[ऋषि- -यम वैवस्वत । देवता- यम । छन्द- त्रिष्टुप्- अनुष्टुप्- बृहती ।]
8903
परेयिवांसं प्रवतो महीरनु बहुभ्यः पन्थामनुपस्पशानम् ।
वैवस्वतं सङ्गमनं जनानां यमं राजानं हविषा दुवस्य॥1॥
हे प्रभु उत्तम जीवन देना उत्तम हो आचार - विचार ।
हम उत्तम पथ के राही हों उत्तम हो आहार-विहार॥1॥
8904
यमो नो गातुं प्रथमो विवेद नैषा गव्यूतिरपभर्तवा उ ।
यत्रा नः पूर्वे पितरःपरेयुरेना जज्ञाना:पथ्या3 अनु स्वाहा॥2॥
पूर्व-पिता जिस राह से गुजरे हमको भी उस पथ पर जाना है।
मौत से कोई बच नहीं सकता यह रिश्ता बहुत पुराना है॥2॥
8905
मातली कव्यैर्यमो अङ्गिरोभिर्बृहस्पतिरृकवभिर्वाववृधानः।
यॉश्च देवा वावृधुर्ये च देवान्त्स्वाहान्ये स्वधान्ये मदन्ति॥3॥
अन्वेषण है शेष गगन का यह है अति-आवश्यक काम ।
ऋषियों का भी योगदान हो तब होगी उपलब्धि ललाम ॥3॥
8906
इमं यम प्रस्तरमा हि सीदाङ्गिरोभिः पितृभिः संविदानः ।
आ त्वा मन्त्रा:कविशस्ता वहन्त्वेना राजन्हविषा मादयस्व॥4॥
हे यम आओ आवाहन है अर्पित है तुमको हवि - भोग ।
हम भी नचिकेता हैं प्रभु जी तुम हमें भी दे दो ज्ञान-योग ॥4॥
8907
अङ्गिरोभिरा गहि यज्ञियेभिर्यम वैरूपेरिह मादयस्व ।
विवस्वन्तं हुवे यः पिता तेSस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्य॥5॥
हे सूर्य - पुत्र हे परम-मित्र आओ बैठो कुश-आसन पर ।
आदित्य-देव भी आए हैं आनंदित हों तुमको लख-कर॥5॥
8908
अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयं सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥6॥
सोम के इच्छुक पितर हमारे आवाहन करने पर आए हैं ।
ज्ञान-तपस्या के विग्रह हैं हम उनकी दया-दृष्टि पाए हैं॥6॥
8909
प्रेहि प्रेहि पथिभिः पूर्व्येभिर्यत्रा: नः पूर्वे पितरः परेयुः ।
उभा राजाना स्वधया मदन्ता यमं पश्यासि वरुणं च देवम्॥7॥
पूर्व-पिता के पथ पर तो ही हम सबको चलते जाना है ।
वरद - हस्त पाथेय बनेगा अमृत पी - कर बढते जाना है॥7॥
8910
सं गच्छस्व पितृभिः सं यमेनेष्टापूर्तेन परमे व्योमन् ।
हित्वायावद्यं पुनरस्तमेहि ससं गच्छस्व तन्वा सुवर्चा:।॥8॥
हम सबको कर्मानुरूप ही पथ पर मिल जाएगी छाया ।
हम हैं अजर-अमर आत्मा घट-घट में वह ब्रह्म समाया॥8॥
8911
अपेत वीत वि च सर्पतातोSस्मा एतं पितरो लोकमक्रन् ।
अहोभिरद्भिरक्तुभिर्व्यक्तं यमो ददात्यवसानमस्मै ॥9॥
दुष्ट - कर्म करके प्राणी जब देह - त्याग करके जाता है ।
सुख-कर राह नहीं मिलती है पुनः पुनः वह पछताता है॥9॥
8912
अति द्रव सारमेयौ श्वानौ चतुरक्षौ शबलौ साधुना पथा ।
अथा पितृन्त्सुविदत्रॉ उपेहि यमेन ये सधमादं मदन्ति॥10॥
एक - एक दिन बीत रहा है अब तो सज्जन का सँग करो ।
प्रभु के प्रति समर्पित हो कर राज-योग सँग ध्यान धरो॥10॥
8913
यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी नृचक्षसौ ।
ताभ्यामेनं परि देहि राजन्त्स्वस्ति चास्मा अनमीवं च धेहि॥11॥
हे यम रक्षा करो हमारी इस तन - मन को दो आरोग्य ।
