Saturday, 30 November 2013

सूक्त - 105

[ऋषि- सुमित्र कौत्स । देवता- इन्द्र । छन्द- उष्णिक्--अनुष्टुप्-त्रिष्टुप् ।]

10012
कदा वसो स्तोत्रं हर्यत आव श्मशा रुधद्वा:। दीर्घं सुतं वाताप्याय॥1॥

हे  इन्द्र- देव  अब  तुम्हीं  बताओ  कैसे  आवाहन  करें  तुम्हारा ।
सोम तुम्हें किस तरह परोसें प्रतिपल पथ पर है ध्यान हमारा॥1॥

10013
हरी यस्य सुयुजा विव्रता वेरर्वन्तानु शेपा।उभा रजी न केशिना पतिर्दन्॥2॥

सूर्य-सोम सम आलोकित हो सभी कार्य में कुशल तुम्हीं हो ।
महिमा-मय है नाम तुम्हारा सुख देने में समर्थ तुम्हीं हो॥2॥

10014
अप योरिन्द्रः पापज आ मर्तो न शश्रमाणो बिभीवान्।
शुभे                  यद्युयुजे                   तविषीवान्॥3॥

तुम मनुज-सदृश श्रम करते हो बाधाओं से नहीं डरते हो ।
सभी भॉंति सक्षम समर्थ हो अन्याय से तुम ही लडते हो॥3॥

10015
सचायोरिन्द्रश्श्चर्कृसष ऑं उपानसः सपर्यन्।
नदयोर्विव्रतयोः          शूर          इन्द्रः ॥4॥

सुख - वैभव  है  पास  तुम्हारे  हर  प्राणी के पूज्य तुम्हीं हो ।
विविध-विधा में तुम प्रवीण हो दुष्टों के अँकुश भी तुम हो॥4॥

10016
अधि यस्तस्थौ केशवन्ता व्यचस्वन्ता न पुष्ट्यै।
वनोति          शिप्राबभ्यां          शिप्रिणीवान्॥5॥

पुष्टि - तुष्टि  के  तुम  स्वामी हो धन-वैभव हमको भी देना ।
हे इन्द्र-देव तुम बलशाली हो हमको भी बल सौष्ठव देना॥5॥

10017
प्रास्तौदृषष्वौजा ऋष्वेभिस्ततक्ष शूरः शवसा ।
ऋभुर्न                          क्रतुभिर्मातरिश्वा ॥6॥

इन्द्र - देव और पवन-देव की मनुज- मात्र स्तुति करता है ।
निज चिन्तन से कई वस्तुयें स्वयं ही निर्मित करता है॥6॥

10018
वज्रं यश्चक्रे सुहनाय दस्यवे हिरीमशो हिरीमान्।
अरुतहनुरद्भुतं                  न              रजः ॥7॥

दुष्ट-दलन करते रहना प्रभु तुम हम सबकी रक्षा करना ।
वज्रायुध है पास तुम्हारे अब है प्रगति-पंथ पर बढना॥7॥

10019
अव नो वृजिना शिशीह्यृचा वनेमानृच:।
नाब्रह्मा   यज्ञ   ऋधग्जोषति   त्वे ॥8॥

हमसे  यदि  कोई  भूल हुई हो भगवन हमें क्षमा करना ।
पूजन-अर्चन हम करते हैं वरद-हस्त सिर पर रखना॥8॥

10020
ऊर्ध्वा यत्ते त्रेतिनी भूद्यज्ञस्य धूर्षु सद्मन्।
सजूर्नावं       स्वयशसं      सचायो: ॥9॥

तुम हो स्वयं यशस्वी तरणी हम सबको तुम पार लगाना ।
हे प्रभु फिर प्रसन्न होकर अपना हवि-भोग प्रेम से खाना॥9॥

10021
श्रिये ते पृश्निरुपसेचनी भूच्छ्रिये दर्विररेपा:।
यया     स्वे      पात्रे    सिञ्चस    उत्॥10॥

सबके  घर  में  गाय  बँधी  हो  हर  मनुज पिए गोरस पावन ।
सम्पूर्ण-सृष्टि में सभी सुखी हों कोई भी न हो अदियावन॥10॥

10022
शतं वा यदसुर्य प्रति त्वा सुमित्र इत्थास्तौद्दुर्मित्र इत्थास्तौत्।
आवो यद्दस्युह्त्ये कुत्सपुत्रं प्रावो यद्दस्युहत्ये कुत्सवत्सम्॥11॥

प्रभु सदा हमारी रक्षा करना तुम ही तो हो पालन-हार ।
हमको भी सन्मार्ग दिखाना यह ही है जीवन का सार॥11॥                     

2 comments:

  1. सत पर चल कर, तम से लड़ कर,
    पग पग संयत, पथ पर बढ़ कर।

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  2. अत्यंत रोचक...

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