Thursday, 21 November 2013

सूक्त - 115

[ऋषि- उपस्तुत वार्ष्टिहव्य । देवता- अग्नि । छन्द- जगती-त्रिष्टुप-शक्वरी ।]

10114
चित्र  इच्छिशोस्तरुणस्य  वक्षथो न  यो  मातरावप्येति  धातवे।
अनूधा यदि जीजनदधा च नु ववक्ष सद्यो  महि  दूत्यं1 चरन्॥1॥

अग्नि  -  देव  अत्यंत  प्रखर  हैं   वे  सबको   हवि   पहुँचाते  हैं ।
उनकी  गरिमा - महिमा अद्भुत वे निज  दायित्व निभाते हैं ॥1॥

10115
अग्निर्ह नाम धायि दन्नपस्तमः सं यो वना युवते भस्मना दता।
अभिप्रमुरा  जुह्वा  स्वध्वर  इनो   न  प्रोथमानो   यवसे  वृषा ॥2॥

हे  अग्नि - देव अन्न - धन देना जीव - जगत का रखना ध्यान ।
सत्कर्म सतत सिखलाना  हमको  हे  देव तुम्हीं  हो अनुष्ठान ॥2॥

10116
तं  वो  विं  न  द्रुषदं  देवमन्धस  इन्दुं  प्रोथन्तं  प्रवपन्तमर्णवम् ।
आसा वह्निं न शोचिषा विरप्शिनं महिव्रतं न सरजन्तमध्वनः॥3॥

हे अग्नि - देव हम स्तुति करते हैं जीवन में प्रभु- प्रकाश भर दो ।
आलोक-प्रदाता तुम तेजस्वी गति-गरिमा-गुण-गागर भर दो॥3॥

10117
वि  यस्य  ते  ज्रयसानस्याजर  धक्षोर्न  वाता: परि  सन्त्यचुता:।
आ रण्वासो युयुधयो न सत्वनं त्रितं नशन्त प्र शिषन्त इष्टये॥4॥

समीर - सदृश  तुम  सभी  जगह हो तेरी महिमा सबसे न्यारी है ।
जब तुम दहन -क्रिया करते हो अनल - अनिल द्युति प्यारी है॥4॥

10118
स  इदग्निः  कण्वतमः  कण्वसखार्यः  परस्यान्तरस्य  तरुषः ।
अग्निः  पातु  गृणतो  अग्निः सूरीनग्निर्ददातु  तेषामवो  नः॥5॥

हे   अग्नि -  देव  दो  हमें  सुरक्षा  अन्न - धान  सब  तुम  देना ।
बाधाओं   को   दूर   करो   प्रभु   सखा - सदृश   अपना  लेना ॥5॥ 

10119
वाजिन्तमाय  सह्यसे  सुपित्र्य  तृषु  च्यवानो   अनु   जातवेदसे ।
अनुद्रे  चिद्यो  धृषता  वरं  सते महिन्तमाय धन्वनेदविष्यते ॥6॥ 

तुम  सर्वोत्तम  तुम  समर्थ  हो  पिता - तुल्य  पोषण  करते  हो ।
सदा  सुरक्षित  रखना  प्रभु  धन  का भण्डार तुम्हीं भरते हो ॥6॥

10120
एवाग्निर्मर्तैः   सह    सूरिभिर्वसु    ष्टवे    सहसः   सूनरो   नृभिः ।
मित्रासो न ये सुधिता ऋतायवो द्यावो न द्युम्नैरभि सन्ति मानुषान्॥7॥

तुम हो अतुलित  बल  के स्वामी  शुभ- कर्मों  के  निर्वाहक  हो ।
दिव्य - तेज  के  पुञ्ज तुम्हीं  हो सुख - संतोष- सहायक हो ॥7॥

10121
ऊर्जो  नपात्सहसावन्निति  त्वोपस्तुतस्य  वन्दते  वृषा  वाक् ।
त्वां  स्तोषाम  त्वया  सुवीरा  द्राघीय  आयुः  प्रतरं  दधाना:॥8॥

हे  अग्नि -  देव   हे   बलशाली   हम  सतत  वन्दना  करते  हैं ।
दया - दृष्टि  रखना  प्रभु  हम  पर यही निवेदन हम करते हैं ॥8॥

10122
इति त्वाग्ने वृष्टिहव्यस्य पुत्रा उपस्तुतास ऋषयोSवोचन्।तॉंश्च पाहि
गृणतश्च सूरीन्वड्वषळित्यूर्ध्वासो अनक्षन्नमो नम इत्यूर्ध्वासो अनक्षन्॥9॥

हे  अग्नि - देव हे पूजनीय- प्रभु सज्जन को सदा - सुरक्षा देना ।
तुम  ही तो सबके रखवाले हो तुम मुझको  भी अपना लेना ॥9॥     
 

1 comment:

  1. हे अग्नि - देव हे बलशाली हम सतत वन्दना करते हैं ।
    दया - दृष्टि रखना प्रभु हम पर यही निवेदन हम करते हैं ॥8॥
    अग्निदेव हम पर कृपा करें..आभार !

    ReplyDelete