[ऋषि- रेभसूनू काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- अनुष्टुप्-बृहती ।]
8628
आ हर्यताय धृष्णवे धनुस्तन्वन्ति पौंस्यम् ।
शुक्रां वयन्त्यसुराय निर्णिजं विपामग्रे महीयुवः॥1॥
यदि जीवन का ध्येय बडा हो परमेश्वर का कर लो ध्यान ।
विस्तृत होगा आभा-मण्डल बनता है अनुकूल वितान॥1॥
8629
अध क्षपा परिष्कृतो वाजॉ अभि प्र गाहते ।
यदी विवस्वतो धियो हरिं हिन्वन्ति यातवे॥2॥
जिसकी सोच सकारात्मक है वही सफलता पाता है ।
कर्म योग है मार्ग परीक्षित पथिक आगे बढता जाता है॥2॥
8630
तमस्य मर्जयामसि मदो य इन्द्रपातमः ।
यं गाव आसभिर्दधुः पुरा नूनं च सूरयः॥3॥
प्रभु - कृपा बरसती रहती है हम सब हैं उनकी सन्तान ।
सत्पथ पर चलने वाला ही पूरा करता है अभियान॥3॥
8631
तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत् ।
उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः॥4॥
अति पावन है वह परमेश्वर वेद - ऋचायें करतीं गान ।
उसकी महिमा अति-अद्भुत है ऋषि को होता उसका भान॥4॥
8632
तमुक्षमाणमव्यये वारे पुनन्ति धर्णसिम् ।
दूतं न पूर्वचित्तय आ शासते मनीषिणः॥5॥
अनन्त-शक्ति का वह स्वामी है वह सबकी रक्षा करता है ।
वह ही हम सबका आश्रय है वह सबकी विपदा हरता है॥5॥
8633
स पुनानो मदिन्तमः सोमश्चमूषु सीदति ।
पशौ न रेत आदधत्पतिर्वचस्यते धियः॥6॥
हे आनन्द - रूप परमेश्वर वरद - हस्त हम पर रखना ।
उपासना के योग्य तुम्हीं हो समुचित शिक्षा देते रहना॥6॥
8634
स मृज्यते सुकर्मभिर्देवो देवेभ्यः सुतः ।
विदे यदासु संददिर्महीरपो वि गाहते॥7॥
कर्म - मार्ग की महिमा भारी यह है परमेश्वर की राह ।
जो भी मॉगो वह देता है छोटी न रखना अपनी चाह ॥7॥
8635
सुत इन्दो पवित्र आ नृभिर्यतो वि नीयसे ।
इन्द्राय मत्सरिन्तमश्चमूष्वा नि षीदसि॥8॥
हे प्रकाश - पुञ्ज परमेश्वर हम करते हैं तेरा आवाहन ।
सखा-सदृश हो तुम्हीं हमारे कहॉ छिपे हो हे मन-भावन॥8॥
8628
आ हर्यताय धृष्णवे धनुस्तन्वन्ति पौंस्यम् ।
शुक्रां वयन्त्यसुराय निर्णिजं विपामग्रे महीयुवः॥1॥
यदि जीवन का ध्येय बडा हो परमेश्वर का कर लो ध्यान ।
विस्तृत होगा आभा-मण्डल बनता है अनुकूल वितान॥1॥
8629
अध क्षपा परिष्कृतो वाजॉ अभि प्र गाहते ।
यदी विवस्वतो धियो हरिं हिन्वन्ति यातवे॥2॥
जिसकी सोच सकारात्मक है वही सफलता पाता है ।
कर्म योग है मार्ग परीक्षित पथिक आगे बढता जाता है॥2॥
8630
तमस्य मर्जयामसि मदो य इन्द्रपातमः ।
यं गाव आसभिर्दधुः पुरा नूनं च सूरयः॥3॥
प्रभु - कृपा बरसती रहती है हम सब हैं उनकी सन्तान ।
सत्पथ पर चलने वाला ही पूरा करता है अभियान॥3॥
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तं गाथया पुराण्या पुनानमभ्यनूषत् ।
उतो कृपन्त धीतयो देवानां नाम बिभ्रतीः॥4॥
अति पावन है वह परमेश्वर वेद - ऋचायें करतीं गान ।
उसकी महिमा अति-अद्भुत है ऋषि को होता उसका भान॥4॥
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तमुक्षमाणमव्यये वारे पुनन्ति धर्णसिम् ।
दूतं न पूर्वचित्तय आ शासते मनीषिणः॥5॥
अनन्त-शक्ति का वह स्वामी है वह सबकी रक्षा करता है ।
वह ही हम सबका आश्रय है वह सबकी विपदा हरता है॥5॥
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स पुनानो मदिन्तमः सोमश्चमूषु सीदति ।
पशौ न रेत आदधत्पतिर्वचस्यते धियः॥6॥
हे आनन्द - रूप परमेश्वर वरद - हस्त हम पर रखना ।
उपासना के योग्य तुम्हीं हो समुचित शिक्षा देते रहना॥6॥
8634
स मृज्यते सुकर्मभिर्देवो देवेभ्यः सुतः ।
विदे यदासु संददिर्महीरपो वि गाहते॥7॥
कर्म - मार्ग की महिमा भारी यह है परमेश्वर की राह ।
जो भी मॉगो वह देता है छोटी न रखना अपनी चाह ॥7॥
8635
सुत इन्दो पवित्र आ नृभिर्यतो वि नीयसे ।
इन्द्राय मत्सरिन्तमश्चमूष्वा नि षीदसि॥8॥
हे प्रकाश - पुञ्ज परमेश्वर हम करते हैं तेरा आवाहन ।
सखा-सदृश हो तुम्हीं हमारे कहॉ छिपे हो हे मन-भावन॥8॥
यदि जीवन का ध्येय बडा हो परमेश्वर का कर लो ध्यान ।
ReplyDeleteविस्तृत होगा आभा-मण्डल बनता है अनुकूल वितान॥1॥
परमेश्वर महान है
कर्ममार्ग है एक सृष्टि में।
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