प्रति - पल बढता हूँ पास तुम्हारे कर्मानुसार पाना है भोग्य॥11॥
8914
उरूणसावसुतृपा उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनॉ अनु ।
तावस्मभ्यं दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम् ॥12॥
यम से बचना नामुमकिन है उनका कर्तव्य प्राण हरना है ।
यह देह-त्याग आनन्द-रूप हो वैसे भी तो सबको मरना है॥12॥
8915
यमाय सोमं सुनुत यमाय जुहुता हविः ।
यमं ह यज्ञो गच्छत्यग्निदूतो अरङ्कृतः॥13॥
हे अग्नि - देव हे यज्ञ - दूत देवताओं को दे दो हवि-भोग ।
हे यम तुम सोम-पान कर लो सोम में है औषधि का योग॥13॥
8916
यमाय घृतवध्दविर्जुहोत प्र च तिष्ठत ।
स नो देवेष्वा यमद्दीर्घमायुः प्र जीवसे॥14॥
हे यम - देव प्रणम्य तुम्हीं हो नमन है तुमको बारम्बार ।
दीर्घ-आयु तुम देना प्रभुवर तुम ही तो पहुँचाते हो पार॥14॥
8917
यमाय मधुमत्तमं राज्ञे हव्यं जुहोतन ।
इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भयः॥15॥
हे यम - देव यही विनती है ग्रहण करो तुम हविष्यान्न ।
सत्पथ पर तुम ही पहुँचाना चरैवेति का हो अभियान॥15॥
8918
त्रिकद्रुकेभिः पतति षळुवीरेकमिद्बृहत् ।
त्रिष्टुब्गायत्री छन्दांसि सर्वा ता यम आहिता॥16॥
हे यम रक्षा करो हमारी देते रहना तुम धन - धान ।
सत्पथ पर हम चलें निरंतर बनना प्रेरक रखना ध्यान॥16॥
8903
परेयिवांसं प्रवतो महीरनु बहुभ्यः पन्थामनुपस्पशानम् ।
वैवस्वतं सङ्गमनं जनानां यमं राजानं हविषा दुवस्य॥1॥
हे प्रभु उत्तम जीवन देना उत्तम हो आचार - विचार ।
हम उत्तम पथ के राही हों उत्तम हो आहार-विहार॥1॥
8904
यमो नो गातुं प्रथमो विवेद नैषा गव्यूतिरपभर्तवा उ ।
यत्रा नः पूर्वे पितरःपरेयुरेना जज्ञाना:पथ्या3 अनु स्वाहा॥2॥
पूर्व-पिता जिस राह से गुजरे हमको भी उस पथ पर जाना है।
मौत से कोई बच नहीं सकता यह रिश्ता बहुत पुराना है॥2॥
8905
मातली कव्यैर्यमो अङ्गिरोभिर्बृहस्पतिरृकवभिर्वाववृधानः।
यॉश्च देवा वावृधुर्ये च देवान्त्स्वाहान्ये स्वधान्ये मदन्ति॥3॥
अन्वेषण है शेष गगन का यह है अति-आवश्यक काम ।
ऋषियों का भी योगदान हो तब होगी उपलब्धि ललाम ॥3॥
8906
इमं यम प्रस्तरमा हि सीदाङ्गिरोभिः पितृभिः संविदानः ।
आ त्वा मन्त्रा:कविशस्ता वहन्त्वेना राजन्हविषा मादयस्व॥4॥
हे यम आओ आवाहन है अर्पित है तुमको हवि - भोग ।
हम भी नचिकेता हैं प्रभु जी तुम हमें भी दे दो ज्ञान-योग ॥4॥
8907
अङ्गिरोभिरा गहि यज्ञियेभिर्यम वैरूपेरिह मादयस्व ।
विवस्वन्तं हुवे यः पिता तेSस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्य॥5॥
हे सूर्य - पुत्र हे परम-मित्र आओ बैठो कुश-आसन पर ।
आदित्य-देव भी आए हैं आनंदित हों तुमको लख-कर॥5॥
8908
अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयं सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम॥6॥
सोम के इच्छुक पितर हमारे आवाहन करने पर आए हैं ।
ज्ञान-तपस्या के विग्रह हैं हम उनकी दया-दृष्टि पाए हैं॥6॥
8909
