[ऋषि- अंहोमुक् वामदेव । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- बृहती- त्रिष्टुप ।]
10215
न तमंहो न दुरितं देवासो अष्ट मर्त्यम् ।
अजोषसो यमर्यमा मित्रो नयन्ति वरुणो अति द्विषः॥1॥
न्याय मित्र और वरुण- देव दुश्मन से हमें बचाते हैं ।
सत- पथ पर ही वे ले जाते हैं सदाचार सिखलाते हैं ॥1॥
10216
तध्दि वयं वृणीमहे वरुण मित्रार्यमन् ।
येना निरंहसो यूयं पाथ नेथा च मर्त्यमति द्विषः ॥2॥
हे त्रिदेव विनती है तुमसे दुष्कर्मो से सदा बचाना ।
सदा सुरक्षा देना हमको सत्कर्मों के पथ पर ले जाना॥2॥
10217
ते नूनं नोSयमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा ।
नयिष्ठा उ नो नेषणि पर्षिष्ठा उ नः पर्षण्यति द्विषः ॥3॥
हे प्रभु संकट से सदा बचाना सब के हित की बात बताना।
तेरी शरण में हम आए हैं पर-हित का ही पाठ पढाना॥3॥
10218
यूयं विश्वं परि पाथ वरुणो मित्रो अर्यमा ।
युष्माकं शर्मणि प्रिये स्याम सुप्रणीतयोSति द्विषः ॥4॥
जग के तुम ही रखवाले हो हम करते हैं तेरा आवाहन ।
तुम प्यार बहुत करते हो हमसे देते रहना सुख साधन॥4॥
10219
आदित्यासो अति स्त्रिधो वरुणो मित्रो अर्यमा ।
उग्रं मरुभ्दी रुद्रं हुवेमेन्द्रमग्निं स्वस्तयेSति द्विषः ॥5॥
हे रुद्र इन्द्र और अग्नि-देव कल्याण सदा सबका करना ।
हम प्रेम से तुम्हें बुलाते हैं तुम ऐसे ही आते रहना ॥5॥
10220
नेतार ऊ षु णस्तिरो वरुणो मित्रो अर्यमा ।
अति विश्वानि दुरिता राजानश्चर्षणीनामति द्विषः ॥6॥
हे धीर- वीर गुण के स्वामी हम तुमसे विनती करते हैं ।
सुखकर मार्ग दिखाना प्रभु मन के विकार से डरते हैं ॥6॥
10221
शुनमस्मभ्यमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा ।
शर्म यच्छन्तु सप्रथ आदित्यासो यदीमहे अति द्विषः॥7॥
सतत सुरक्षा देना प्रभु जी दे देना हमको चारों बल ।
सुख सम्पदा सदा हो घर में कभी न करें किसी से छल॥7॥
10222
यथा ह त्यद्वसवो गौर्यं चित्पदि षिताममुञ्चता यजत्रा: ।
एवो ष्व1स्मन्मुञ्चता व्यंहः प्र तार्यग्ने प्रतरं न आयुः॥8॥
यदि हमसे कोई भूल हुई हो हे प्रभु हमें क्षमा कर देना ।
लम्बी उम्र हमें देना तुम अपना समझकर अपना लेना॥8॥
10215
न तमंहो न दुरितं देवासो अष्ट मर्त्यम् ।
अजोषसो यमर्यमा मित्रो नयन्ति वरुणो अति द्विषः॥1॥
न्याय मित्र और वरुण- देव दुश्मन से हमें बचाते हैं ।
सत- पथ पर ही वे ले जाते हैं सदाचार सिखलाते हैं ॥1॥
10216
तध्दि वयं वृणीमहे वरुण मित्रार्यमन् ।
येना निरंहसो यूयं पाथ नेथा च मर्त्यमति द्विषः ॥2॥
हे त्रिदेव विनती है तुमसे दुष्कर्मो से सदा बचाना ।
सदा सुरक्षा देना हमको सत्कर्मों के पथ पर ले जाना॥2॥
10217
ते नूनं नोSयमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा ।
नयिष्ठा उ नो नेषणि पर्षिष्ठा उ नः पर्षण्यति द्विषः ॥3॥
हे प्रभु संकट से सदा बचाना सब के हित की बात बताना।
तेरी शरण में हम आए हैं पर-हित का ही पाठ पढाना॥3॥
10218
यूयं विश्वं परि पाथ वरुणो मित्रो अर्यमा ।
युष्माकं शर्मणि प्रिये स्याम सुप्रणीतयोSति द्विषः ॥4॥
जग के तुम ही रखवाले हो हम करते हैं तेरा आवाहन ।
तुम प्यार बहुत करते हो हमसे देते रहना सुख साधन॥4॥
10219
आदित्यासो अति स्त्रिधो वरुणो मित्रो अर्यमा ।
उग्रं मरुभ्दी रुद्रं हुवेमेन्द्रमग्निं स्वस्तयेSति द्विषः ॥5॥
हे रुद्र इन्द्र और अग्नि-देव कल्याण सदा सबका करना ।
हम प्रेम से तुम्हें बुलाते हैं तुम ऐसे ही आते रहना ॥5॥
10220
नेतार ऊ षु णस्तिरो वरुणो मित्रो अर्यमा ।
अति विश्वानि दुरिता राजानश्चर्षणीनामति द्विषः ॥6॥
हे धीर- वीर गुण के स्वामी हम तुमसे विनती करते हैं ।
सुखकर मार्ग दिखाना प्रभु मन के विकार से डरते हैं ॥6॥
10221
शुनमस्मभ्यमूतये वरुणो मित्रो अर्यमा ।
शर्म यच्छन्तु सप्रथ आदित्यासो यदीमहे अति द्विषः॥7॥
सतत सुरक्षा देना प्रभु जी दे देना हमको चारों बल ।
सुख सम्पदा सदा हो घर में कभी न करें किसी से छल॥7॥
10222
यथा ह त्यद्वसवो गौर्यं चित्पदि षिताममुञ्चता यजत्रा: ।
एवो ष्व1स्मन्मुञ्चता व्यंहः प्र तार्यग्ने प्रतरं न आयुः॥8॥
यदि हमसे कोई भूल हुई हो हे प्रभु हमें क्षमा कर देना ।
लम्बी उम्र हमें देना तुम अपना समझकर अपना लेना॥8॥
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