Tuesday, 4 March 2014

सूक्त - 13

[ऋषि- विवस्वान् आदित्य । देवता- हविर्धान । छन्द- त्रिष्टुप् - जगती ।]

8898
युजे    वां  ब्रह्म   पूर्व्यं   नमोभिर्वि  श्लोक  एतु  पथ्येव  सूरेः ।
शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्रा आ ये धामानि दिव्यानि तस्थुः॥1॥

हे  प्रभु  मन  वाणी अर्पित  है  हमको  वाणी  का दो वरदान ।
दिव्य-ज्ञान  को  हम  भी  जानें वेद-ऋचाओं का दो ज्ञान॥1॥

8899
यमे   इव   यतमाने   यदैतं   प्र  वा  भरन्मानुषा  देवयन्तः ।
आ सीदतं स्वमु लोकं विदाने स्वासस्थे भवतमिन्दवे नः॥2॥

मन - वाणी  हो  सही - दिशा  में  तभी ध्येय-पथ मिलता है ।
सँग-सँग  रहते हैं प्रभु भी आनन्द-कमल तब खिलता है ॥2॥

8900
पञ्च   पदानि   रुपो   अन्वरोहं   चतुष्पदीमन्वेमि   व्रतेन ।
अक्षरेण  प्रति  मिम  एतामृतस्य  नाभावधि सं पुनामि॥3॥

सत्कर्म करे साधक फिर भी वह पञ्च-कोष का रखे ध्यान ।
वाणी  के  चार  पदों को जाने सृष्टि-नेम का भी हो भान ॥3॥

8901
देवेभ्यः   कमवृणीत   मृत्युं   प्रजायै   कममृतं   नावृणीत ।
बृहस्पतिं यज्ञमकृण्वत ऋषिं प्रियां यमस्तन्वं1 प्रारिरेचीत्॥4॥

मौत - अमरता  कर्मों  से  है  बस  इसीलिए  है  कर्म - योग ।
देह  की  सुन्दर  रचना  करता  और  देता  है विविध भोग ॥4॥

8902
सप्त क्षरन्ति शिशवे मरुत्वते  पित्रे  पुत्रासो अप्यवीवतन्नृतम्।
उभे  इदस्योभयस्य  राजत  उभे  यतेते उभयस्य पपुष्यतः॥5॥

वेद  - ऋचा   है  अन्तर्यात्रा   कर्म  -  योग   का   है   आख्यान ।
ज्ञान-कर्म की समुचित व्याख्या मन-वाणी का है अभियान॥5॥  
  

4 comments:

  1. गहरी अभिव्यक्तियाँ..

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  2. मन - वाणी हो सही - दिशा में तभी ध्येय-पथ मिलता है ।
    सँग-सँग रहते हैं प्रभु भी आनन्द-कमल तब खिलता है ॥2॥

    बहुत सुंदर संदेश.. आभार !

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  3. अप्रतिम । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  4. सकारात्मक सूक्त...

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