Sunday, 10 November 2013

सूक्त - 127

[ऋषि- रात्रि- भारद्वाजी । देवता- रात्रि । छन्द- गायत्री ।]

10223
रात्री व्यख्यदायती पुरुत्रा देव्य1 क्षभिः । विश्वा अधि श्रियोSधित ॥1॥

धरा-गगन में तमस बिछाती निशा चुपचाप चली आती है ।
नक्षत्र - नेत्र से देखने वाली रात्रि - परी सबको भाती  है ॥1॥

10224
ओर्वप्रा अमर्त्या निवतो देव्यु1द्वतः। ज्योतिषा बाधते तमः॥2॥

अमर-रात्रि फिर अन्तरिक्ष को तम से आच्छादित करती है ।
ग्रह-नक्षत्र आदि माध्यम से तम को कष्ट दिया करती है ॥2॥

10225
निरु स्वसारमस्कृतोषसं देव्यायती । अपेदु हासते तमः ॥3॥

रात्रि  भोर  की  करे  प्रतीक्षा वह ऊषा को प्रतिष्ठित करती है ।
तमस  मेट कर  ऊषा- गुलाबी प्रकाश की पोथी रचती है ॥3॥

10226
सा नो अद्य यस्या वयं नि ते यामन्नविक्ष्महि।वृक्षे न वसतिं वयः॥4॥

रात  में  हम  सब  सो  जाते  हैं  पूरी  दुनियॉ  सो  जाती  है ।
रात्रि  थकान  मिटा  देती है वह सुख की नींद सुलाती है ॥4॥ 

10227
नि ग्रामासो अविक्षत नि पद्वन्तो नि पक्षिणः।नि श्येनासश्चिदर्थिनः॥5॥

सभी  जीव  विश्राम  हेतु  फिर  रात  की  गोद  में  ही जाते हैं ।
यह रात्रि सभी को सुखकर हो जहॉ सभी थकान मिटाते हैं ॥5॥

10228
यावया वृक्यं 1वृकं यवय स्तेनमूर्म्ये।अथा नः सुतरा भव ॥6॥

हे  देवी  हमें  सुरक्षा  देना  कल्याण  तुम्हीं  सबका  करना ।
हम सुख की नींद रात्रि में सोयें सबका ध्यान तुम्हीं रखना॥6॥

10229
उप मा पेपिशत्तमः कृष्णं व्यक्तमस्थित। उष ऋणेव यातव॥7॥

मनस्तमस  को  तुम्हीं  मिटाना  अँधकार  को  दूर  भगाना ।
ऊषा-सुन्दरी प्रतिदिन आना संग में नूतन प्रकाश ले आना॥7॥

10230
उप ते गा इवाकरं वृणीस्व दुहितर्दिव:।रात्रि स्तोमं न जिग्युषे॥8॥

सूरज  की  बेटी  रात- परी  को शुभ-भावों के संग-संग रखते  हैं ।
हे रात्रि तुम्हीं शुभदा-सुखदा हो तुम्हें सविनय नमन करते हैं॥8॥     

3 comments:

  1. jiwan ka sandesh deti sangrahaniy sukt

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  2. रात्रि को नमन...उषा को नमन...सूर्य को नमन ...शशि को नमन...

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  3. रात्रि स्तवन !कितना विचारयुक्त भाव

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