Monday, 17 March 2014

सूक्त - 112

[ऋषि- शिशु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- पंक्ति ।]

8780
नानानं वा उ नो धियो वि व्रतानि जनानाम् ।
तक्षा रिष्टं रुतं भिषग्ब्रह्मा सुन्वन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥1॥

कलाकार रचना करता है  प्रतिभा  से  ही  होता  निर्माण ।
अपनी गति अपने हाथों है हो सकता है नूतन निर्वाण॥1॥

8781
जरतीभिरोषधीभः पर्णेभिः शकुनानाम् ।
कार्मारो अश्मभिर्द्युभिर्हिरण्यवन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परिस्त्रव॥2॥

जो  पवन-वेग  से  उडता  है  उत्तम आयुध  सँग  रहता  है ।
उस पर आशीष बरसता है जो भी सत्पथ पर चलता है॥2॥

8782
कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना ।
नानाधियो वसूयवोSनु गा इव तस्थिमेन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥3॥

जीवन  का  उद्देश्य  परम हो मन को आकर्षित  करती  माया ।
तब भी प्रभु तुम प्रेरित करना बंधन  से उबरे  मेरी  काया ॥3॥

8783
अश्वो वोळ्हा सुखं रथं हसनामुपमन्त्रिणः ।
शेपो रोमण्वन्तौ भेदौ वारिन्मण्डूक इच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्त्रव॥4॥

स्तर - अनुरूप   कर्म   होते   हैं   परस्पर   प्रिय   करते   परिहास ।
हे प्रभु जीवन- लक्ष्य  बताना  मैं  स्वयं  न  बन  जाऊँ  उपहास॥4॥  

4 comments:


  1. स्तर - अनुरूप कर्म होते हैं परस्पर प्रिय करते परिहास ।
    हे प्रभु जीवन- लक्ष्य बताना मैं स्वयं न बन जाऊँ उपहास॥4॥
    हर श्लोक अपने आप में जीवन अर्थ छुपाये हुए है...

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  2. सुन्दर काव्यानुवाद।

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  3. But Shep in penis. Romvanto is Hairy Bhedo is to penetrate. ?????

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  4. मैं आपका आशय समझ नहीं रही हूँ, कृपया हिंदी में स्पष्ट कीजिए ।

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