प्रेहि प्रेहि पथिभिः पूर्व्येभिर्यत्रा: नः पूर्वे पितरः परेयुः ।
उभा राजाना स्वधया मदन्ता यमं पश्यासि वरुणं च देवम्॥7॥
पूर्व-पिता के पथ पर तो ही हम सबको चलते जाना है ।
वरद - हस्त पाथेय बनेगा अमृत पी - कर बढते जाना है॥7॥
8910
सं गच्छस्व पितृभिः सं यमेनेष्टापूर्तेन परमे व्योमन् ।
हित्वायावद्यं पुनरस्तमेहि ससं गच्छस्व तन्वा सुवर्चा:।॥8॥
हम सबको कर्मानुरूप ही पथ पर मिल जाएगी छाया ।
हम हैं अजर-अमर आत्मा घट-घट में वह ब्रह्म समाया॥8॥
8911
अपेत वीत वि च सर्पतातोSस्मा एतं पितरो लोकमक्रन् ।
अहोभिरद्भिरक्तुभिर्व्यक्तं यमो ददात्यवसानमस्मै ॥9॥
दुष्ट - कर्म करके प्राणी जब देह - त्याग करके जाता है ।
सुख-कर राह नहीं मिलती है पुनः पुनः वह पछताता है॥9॥
8912
अति द्रव सारमेयौ श्वानौ चतुरक्षौ शबलौ साधुना पथा ।
अथा पितृन्त्सुविदत्रॉ उपेहि यमेन ये सधमादं मदन्ति॥10॥
एक - एक दिन बीत रहा है अब तो सज्जन का सँग करो ।
प्रभु के प्रति समर्पित हो कर राज-योग सँग ध्यान धरो॥10॥
8913
यौ ते श्वानौ यम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिरक्षी नृचक्षसौ ।
ताभ्यामेनं परि देहि राजन्त्स्वस्ति चास्मा अनमीवं च धेहि॥11॥
हे यम रक्षा करो हमारी इस तन - मन को दो आरोग्य ।
प्रति - पल बढता हूँ पास तुम्हारे कर्मानुसार पाना है भोग्य॥11॥
8914
उरूणसावसुतृपा उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनॉ अनु ।
तावस्मभ्यं दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम् ॥12॥
यम से बचना नामुमकिन है उनका कर्तव्य प्राण हरना है ।
यह देह-त्याग आनन्द-रूप हो वैसे भी तो सबको मरना है॥12॥
8915
यमाय सोमं सुनुत यमाय जुहुता हविः ।
यमं ह यज्ञो गच्छत्यग्निदूतो अरङ्कृतः॥13॥
हे अग्नि - देव हे यज्ञ - दूत देवताओं को दे दो हवि-भोग ।
हे यम तुम सोम-पान कर लो सोम में है औषधि का योग॥13॥
8916
यमाय घृतवध्दविर्जुहोत प्र च तिष्ठत ।
स नो देवेष्वा यमद्दीर्घमायुः प्र जीवसे॥14॥
हे यम - देव प्रणम्य तुम्हीं हो नमन है तुमको बारम्बार ।
दीर्घ-आयु तुम देना प्रभुवर तुम ही तो पहुँचाते हो पार॥14॥
8917
यमाय मधुमत्तमं राज्ञे हव्यं जुहोतन ।
इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भयः॥15॥
हे यम - देव यही विनती है ग्रहण करो तुम हविष्यान्न ।
सत्पथ पर तुम ही पहुँचाना चरैवेति का हो अभियान॥15॥
8918
त्रिकद्रुकेभिः पतति षळुवीरेकमिद्बृहत् ।
त्रिष्टुब्गायत्री छन्दांसि सर्वा ता यम आहिता॥16॥
हे यम रक्षा करो हमारी देते रहना तुम धन - धान ।
सत्पथ पर हम चलें निरंतर बनना प्रेरक रखना ध्यान॥16॥
यम से बचना नामुमकिन है उनका कर्तव्य प्राण हरना है ।
ReplyDeleteयह देह-त्याग आनन्द-रूप हो वैसे भी तो सबको मरना है॥12॥
मृत्यु का स्वागत भी वैसे ही हो जैसे जन्म का...
मृत्यु के दर्शन में जीवन का आनन्द ढूँढा हमने।
ReplyDeleteअद्भुत सूक्त...
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