Tuesday, 11 March 2014

सूक्त - 6

[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8834
अयं    स    यस्य    शर्मन्नवोभिरग्नेरेधते    जरिताभिष्टौ ।
ज्येष्ठेभिर्यो   भानुभिरृषूणां   पर्येति   परिवीतो  विभावा॥1॥

प्रभु सत्पथ पर तुम ले चलना सत्कर्मों से सुख-वैभव पायें ।
हमें  सुरक्षा  तुम  ही  देना अनुष्ठान  में  हम  जुट  जायें ॥1॥

8835
यो        भानुभिर्विभावा       विभात्यग्निर्देवेभिरृतावाजस्त्रः ।
आ यो विवाय सख्या सखिभ्योSपरिह्वृतो अत्यो न सप्तिः॥2॥

अग्नि - देव  में  दिव्य - शक्ति  है उन्हें  नमन  है  बारम्बार ।
वे  यश - वैभव  के  दाता  हैं उनका  वैभव है अपरम्पार ॥2॥

8836
ईशे     यो    विश्वस्या    देववीतेरीशे   विश्वायुरुषसो   व्युष्टौ ।
आ यस्मिन्मना  हवींष्यग्नावरिष्टरथः  स्कभ्नाति शूषैः ॥3॥

परमेश्वर   हैं  पिता   हमारे    वही   बन्धु   हैं  सखा   हमारे ।
तुझ में अद्भुत गति है भगवन आए हैं हम शरण तिहारे ॥3॥

8837
शूषेभिर्वृधो  जुषाणो  अर्कैर्देवॉ  अच्छा  रघुपत्वा  जिगाति ।
मन्द्रो होता स जुह्वा3 यजिष्ठःसम्मिश्लो अग्निरा जिघर्ति देवान्॥4॥

अग्नि - देव  हविषा  ले-ले  कर  पूरी  पृथ्वी  पर  पहुँचाते हैं । 
ओजोन - परत  पर  छा-कर  वे  दूषण  से  धरा बचाते हैं ॥4॥

8838
तमुस्त्रामिन्द्रं  न  रेजमानमग्निं  गीर्भिर्नमोभिरा कृणुध्वम् ।
आ यं विप्रासो मतिभिर्गृणन्ति जातवेदसं जुह्वं सहानाम् ॥5॥

हवि-कण नभ में जा-जा करके ओजोन-परत को भरता है ।
धरा प्रदूषण से बचती नभ अन्वेषण को तत्पर रहता है॥5॥

8839
सं  यस्मिन्विश्वा  वसूनि जग्मुर्वाजे नाश्वा: सप्तीवन्त एवैः ।
अस्मे ऊतीरिन्द्रवाततमा अर्वाचीना अग्न आ कृणुध्व ॥6॥

जीवन-रण में अत्यावश्यक हैं रक्षा के नवीन-तम साधन ।
देश के वैज्ञानिक जागो  रक्षा के  दो  समुचित-संसाधन॥6॥

8840
अधा   ह्यग्ने   मह्ना   निषद्या  सद्यो  जज्ञानो  हव्यो   बभूथ ।
तं  ते  देवासो अनु  केतमायन्नधावर्धन्त  प्रथमास  ऊमा:॥7॥

अग्नि - देव  की  अतुलित  महिमा वे सबका रखते हैं ध्यान ।
हम उनके भाव समझ पायें पथ का हो अविरल-अभियान॥7॥              

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर काव्यानुवाद।

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  2. अग्नि हवन के रूप में पर्यावरण का रक्षण करती है...बढ़िया ...

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  3. आपका यह बेजोड़ योगदान पुस्तक रूप में शीघ्र मार्केट में आये , मंगलकामनाएं आपको !!

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  4. यज्ञ की उपयोगिता को बल देतीं पंक्तियाँ..

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