[ऋषि- सुमित्र कौत्स । देवता- इन्द्र । छन्द- उष्णिक्--अनुष्टुप्-त्रिष्टुप् ।]
10012
कदा वसो स्तोत्रं हर्यत आव श्मशा रुधद्वा:। दीर्घं सुतं वाताप्याय॥1॥
हे इन्द्र- देव अब तुम्हीं बताओ कैसे आवाहन करें तुम्हारा ।
सोम तुम्हें किस तरह परोसें प्रतिपल पथ पर है ध्यान हमारा॥1॥
10013
हरी यस्य सुयुजा विव्रता वेरर्वन्तानु शेपा।उभा रजी न केशिना पतिर्दन्॥2॥
सूर्य-सोम सम आलोकित हो सभी कार्य में कुशल तुम्हीं हो ।
महिमा-मय है नाम तुम्हारा सुख देने में समर्थ तुम्हीं हो॥2॥
10014
अप योरिन्द्रः पापज आ मर्तो न शश्रमाणो बिभीवान्।
शुभे यद्युयुजे तविषीवान्॥3॥
तुम मनुज-सदृश श्रम करते हो बाधाओं से नहीं डरते हो ।
सभी भॉंति सक्षम समर्थ हो अन्याय से तुम ही लडते हो॥3॥
10015
सचायोरिन्द्रश्श्चर्कृसष ऑं उपानसः सपर्यन्।
नदयोर्विव्रतयोः शूर इन्द्रः ॥4॥
सुख - वैभव है पास तुम्हारे हर प्राणी के पूज्य तुम्हीं हो ।
विविध-विधा में तुम प्रवीण हो दुष्टों के अँकुश भी तुम हो॥4॥
10016
अधि यस्तस्थौ केशवन्ता व्यचस्वन्ता न पुष्ट्यै।
वनोति शिप्राबभ्यां शिप्रिणीवान्॥5॥
पुष्टि - तुष्टि के तुम स्वामी हो धन-वैभव हमको भी देना ।
हे इन्द्र-देव तुम बलशाली हो हमको भी बल सौष्ठव देना॥5॥
10017
प्रास्तौदृषष्वौजा ऋष्वेभिस्ततक्ष शूरः शवसा ।
ऋभुर्न क्रतुभिर्मातरिश्वा ॥6॥
इन्द्र - देव और पवन-देव की मनुज- मात्र स्तुति करता है ।
निज चिन्तन से कई वस्तुयें स्वयं ही निर्मित करता है॥6॥
10018
वज्रं यश्चक्रे सुहनाय दस्यवे हिरीमशो हिरीमान्।
अरुतहनुरद्भुतं न रजः ॥7॥
दुष्ट-दलन करते रहना प्रभु तुम हम सबकी रक्षा करना ।
वज्रायुध है पास तुम्हारे अब है प्रगति-पंथ पर बढना॥7॥
10019
अव नो वृजिना शिशीह्यृचा वनेमानृच:।
नाब्रह्मा यज्ञ ऋधग्जोषति त्वे ॥8॥
हमसे यदि कोई भूल हुई हो भगवन हमें क्षमा करना ।
पूजन-अर्चन हम करते हैं वरद-हस्त सिर पर रखना॥8॥
10020
ऊर्ध्वा यत्ते त्रेतिनी भूद्यज्ञस्य धूर्षु सद्मन्।
सजूर्नावं स्वयशसं सचायो: ॥9॥
तुम हो स्वयं यशस्वी तरणी हम सबको तुम पार लगाना ।
हे प्रभु फिर प्रसन्न होकर अपना हवि-भोग प्रेम से खाना॥9॥
10021
श्रिये ते पृश्निरुपसेचनी भूच्छ्रिये दर्विररेपा:।
यया स्वे पात्रे सिञ्चस उत्॥10॥
सबके घर में गाय बँधी हो हर मनुज पिए गोरस पावन ।
सम्पूर्ण-सृष्टि में सभी सुखी हों कोई भी न हो अदियावन॥10॥
10022
शतं वा यदसुर्य प्रति त्वा सुमित्र इत्थास्तौद्दुर्मित्र इत्थास्तौत्।
आवो यद्दस्युह्त्ये कुत्सपुत्रं प्रावो यद्दस्युहत्ये कुत्सवत्सम्॥11॥
प्रभु सदा हमारी रक्षा करना तुम ही तो हो पालन-हार ।
