[ऋषि- कश्यप मारीच । देवता- पवमान सोम । छन्द- पंक्ति ।]
8795
य इन्द्रोः पवमानस्यानु धामान्यक्रमीत् ।
तमाहुः सुप्रजा इति यस्ते सोमाविधन्मन इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥1॥
जब कोई अनुष्ठान करता है उपासना में रत रहता है ।
तब नित-नूतन अनुभव होते मन में प्रभु-प्रेम उमडता है॥1॥
8796
ऋषे मंत्रकृतां स्तोमैः कश्यपोद्वर्धयन्गिरः ।
सोमं नमस्य राजानं यो जज्ञे वीरुधां पतिरिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥2॥
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो तुम हमें ज्ञान का दे दो दान ।
वाणी के वैभव के द्वारा हे प्रभु मुझे सिखा दो ध्यान ॥2॥
8797
सप्त दिशो नानासूर्या: सप्त होतार ऋत्विजः ।
देवा आदित्या ये सप्त तेभिःसोमाभि रक्ष न इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥3॥
दिव्य- दृष्टि मिल जाती उसको जो मनुज मुक्त हो जाता है ।
सात-लोक शुभ- फल देते हैं मन-वृन्दावन बन जाता है॥3॥
8798
यत्ते राजञ्छृतं हविस्तेन सोमाभि रक्ष नः ।
अरातीवा मा नस्तारीन्मो च नःकिं चनाममदिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥4॥
हे परमेश्वर तुम रक्षा करना सतत सफल हो अनुष्ठान ।
वरद-हस्त तुम हम पर रखना मिले मुक्ति हे कृपा-निधान॥4॥
॥ इति नवमं मण्डलम् समाप्तम् ॥
8795
य इन्द्रोः पवमानस्यानु धामान्यक्रमीत् ।
तमाहुः सुप्रजा इति यस्ते सोमाविधन्मन इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥1॥
जब कोई अनुष्ठान करता है उपासना में रत रहता है ।
तब नित-नूतन अनुभव होते मन में प्रभु-प्रेम उमडता है॥1॥
8796
ऋषे मंत्रकृतां स्तोमैः कश्यपोद्वर्धयन्गिरः ।
सोमं नमस्य राजानं यो जज्ञे वीरुधां पतिरिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥2॥
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो तुम हमें ज्ञान का दे दो दान ।
वाणी के वैभव के द्वारा हे प्रभु मुझे सिखा दो ध्यान ॥2॥
8797
सप्त दिशो नानासूर्या: सप्त होतार ऋत्विजः ।
देवा आदित्या ये सप्त तेभिःसोमाभि रक्ष न इन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥3॥
दिव्य- दृष्टि मिल जाती उसको जो मनुज मुक्त हो जाता है ।
सात-लोक शुभ- फल देते हैं मन-वृन्दावन बन जाता है॥3॥
8798
यत्ते राजञ्छृतं हविस्तेन सोमाभि रक्ष नः ।
अरातीवा मा नस्तारीन्मो च नःकिं चनाममदिन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥4॥
हे परमेश्वर तुम रक्षा करना सतत सफल हो अनुष्ठान ।
वरद-हस्त तुम हम पर रखना मिले मुक्ति हे कृपा-निधान॥4॥
॥ इति नवमं मण्डलम् समाप्तम् ॥
रंगों से सराबोर होली की शुभकामनायें...
ReplyDeleteमन-वृन्दावन बन जाता है
ReplyDeleteमन मोह लिया इस पंक्ति ने।
होली की शुभ कामनाएं ...बहुत सुंदर अनुवाद है आपका
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