Monday, 10 March 2014

सूक्त - 7

[ऋषि- त्रित आप्तय । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8841
स्वस्ति नो दिवो अग्ने  पृथिव्या विश्वायुर्धेहि  यजथाय देव ।
सचेमहि  तव  दस्म  प्रकेतैरुरुष्या  ण  उरुभिर्देव  शंसैः ॥1॥

हे  अग्नि - देव  आवाहन  है  आओ ग्रहण  करो  हवि-भोग ।
अन्न - धान  हमको  दे  देना रक्षा करना हर लेना  रोग ॥1॥

8842
इमा अग्ने  मतयस्तुभ्यं जाता गोभिरश्वैरभि गृणन्ति राधः।
यदा ते मर्तो अनु भोगमानड्वसो दधानो मतिभिःसुजात॥2॥

परमेश्वर  तुम  ही  प्रणम्य  हो  वेद - ऋचायें  करतीं  गान ।
तुम  ही  धरती  के  मालिक़  हो मुझको ऐसा होता भान ॥2॥

8843
अग्निं मन्ये पितरमग्निपापिमग्निं भ्रातरं सदमित्सखायम्।
अग्नेरनीकं  बृहतः  सपर्यं  दिवि   शुक्रं   यजतं   सूर्यस्य ॥3॥

परमेश्वर  है  पिता  हमारा  शुभ - चिन्तक  है  सखा  हमारा ।
वह आनन्द - रूप ओजस्वी है हम रक्षित हैं प्रभु के द्वारा ॥3॥

8844
सिध्रा अग्ने  धियो अस्मे सनुत्रीर्यं त्रायसे दम आ नित्यहोता ।
ऋतावा  स  रोहिदश्वः  पुरुक्षुर्द्युभिरस्मा  अहभिर्वाममस्तु ॥4॥

प्रभु  मनो - कामना  पूरी  करना कर्म-योग हो सफल हमारा ।
धन और धान सभी को देना सदा मिले सान्निध्य तुम्हारा॥4॥

8845
द्युभिर्हितं   मित्रमिव   प्रयोगं   प्रत्नमृत्विजमध्वरस्य  जारम् ।
बाहुभ्यामग्निमायवोSजनन्त  विक्षु  होतारं न्यसादयन्त॥5॥

सर्जक  पालक  पोषक  तुम   हो  नमन  करते  हैं  बारम्बार ।
घट - घट  में  है  वास  तुम्हारा  तेरी  लीला  है अपरम्पार ॥5॥

8846
स्वयं  यजस्व  दिवि  देव  देवान्किं  ते  पाकः  कृणवदप्रचेता: ।
यथायज   ऋतुभिर्देव   देवानेवा   यजस्व   तन्वं   सुजात ॥6॥

जगती  की  रचना  अद्भुत  है  तुम  ही  हो  सबके  पालनहार ।
सुख - साधन  सबको  देते  हो दुष्टों पर करते तुम्हीं प्रहार ॥6॥

8847
भवा  नो अग्नेSवितोत  गोपा  भवा  वयस्कृदुत  नो  वयोधा: ।
रास्वा च नःसुमहो हव्यदातिं त्रास्वोत नस्तन्वो3 अप्रयच्छुन्॥7॥

हे  अग्नि - देव  हे  परम - मित्र  षड् - रिपुओं  से  रक्षा करना ।
अन्न - धान  देते  रहना  प्रभु  तुम  ही मन की पीडा हरना ॥7॥      


6 comments:

  1. श्लोकों का रूपांतरण तथा सुंदर दोहे...

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  2. अग्नि पालक भी संहारक भी.......सुंदर अनुवाद.....महिला दिवस की शुभकामनाएं
    शकुन्तला जी ......

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  3. आरती में अग्नि की लपट देख रहा था, सम्मोहन सा देखता ही रहा।

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  4. परमेश्वर है पिता हमारा शुभ - चिन्तक है सखा हमारा ।
    वह आनन्द - रूप ओजस्वी है हम रक्षित हैं प्रभु के द्वारा ॥3॥
    ....सदैव की तरह अनुपम प्रस्तुति..आभार

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  5. नोनी चरण स्पर्श पवित्र करते मन को और राह दिखाते सूक्त

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  6. अग्निदेव को नमन..

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