Monday, 11 November 2013

सूक्त - 126

[ऋषि- अंहोमुक् वामदेव । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- बृहती- त्रिष्टुप ।]

10215
न     तमंहो     न     दुरितं     देवासो     अष्ट    मर्त्यम् ।
अजोषसो यमर्यमा मित्रो नयन्ति वरुणो अति द्विषः॥1॥ 

न्याय  मित्र  और  वरुण- देव  दुश्मन से हमें बचाते हैं ।
सत- पथ पर ही  वे ले जाते हैं सदाचार सिखलाते हैं ॥1॥

10216
तध्दि       वयं       वृणीमहे       वरुण       मित्रार्यमन् ।
येना  निरंहसो  यूयं  पाथ  नेथा  च मर्त्यमति द्विषः ॥2॥

हे  त्रिदेव  विनती  है  तुमसे  दुष्कर्मो  से  सदा  बचाना ।
सदा सुरक्षा देना हमको सत्कर्मों के पथ पर ले जाना॥2॥

10217
ते     नूनं     नोSयमूतये     वरुणो     मित्रो     अर्यमा ।
नयिष्ठा उ  नो  नेषणि  पर्षिष्ठा उ नः पर्षण्यति  द्विषः ॥3॥

हे प्रभु संकट से सदा बचाना सब के हित की बात बताना।
तेरी शरण में हम आए हैं पर-हित का ही पाठ पढाना॥3॥

10218
यूयं     विश्वं     परि     पाथ     वरुणो    मित्रो   अर्यमा ।
युष्माकं शर्मणि  प्रिये  स्याम सुप्रणीतयोSति  द्विषः ॥4॥

जग के तुम ही रखवाले हो हम  करते  हैं  तेरा आवाहन ।
तुम प्यार बहुत करते हो हमसे देते रहना सुख साधन॥4॥

10219
आदित्यासो    अति    स्त्रिधो    वरुणो    मित्रो   अर्यमा ।
उग्रं  मरुभ्दी रुद्रं  हुवेमेन्द्रमग्निं  स्वस्तयेSति द्विषः ॥5॥

हे रुद्र इन्द्र और अग्नि-देव कल्याण सदा सबका करना ।
हम  प्रेम  से  तुम्हें  बुलाते हैं तुम ऐसे ही आते रहना ॥5॥

10220
नेतार    ऊ     षु    णस्तिरो    वरुणो     मित्रो     अर्यमा ।
अति  विश्वानि  दुरिता  राजानश्चर्षणीनामति   द्विषः ॥6॥

हे  धीर- वीर गुण  के स्वामी हम तुमसे विनती करते हैं ।
सुखकर मार्ग दिखाना प्रभु मन के विकार से डरते हैं ॥6॥

10221
शुनमस्मभ्यमूतये        वरुणो        मित्रो        अर्यमा ।
शर्म यच्छन्तु सप्रथ आदित्यासो  यदीमहे अति द्विषः॥7॥ 

सतत  सुरक्षा  देना  प्रभु  जी  दे  देना  हमको  चारों बल ।
सुख सम्पदा सदा हो घर में कभी न करें किसी से छल॥7॥

10222
यथा ह त्यद्वसवो  गौर्यं चित्पदि षिताममुञ्चता यजत्रा: ।
एवो ष्व1स्मन्मुञ्चता व्यंहः प्र तार्यग्ने  प्रतरं न आयुः॥8॥ 

यदि  हमसे  कोई  भूल  हुई  हो हे प्रभु हमें क्षमा कर देना ।
लम्बी उम्र हमें देना तुम अपना समझकर अपना लेना॥8॥
    

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