[ऋषि- अनानत पारुच्छेपि । देवता- पवमान सोम । छन्द- अत्यष्टि ।]
8777
अया रुचा हरिण्या पुनानो विश्वा द्वेषांसि तरति स्वयुग्वभिः सूरो न स्वयुग्वभिः।
धारा सुतस्य रोचते पुनानो अरुषो हरिः ।
विश्वा यद्रूपा परियात्यृक्वभिः सप्तास्येभिरृक्वभिः ॥1॥
शूर सूर्य - सम ही होता है वह भी तमस मिटाता है ।
वह अपनी तेजस्वी छवि से दुष्टों को सबक सिखाता है॥1॥
8778
त्वं त्यत्पणीनां विदो वसु सं मातृभिर्मर्जयसि स्व आ दम ऋतस्य धीतिभिर्दमे।
परावतो न साम तद्यत्रा रणन्ति धीतयः ।
त्रिधातुभिररुषीभिर्वयो दधे रोचमानो वयो दधे ॥2॥
भिन्न-भिन्न प्रतिभा से मानव दुनियॉ में जगह बनाता है ।
प्रभु ने हमको जो प्रतिभा दी है वह व्यक्तित्व में नजर आता है॥2॥
8779
पूर्वामनु प्रदिशं याति चेतितत्सं रश्मिभिर्यतते दर्शतो रथो दैव्यो
दर्शतो रथः । अग्मन्नुक्थानि पौंस्येन्द्रं जैत्राय हर्षयन् ।
वज्रश्च यद्भवथो अनपच्युता समत्स्वनपच्युता ॥3॥
दिव्य तेज हो हर मानव में अन्धकार भी डर-कर भागे ।
हर प्राणी यश-वैभव पाए तमो-निशा से हर कोई जागे॥3॥
8777
अया रुचा हरिण्या पुनानो विश्वा द्वेषांसि तरति स्वयुग्वभिः सूरो न स्वयुग्वभिः।
धारा सुतस्य रोचते पुनानो अरुषो हरिः ।
विश्वा यद्रूपा परियात्यृक्वभिः सप्तास्येभिरृक्वभिः ॥1॥
शूर सूर्य - सम ही होता है वह भी तमस मिटाता है ।
वह अपनी तेजस्वी छवि से दुष्टों को सबक सिखाता है॥1॥
8778
त्वं त्यत्पणीनां विदो वसु सं मातृभिर्मर्जयसि स्व आ दम ऋतस्य धीतिभिर्दमे।
परावतो न साम तद्यत्रा रणन्ति धीतयः ।
त्रिधातुभिररुषीभिर्वयो दधे रोचमानो वयो दधे ॥2॥
भिन्न-भिन्न प्रतिभा से मानव दुनियॉ में जगह बनाता है ।
प्रभु ने हमको जो प्रतिभा दी है वह व्यक्तित्व में नजर आता है॥2॥
8779
पूर्वामनु प्रदिशं याति चेतितत्सं रश्मिभिर्यतते दर्शतो रथो दैव्यो
दर्शतो रथः । अग्मन्नुक्थानि पौंस्येन्द्रं जैत्राय हर्षयन् ।
वज्रश्च यद्भवथो अनपच्युता समत्स्वनपच्युता ॥3॥
दिव्य तेज हो हर मानव में अन्धकार भी डर-कर भागे ।
हर प्राणी यश-वैभव पाए तमो-निशा से हर कोई जागे॥3॥
होली की शुभकामनायें...
ReplyDeleteदिव्य तेज हो हर मानव में अन्धकार भी डर-कर भागे ।
Deleteहर प्राणी यश-वैभव पाए तमो-निशा से हर कोई जागे॥3॥
बहुत सुंदर ....सार्थक..
जागरण ही प्राप्य है..
ReplyDeleteजगत चलाने में लगी प्रतिभा का कुछ अंश मानव को भी मिला है, तभी वह जी पा रहा है।
ReplyDelete