Saturday, 29 March 2014

सूक्त - 99

[ऋषि- रेभसूनू काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- अनुष्टुप्-बृहती ।]

8628
आ   हर्यताय   धृष्णवे   धनुस्तन्वन्ति   पौंस्यम् ।
शुक्रां वयन्त्यसुराय निर्णिजं विपामग्रे महीयुवः॥1॥

यदि जीवन का ध्येय बडा हो परमेश्वर का कर लो ध्यान ।
विस्तृत होगा आभा-मण्डल बनता है अनुकूल वितान॥1॥

8629
अध  क्षपा  परिष्कृतो  वाजॉ  अभि  प्र  गाहते ।
यदी विवस्वतो धियो हरिं हिन्वन्ति यातवे॥2॥

जिसकी  सोच  सकारात्मक  है  वही  सफलता  पाता  है ।
कर्म योग है मार्ग परीक्षित पथिक आगे बढता जाता है॥2॥

8630
तमस्य मर्जयामसि मदो य  इन्द्रपातमः ।
यं गाव आसभिर्दधुः पुरा नूनं च सूरयः॥3॥

प्रभु - कृपा  बरसती  रहती  है  हम सब हैं उनकी सन्तान ।
सत्पथ  पर  चलने  वाला  ही  पूरा  करता है अभियान॥3॥

8631
तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत् ।
उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः॥4॥

अति  पावन  है  वह  परमेश्वर  वेद - ऋचायें  करतीं  गान ।
उसकी महिमा अति-अद्भुत है ऋषि को होता उसका भान॥4॥

8632
तमुक्षमाणमव्यये  वारे पुनन्ति धर्णसिम् ।
दूतं न पूर्वचित्तय आ शासते मनीषिणः॥5॥

अनन्त-शक्ति  का  वह स्वामी  है  वह सबकी रक्षा करता है ।
वह ही हम सबका आश्रय है वह  सबकी  विपदा हरता है॥5॥

8633
स  पुनानो मदिन्तमः सोमश्चमूषु  सीदति ।
पशौ न रेत आदधत्पतिर्वचस्यते धियः॥6॥

हे  आनन्द - रूप  परमेश्वर  वरद - हस्त  हम  पर  रखना । 
उपासना के योग्य तुम्हीं हो समुचित शिक्षा देते रहना॥6॥

8634
स  मृज्यते सुकर्मभिर्देवो देवेभ्यः सुतः ।
विदे यदासु संददिर्महीरपो वि गाहते॥7॥

कर्म - मार्ग  की  महिमा  भारी  यह  है  परमेश्वर  की राह ।
जो भी मॉगो वह देता है छोटी  न  रखना अपनी  चाह ॥7॥

8635
सुत  इन्दो पवित्र आ नृभिर्यतो  वि  नीयसे ।
इन्द्राय मत्सरिन्तमश्चमूष्वा नि षीदसि॥8॥

हे  प्रकाश - पुञ्ज  परमेश्वर  हम  करते  हैं  तेरा  आवाहन । 
सखा-सदृश हो तुम्हीं हमारे कहॉ छिपे हो हे मन-भावन॥8॥ 

2 comments:

  1. यदि जीवन का ध्येय बडा हो परमेश्वर का कर लो ध्यान ।
    विस्तृत होगा आभा-मण्डल बनता है अनुकूल वितान॥1॥

    परमेश्वर महान है

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  2. कर्ममार्ग है एक सृष्टि में।

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