितृभ्यःस्वधया ते अक्षन्नध्दि त्वं देव प्रयता हवींषि॥12॥
हवि सुगन्धि विस्तारित करता बन जाता है कवच-वितान ।
इस पर हमें शोध करना है हम क्यों गाते हैं साम-गान ॥12॥
8931
ये चेह पितरो ये च नेह यॉश्च विद्म यॉ उ च न प्रविद्म ।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदःस्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व॥13॥
पूर्व - पिता प्रतिदिन प्रणम्य हैं सम्प्रेषण से देते ज्ञान ।
वे नित रहते साथ हमारे रखते सदा हमारा ध्यान॥13॥
8932
ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवःस्वधया मादयन्ते।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥14॥
देव - सदृश हैं पितर हमारे वे हम पर प्यार लुटाते हैं ।
अनुदान अदृश्य वही देते हैं अद्भुत ये रिश्ते-नाते हैं॥14॥
पितरों को समर्पित सुंदर वाणी..
ReplyDeleteपितरों का समुचित सम्मान।
ReplyDeleteपितरों को याद रखने की प्रथा है...
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