[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
8834
अयं स यस्य शर्मन्नवोभिरग्नेरेधते जरिताभिष्टौ ।
ज्येष्ठेभिर्यो भानुभिरृषूणां पर्येति परिवीतो विभावा॥1॥
प्रभु सत्पथ पर तुम ले चलना सत्कर्मों से सुख-वैभव पायें ।
हमें सुरक्षा तुम ही देना अनुष्ठान में हम जुट जायें ॥1॥
8835
यो भानुभिर्विभावा विभात्यग्निर्देवेभिरृतावाजस्त्रः ।
आ यो विवाय सख्या सखिभ्योSपरिह्वृतो अत्यो न सप्तिः॥2॥
अग्नि - देव में दिव्य - शक्ति है उन्हें नमन है बारम्बार ।
वे यश - वैभव के दाता हैं उनका वैभव है अपरम्पार ॥2॥
8836
ईशे यो विश्वस्या देववीतेरीशे विश्वायुरुषसो व्युष्टौ ।
आ यस्मिन्मना हवींष्यग्नावरिष्टरथः स्कभ्नाति शूषैः ॥3॥
परमेश्वर हैं पिता हमारे वही बन्धु हैं सखा हमारे ।
तुझ में अद्भुत गति है भगवन आए हैं हम शरण तिहारे ॥3॥
8837
शूषेभिर्वृधो जुषाणो अर्कैर्देवॉ अच्छा रघुपत्वा जिगाति ।
मन्द्रो होता स जुह्वा3 यजिष्ठःसम्मिश्लो अग्निरा जिघर्ति देवान्॥4॥
अग्नि - देव हविषा ले-ले कर पूरी पृथ्वी पर पहुँचाते हैं ।
ओजोन - परत पर छा-कर वे दूषण से धरा बचाते हैं ॥4॥
8838
तमुस्त्रामिन्द्रं न रेजमानमग्निं गीर्भिर्नमोभिरा कृणुध्वम् ।
आ यं विप्रासो मतिभिर्गृणन्ति जातवेदसं जुह्वं सहानाम् ॥5॥
हवि-कण नभ में जा-जा करके ओजोन-परत को भरता है ।
धरा प्रदूषण से बचती नभ अन्वेषण को तत्पर रहता है॥5॥
8839
सं यस्मिन्विश्वा वसूनि जग्मुर्वाजे नाश्वा: सप्तीवन्त एवैः ।
अस्मे ऊतीरिन्द्रवाततमा अर्वाचीना अग्न आ कृणुध्व ॥6॥
जीवन-रण में अत्यावश्यक हैं रक्षा के नवीन-तम साधन ।
देश के वैज्ञानिक जागो रक्षा के दो समुचित-संसाधन॥6॥
8840
अधा ह्यग्ने मह्ना निषद्या सद्यो जज्ञानो हव्यो बभूथ ।
तं ते देवासो अनु केतमायन्नधावर्धन्त प्रथमास ऊमा:॥7॥
अग्नि - देव की अतुलित महिमा वे सबका रखते हैं ध्यान ।
हम उनके भाव समझ पायें पथ का हो अविरल-अभियान॥7॥
8834
अयं स यस्य शर्मन्नवोभिरग्नेरेधते जरिताभिष्टौ ।
ज्येष्ठेभिर्यो भानुभिरृषूणां पर्येति परिवीतो विभावा॥1॥
प्रभु सत्पथ पर तुम ले चलना सत्कर्मों से सुख-वैभव पायें ।
हमें सुरक्षा तुम ही देना अनुष्ठान में हम जुट जायें ॥1॥
8835
यो भानुभिर्विभावा विभात्यग्निर्देवेभिरृतावाजस्त्रः ।
आ यो विवाय सख्या सखिभ्योSपरिह्वृतो अत्यो न सप्तिः॥2॥
अग्नि - देव में दिव्य - शक्ति है उन्हें नमन है बारम्बार ।
वे यश - वैभव के दाता हैं उनका वैभव है अपरम्पार ॥2॥
8836
ईशे यो विश्वस्या देववीतेरीशे विश्वायुरुषसो व्युष्टौ ।
आ यस्मिन्मना हवींष्यग्नावरिष्टरथः स्कभ्नाति शूषैः ॥3॥
परमेश्वर हैं पिता हमारे वही बन्धु हैं सखा हमारे ।
तुझ में अद्भुत गति है भगवन आए हैं हम शरण तिहारे ॥3॥
8837
शूषेभिर्वृधो जुषाणो अर्कैर्देवॉ अच्छा रघुपत्वा जिगाति ।
मन्द्रो होता स जुह्वा3 यजिष्ठःसम्मिश्लो अग्निरा जिघर्ति देवान्॥4॥
अग्नि - देव हविषा ले-ले कर पूरी पृथ्वी पर पहुँचाते हैं ।
ओजोन - परत पर छा-कर वे दूषण से धरा बचाते हैं ॥4॥
8838
तमुस्त्रामिन्द्रं न रेजमानमग्निं गीर्भिर्नमोभिरा कृणुध्वम् ।
आ यं विप्रासो मतिभिर्गृणन्ति जातवेदसं जुह्वं सहानाम् ॥5॥
हवि-कण नभ में जा-जा करके ओजोन-परत को भरता है ।
धरा प्रदूषण से बचती नभ अन्वेषण को तत्पर रहता है॥5॥
8839
सं यस्मिन्विश्वा वसूनि जग्मुर्वाजे नाश्वा: सप्तीवन्त एवैः ।
अस्मे ऊतीरिन्द्रवाततमा अर्वाचीना अग्न आ कृणुध्व ॥6॥
जीवन-रण में अत्यावश्यक हैं रक्षा के नवीन-तम साधन ।
देश के वैज्ञानिक जागो रक्षा के दो समुचित-संसाधन॥6॥
8840
अधा ह्यग्ने मह्ना निषद्या सद्यो जज्ञानो हव्यो बभूथ ।
तं ते देवासो अनु केतमायन्नधावर्धन्त प्रथमास ऊमा:॥7॥
अग्नि - देव की अतुलित महिमा वे सबका रखते हैं ध्यान ।
हम उनके भाव समझ पायें पथ का हो अविरल-अभियान॥7॥
बहुत ही सुन्दर काव्यानुवाद।
ReplyDeleteअग्नि हवन के रूप में पर्यावरण का रक्षण करती है...बढ़िया ...
ReplyDeleteआपका यह बेजोड़ योगदान पुस्तक रूप में शीघ्र मार्केट में आये , मंगलकामनाएं आपको !!
ReplyDeleteयज्ञ की उपयोगिता को बल देतीं पंक्तियाँ..
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