Thursday, 13 March 2014

सूक्त - 4

[ऋषि--त्रित आप्त्य । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8820
प्र  ते यक्षि  प्र  त  इयर्मि  मन्म  भुवो यथा वन्द्यो नो हवेषु ।
धन्वन्निव प्रपा असि त्वमग्न इयक्षवे पूरवे प्रत्न राजन्॥1॥

अग्नि - देव  की  इच्छा  से  ही अविरल  होते  हैं  अनुष्ठान ।
सब  सत्कर्म  निरन्तर करते वे रखते हैं सबका ध्यान ॥1॥

8821
यं त्वा जनासो अभि सञ्चरन्ति गाव उष्णमिव व्रजं यविष्ठ।
दूतो   देवानामसि   मर्त्यानामन्तर्महॉश्चरसि   रोचनेन ॥2॥

परमेश्वर तुम  ही प्रणम्य हो एक - मात्र  हो  तुम्हीं  सहारा ।
सबको आकर्षित  करता  है अति तेजस्वी रूप तुम्हारा ॥2॥

8822
शिशुं न त्वा जेन्यं वर्धयन्ती माता बिभर्ति सचनस्यमाना ।
धनोरधि  प्रवता  यासि  हर्यञ्जिगीषसे  पशुरिवावसृष्टः ॥3॥

सभी  प्यार  करते  हैं  तुमको आओ  चिदाकाश  के  द्वारा ।
तुम जल थल नभ में रहते हो नर-तन में है वास तुम्हारा॥3॥

8823
मूरा अमूर न वयं चिकित्वो महित्वमग्ने त्वमङ्ग वित्से ।
शये वव्रिश्चरति जिह्वयादन्रेरिह्यते युवतिं विश्पतिः सन्॥4॥

हम नहीं जानते तेरी महिमा तुम्हीं बताओ और समझाओ।
हम  हैं  प्रजा तुम्हारी भगवन पावन-प्रसाद  देते जाओ ॥4॥ 

8824
कूचिज्जायते सनयासु नव्यो वने तस्थौ पलितो धूमकेतुः ।
अस्नातापो वृषभो न प्र वेति सचेतसो यं प्रणयन्त मर्ता:॥5॥

स्वतः प्रकट  हो  जाते  हो  तुम  सूखी - समिधाओं के  द्वारा ।
सर्व-व्याप्त हो फिर भी तो सान्निध्य चाहिए हमें तुम्हारा॥5॥

8825
तनूत्यजेव   तस्करा   वनर्गू   रशनाभिर्दशाभिरभ्यधीताम् ।
इयं ते अग्ने नव्यसी मनीषा युक्ष्वा रथं न शुचयद्भिरङ्गैः॥6॥

विषय - डोर  से  बँधे  हुए  हैं  कैसे  मिटे  मोह  का  बन्धन ।
तुम ही बेडा पार लगाओ अभय रहे मेरा यह  तन - मन ॥6॥ 

8826
ब्रह्म  च  ते  जातवेदो  नमश्चेयं  च  गीः  सदमिद्वर्धनी  भूत् ।
रक्षाणो अग्ने तनयानि तोका रक्षोत नस्तन्वो3 अप्रयुच्छन्॥7॥

स्तुति  का अर्घ्य तुम्हीं स्वीकारो तेरे दर्शन की है अभिलाषा ।
तुम वरद-हस्त मुझ पर रखना यह अन्तर्मन की है भाषा॥7॥    

4 comments:

  1. आप क्लिष्ट श्लोकों का भावानुवाद सहज हिंदी दोहों में कर के अत्यंत पुण्य का कार्य कर रही हैं...बधाईयां...

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  2. स्वतः प्रकट हो जाते हो तुम सूखी - समिधाओं के द्वारा ।
    सर्व-व्याप्त हो फिर भी तो सान्निध्य चाहिए हमें तुम्हारा॥5॥

    जो सब जगह है.. फिर भी नजर नहीं आता..वही ती जानने योग्य है

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  3. आपका ये कार्य सराहनीय है...बेहद सुंदर।।।

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  4. बहुत ही प्यारा अनुवाद..

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