[ऋषि- उपस्तुत वार्ष्टिहव्य । देवता- अग्नि । छन्द- जगती-त्रिष्टुप-शक्वरी ।]
10114
चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य वक्षथो न यो मातरावप्येति धातवे।
अनूधा यदि जीजनदधा च नु ववक्ष सद्यो महि दूत्यं1 चरन्॥1॥
अग्नि - देव अत्यंत प्रखर हैं वे सबको हवि पहुँचाते हैं ।
उनकी गरिमा - महिमा अद्भुत वे निज दायित्व निभाते हैं ॥1॥
10115
अग्निर्ह नाम धायि दन्नपस्तमः सं यो वना युवते भस्मना दता।
अभिप्रमुरा जुह्वा स्वध्वर इनो न प्रोथमानो यवसे वृषा ॥2॥
हे अग्नि - देव अन्न - धन देना जीव - जगत का रखना ध्यान ।
सत्कर्म सतत सिखलाना हमको हे देव तुम्हीं हो अनुष्ठान ॥2॥
10116
तं वो विं न द्रुषदं देवमन्धस इन्दुं प्रोथन्तं प्रवपन्तमर्णवम् ।
आसा वह्निं न शोचिषा विरप्शिनं महिव्रतं न सरजन्तमध्वनः॥3॥
हे अग्नि - देव हम स्तुति करते हैं जीवन में प्रभु- प्रकाश भर दो ।
आलोक-प्रदाता तुम तेजस्वी गति-गरिमा-गुण-गागर भर दो॥3॥
10117
वि यस्य ते ज्रयसानस्याजर धक्षोर्न वाता: परि सन्त्यचुता:।
आ रण्वासो युयुधयो न सत्वनं त्रितं नशन्त प्र शिषन्त इष्टये॥4॥
समीर - सदृश तुम सभी जगह हो तेरी महिमा सबसे न्यारी है ।
जब तुम दहन -क्रिया करते हो अनल - अनिल द्युति प्यारी है॥4॥
10118
स इदग्निः कण्वतमः कण्वसखार्यः परस्यान्तरस्य तरुषः ।
अग्निः पातु गृणतो अग्निः सूरीनग्निर्ददातु तेषामवो नः॥5॥
हे अग्नि - देव दो हमें सुरक्षा अन्न - धान सब तुम देना ।
बाधाओं को दूर करो प्रभु सखा - सदृश अपना लेना ॥5॥
10119
वाजिन्तमाय सह्यसे सुपित्र्य तृषु च्यवानो अनु जातवेदसे ।
अनुद्रे चिद्यो धृषता वरं सते महिन्तमाय धन्वनेदविष्यते ॥6॥
तुम सर्वोत्तम तुम समर्थ हो पिता - तुल्य पोषण करते हो ।
सदा सुरक्षित रखना प्रभु धन का भण्डार तुम्हीं भरते हो ॥6॥
10120
एवाग्निर्मर्तैः सह सूरिभिर्वसु ष्टवे सहसः सूनरो नृभिः ।
मित्रासो न ये सुधिता ऋतायवो द्यावो न द्युम्नैरभि सन्ति मानुषान्॥7॥
तुम हो अतुलित बल के स्वामी शुभ- कर्मों के निर्वाहक हो ।
दिव्य - तेज के पुञ्ज तुम्हीं हो सुख - संतोष- सहायक हो ॥7॥
10121
ऊर्जो नपात्सहसावन्निति त्वोपस्तुतस्य वन्दते वृषा वाक् ।
त्वां स्तोषाम त्वया सुवीरा द्राघीय आयुः प्रतरं दधाना:॥8॥
हे अग्नि - देव हे बलशाली हम सतत वन्दना करते हैं ।
दया - दृष्टि रखना प्रभु हम पर यही निवेदन हम करते हैं ॥8॥
10122
इति त्वाग्ने वृष्टिहव्यस्य पुत्रा उपस्तुतास ऋषयोSवोचन्।तॉंश्च पाहि
गृणतश्च सूरीन्वड्वषळित्यूर्ध्वासो अनक्षन्नमो नम इत्यूर्ध्वासो अनक्षन्॥9॥
हे अग्नि - देव हे पूजनीय- प्रभु सज्जन को सदा - सुरक्षा देना ।
तुम ही तो सबके रखवाले हो तुम मुझको भी अपना लेना ॥9॥
10114
चित्र इच्छिशोस्तरुणस्य वक्षथो न यो मातरावप्येति धातवे।
अनूधा यदि जीजनदधा च नु ववक्ष सद्यो महि दूत्यं1 चरन्॥1॥
