[ऋषि- त्रित आप्तय । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]
8841
स्वस्ति नो दिवो अग्ने पृथिव्या विश्वायुर्धेहि यजथाय देव ।
सचेमहि तव दस्म प्रकेतैरुरुष्या ण उरुभिर्देव शंसैः ॥1॥
हे अग्नि - देव आवाहन है आओ ग्रहण करो हवि-भोग ।
अन्न - धान हमको दे देना रक्षा करना हर लेना रोग ॥1॥
8842
इमा अग्ने मतयस्तुभ्यं जाता गोभिरश्वैरभि गृणन्ति राधः।
यदा ते मर्तो अनु भोगमानड्वसो दधानो मतिभिःसुजात॥2॥
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो वेद - ऋचायें करतीं गान ।
तुम ही धरती के मालिक़ हो मुझको ऐसा होता भान ॥2॥
8843
अग्निं मन्ये पितरमग्निपापिमग्निं भ्रातरं सदमित्सखायम्।
अग्नेरनीकं बृहतः सपर्यं दिवि शुक्रं यजतं सूर्यस्य ॥3॥
परमेश्वर है पिता हमारा शुभ - चिन्तक है सखा हमारा ।
वह आनन्द - रूप ओजस्वी है हम रक्षित हैं प्रभु के द्वारा ॥3॥
8844
सिध्रा अग्ने धियो अस्मे सनुत्रीर्यं त्रायसे दम आ नित्यहोता ।
ऋतावा स रोहिदश्वः पुरुक्षुर्द्युभिरस्मा अहभिर्वाममस्तु ॥4॥
प्रभु मनो - कामना पूरी करना कर्म-योग हो सफल हमारा ।
धन और धान सभी को देना सदा मिले सान्निध्य तुम्हारा॥4॥
8845
द्युभिर्हितं मित्रमिव प्रयोगं प्रत्नमृत्विजमध्वरस्य जारम् ।
बाहुभ्यामग्निमायवोSजनन्त विक्षु होतारं न्यसादयन्त॥5॥
सर्जक पालक पोषक तुम हो नमन करते हैं बारम्बार ।
घट - घट में है वास तुम्हारा तेरी लीला है अपरम्पार ॥5॥
8846
स्वयं यजस्व दिवि देव देवान्किं ते पाकः कृणवदप्रचेता: ।
यथायज ऋतुभिर्देव देवानेवा यजस्व तन्वं सुजात ॥6॥
जगती की रचना अद्भुत है तुम ही हो सबके पालनहार ।
सुख - साधन सबको देते हो दुष्टों पर करते तुम्हीं प्रहार ॥6॥
8847
भवा नो अग्नेSवितोत गोपा भवा वयस्कृदुत नो वयोधा: ।
रास्वा च नःसुमहो हव्यदातिं त्रास्वोत नस्तन्वो3 अप्रयच्छुन्॥7॥
हे अग्नि - देव हे परम - मित्र षड् - रिपुओं से रक्षा करना ।
अन्न - धान देते रहना प्रभु तुम ही मन की पीडा हरना ॥7॥
8841
स्वस्ति नो दिवो अग्ने पृथिव्या विश्वायुर्धेहि यजथाय देव ।
सचेमहि तव दस्म प्रकेतैरुरुष्या ण उरुभिर्देव शंसैः ॥1॥
हे अग्नि - देव आवाहन है आओ ग्रहण करो हवि-भोग ।
अन्न - धान हमको दे देना रक्षा करना हर लेना रोग ॥1॥
8842
इमा अग्ने मतयस्तुभ्यं जाता गोभिरश्वैरभि गृणन्ति राधः।
यदा ते मर्तो अनु भोगमानड्वसो दधानो मतिभिःसुजात॥2॥
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो वेद - ऋचायें करतीं गान ।
तुम ही धरती के मालिक़ हो मुझको ऐसा होता भान ॥2॥
8843
अग्निं मन्ये पितरमग्निपापिमग्निं भ्रातरं सदमित्सखायम्।
अग्नेरनीकं बृहतः सपर्यं दिवि शुक्रं यजतं सूर्यस्य ॥3॥
परमेश्वर है पिता हमारा शुभ - चिन्तक है सखा हमारा ।
वह आनन्द - रूप ओजस्वी है हम रक्षित हैं प्रभु के द्वारा ॥3॥
8844
सिध्रा अग्ने धियो अस्मे सनुत्रीर्यं त्रायसे दम आ नित्यहोता ।
ऋतावा स रोहिदश्वः पुरुक्षुर्द्युभिरस्मा अहभिर्वाममस्तु ॥4॥
प्रभु मनो - कामना पूरी करना कर्म-योग हो सफल हमारा ।
धन और धान सभी को देना सदा मिले सान्निध्य तुम्हारा॥4॥
8845
द्युभिर्हितं मित्रमिव प्रयोगं प्रत्नमृत्विजमध्वरस्य जारम् ।
बाहुभ्यामग्निमायवोSजनन्त विक्षु होतारं न्यसादयन्त॥5॥
सर्जक पालक पोषक तुम हो नमन करते हैं बारम्बार ।
घट - घट में है वास तुम्हारा तेरी लीला है अपरम्पार ॥5॥
8846
स्वयं यजस्व दिवि देव देवान्किं ते पाकः कृणवदप्रचेता: ।
यथायज ऋतुभिर्देव देवानेवा यजस्व तन्वं सुजात ॥6॥
जगती की रचना अद्भुत है तुम ही हो सबके पालनहार ।
सुख - साधन सबको देते हो दुष्टों पर करते तुम्हीं प्रहार ॥6॥
8847
भवा नो अग्नेSवितोत गोपा भवा वयस्कृदुत नो वयोधा: ।
रास्वा च नःसुमहो हव्यदातिं त्रास्वोत नस्तन्वो3 अप्रयच्छुन्॥7॥
हे अग्नि - देव हे परम - मित्र षड् - रिपुओं से रक्षा करना ।
अन्न - धान देते रहना प्रभु तुम ही मन की पीडा हरना ॥7॥
श्लोकों का रूपांतरण तथा सुंदर दोहे...
ReplyDeleteअग्नि पालक भी संहारक भी.......सुंदर अनुवाद.....महिला दिवस की शुभकामनाएं
ReplyDeleteशकुन्तला जी ......
आरती में अग्नि की लपट देख रहा था, सम्मोहन सा देखता ही रहा।
ReplyDeleteपरमेश्वर है पिता हमारा शुभ - चिन्तक है सखा हमारा ।
ReplyDeleteवह आनन्द - रूप ओजस्वी है हम रक्षित हैं प्रभु के द्वारा ॥3॥
....सदैव की तरह अनुपम प्रस्तुति..आभार
नोनी चरण स्पर्श पवित्र करते मन को और राह दिखाते सूक्त
ReplyDeleteअग्निदेव को नमन..
ReplyDelete