हमको भी सन्मार्ग दिखाना यह ही है जीवन का सार॥11॥
10012
कदा वसो स्तोत्रं हर्यत आव श्मशा रुधद्वा:। दीर्घं सुतं वाताप्याय॥1॥
हे इन्द्र- देव अब तुम्हीं बताओ कैसे आवाहन करें तुम्हारा ।
सोम तुम्हें किस तरह परोसें प्रतिपल पथ पर है ध्यान हमारा॥1॥
10013
हरी यस्य सुयुजा विव्रता वेरर्वन्तानु शेपा।उभा रजी न केशिना पतिर्दन्॥2॥
सूर्य-सोम सम आलोकित हो सभी कार्य में कुशल तुम्हीं हो ।
महिमा-मय है नाम तुम्हारा सुख देने में समर्थ तुम्हीं हो॥2॥
10014
अप योरिन्द्रः पापज आ मर्तो न शश्रमाणो बिभीवान्।
शुभे यद्युयुजे तविषीवान्॥3॥
तुम मनुज-सदृश श्रम करते हो बाधाओं से नहीं डरते हो ।
सभी भॉंति सक्षम समर्थ हो अन्याय से तुम ही लडते हो॥3॥
10015
सचायोरिन्द्रश्श्चर्कृसष ऑं उपानसः सपर्यन्।
नदयोर्विव्रतयोः शूर इन्द्रः ॥4॥
सुख - वैभव है पास तुम्हारे हर प्राणी के पूज्य तुम्हीं हो ।
विविध-विधा में तुम प्रवीण हो दुष्टों के अँकुश भी तुम हो॥4॥
10016
अधि यस्तस्थौ केशवन्ता व्यचस्वन्ता न पुष्ट्यै।
वनोति शिप्राबभ्यां शिप्रिणीवान्॥5॥
पुष्टि - तुष्टि के तुम स्वामी हो धन-वैभव हमको भी देना ।
हे इन्द्र-देव तुम बलशाली हो हमको भी बल सौष्ठव देना॥5॥
10017
प्रास्तौदृषष्वौजा ऋष्वेभिस्ततक्ष शूरः शवसा ।
ऋभुर्न क्रतुभिर्मातरिश्वा ॥6॥
इन्द्र - देव और पवन-देव की मनुज- मात्र स्तुति करता है ।
निज चिन्तन से कई वस्तुयें स्वयं ही निर्मित करता है॥6॥
10018
वज्रं यश्चक्रे सुहनाय दस्यवे हिरीमशो हिरीमान्।
अरुतहनुरद्भुतं न रजः ॥7॥
दुष्ट-दलन करते रहना प्रभु तुम हम सबकी रक्षा करना ।
वज्रायुध है पास तुम्हारे अब है प्रगति-पंथ पर बढना॥7॥
10019
अव नो वृजिना शिशीह्यृचा वनेमानृच:।
नाब्रह्मा यज्ञ ऋधग्जोषति त्वे ॥8॥
हमसे यदि कोई भूल हुई हो भगवन हमें क्षमा करना ।
पूजन-अर्चन हम करते हैं वरद-हस्त सिर पर रखना॥8॥
10020
ऊर्ध्वा यत्ते त्रेतिनी भूद्यज्ञस्य धूर्षु सद्मन्।
सजूर्नावं स्वयशसं सचायो: ॥9॥
तुम हो स्वयं यशस्वी तरणी हम सबको तुम पार लगाना ।
हे प्रभु फिर प्रसन्न होकर अपना हवि-भोग प्रेम से खाना॥9॥
10021
श्रिये ते पृश्निरुपसेचनी भूच्छ्रिये दर्विररेपा:।
यया स्वे पात्रे सिञ्चस उत्॥10॥
सबके घर में गाय बँधी हो हर मनुज पिए गोरस पावन ।
सम्पूर्ण-सृष्टि में सभी सुखी हों कोई भी न हो अदियावन॥10॥
10022
शतं वा यदसुर्य प्रति त्वा सुमित्र इत्थास्तौद्दुर्मित्र इत्थास्तौत्।
आवो यद्दस्युह्त्ये कुत्सपुत्रं प्रावो यद्दस्युहत्ये कुत्सवत्सम्॥11॥
प्रभु सदा हमारी रक्षा करना तुम ही तो हो पालन-हार ।
हमको भी सन्मार्ग दिखाना यह ही है जीवन का सार॥11॥