अग्नि - देव अत्यंत प्रखर हैं वे सबको हवि पहुँचाते हैं ।
उनकी गरिमा - महिमा अद्भुत वे निज दायित्व निभाते हैं ॥1॥
10115
अग्निर्ह नाम धायि दन्नपस्तमः सं यो वना युवते भस्मना दता।
अभिप्रमुरा जुह्वा स्वध्वर इनो न प्रोथमानो यवसे वृषा ॥2॥
हे अग्नि - देव अन्न - धन देना जीव - जगत का रखना ध्यान ।
सत्कर्म सतत सिखलाना हमको हे देव तुम्हीं हो अनुष्ठान ॥2॥
10116
तं वो विं न द्रुषदं देवमन्धस इन्दुं प्रोथन्तं प्रवपन्तमर्णवम् ।
आसा वह्निं न शोचिषा विरप्शिनं महिव्रतं न सरजन्तमध्वनः॥3॥
हे अग्नि - देव हम स्तुति करते हैं जीवन में प्रभु- प्रकाश भर दो ।
आलोक-प्रदाता तुम तेजस्वी गति-गरिमा-गुण-गागर भर दो॥3॥
10117
वि यस्य ते ज्रयसानस्याजर धक्षोर्न वाता: परि सन्त्यचुता:।
आ रण्वासो युयुधयो न सत्वनं त्रितं नशन्त प्र शिषन्त इष्टये॥4॥
समीर - सदृश तुम सभी जगह हो तेरी महिमा सबसे न्यारी है ।
जब तुम दहन -क्रिया करते हो अनल - अनिल द्युति प्यारी है॥4॥
10118
स इदग्निः कण्वतमः कण्वसखार्यः परस्यान्तरस्य तरुषः ।
अग्निः पातु गृणतो अग्निः सूरीनग्निर्ददातु तेषामवो नः॥5॥
हे अग्नि - देव दो हमें सुरक्षा अन्न - धान सब तुम देना ।
बाधाओं को दूर करो प्रभु सखा - सदृश अपना लेना ॥5॥
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वाजिन्तमाय सह्यसे सुपित्र्य तृषु च्यवानो अनु जातवेदसे ।
अनुद्रे चिद्यो धृषता वरं सते महिन्तमाय धन्वनेदविष्यते ॥6॥
तुम सर्वोत्तम तुम समर्थ हो पिता - तुल्य पोषण करते हो ।
सदा सुरक्षित रखना प्रभु धन का भण्डार तुम्हीं भरते हो ॥6॥
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एवाग्निर्मर्तैः सह सूरिभिर्वसु ष्टवे सहसः सूनरो नृभिः ।
मित्रासो न ये सुधिता ऋतायवो द्यावो न द्युम्नैरभि सन्ति मानुषान्॥7॥
तुम हो अतुलित बल के स्वामी शुभ- कर्मों के निर्वाहक हो ।
दिव्य - तेज के पुञ्ज तुम्हीं हो सुख - संतोष- सहायक हो ॥7॥
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ऊर्जो नपात्सहसावन्निति त्वोपस्तुतस्य वन्दते वृषा वाक् ।
त्वां स्तोषाम त्वया सुवीरा द्राघीय आयुः प्रतरं दधाना:॥8॥
हे अग्नि - देव हे बलशाली हम सतत वन्दना करते हैं ।
दया - दृष्टि रखना प्रभु हम पर यही निवेदन हम करते हैं ॥8॥
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इति त्वाग्ने वृष्टिहव्यस्य पुत्रा उपस्तुतास ऋषयोSवोचन्।तॉंश्च पाहि
गृणतश्च सूरीन्वड्वषळित्यूर्ध्वासो अनक्षन्नमो नम इत्यूर्ध्वासो अनक्षन्॥9॥
हे अग्नि - देव हे पूजनीय- प्रभु सज्जन को सदा - सुरक्षा देना ।
तुम ही तो सबके रखवाले हो तुम मुझको भी अपना लेना ॥9॥
हे अग्नि - देव हे बलशाली हम सतत वन्दना करते हैं ।
ReplyDeleteदया - दृष्टि रखना प्रभु हम पर यही निवेदन हम करते हैं ॥8॥
अग्निदेव हम पर कृपा करें..आभार !