[ऋषि- भूतांश काश्यप । देवता- अश्विनीकुमार । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10023
उभा उ नूनं तदिदर्थयेथे वि तन्वाथे धियो वस्त्रापसेव ।
सध्रीचीना यातवे प्रेमजीगः सुदिनेव पृक्ष आ तंसयेथे॥1॥
सूर्य - सोम -सम- सुख देते हो तुम दोनों अश्विनीकुमार ।
धन- वैभव तुम ही देते हो करते हो यश का विस्तार ॥1॥
10024
उष्टारेव फर्वरेषु श्रयेथे प्रायोगेव श्वात्र्या शासुरेथः ।
दूतेव हि ष्ठो यशसा जनेषु माप स्थातं महिषेवावपानात्॥2॥
तुम दोनों साथ-साथ रहते हो जन-हित का करते हो काम।
कभी दूर न होना भगवन करते हैं हम तुम्हें प्रणाम ॥2॥
10025
साकंयुजा शकुनस्येव पक्षा पश्वेव चित्रा यजुरा गमिष्टम्।
अग्निरिव देवयोरर्दीदिवांसा परिज्मानेव यजथः पुरुत्रा॥3॥
प्रणयातुर पंछी के पंखों जैसे तुम प्रेम-पाश में बँधे परस्पर।
तुम दोनों अति तेजस्वी हो पाते हो सम्मान निरन्तर ॥3॥
10026
आपी यो अस्मे पितरेव पुत्रोग्रेव रुचा नृपतीव तुर्यै ।
इर्येव पुष्ट्यै किरणेव भुज्यै श्रुष्टीवानेव हवमा गमिष्टम्॥4॥
मातु-पिता सम प्रेम निभाते सबके हित का रखते हो ध्यान।
आदित्य-अनिल सम तेजस्वी तुम खा लेना हविष्यान्न॥4॥
10027
वंसगेव पूषर्या शिम्बाता मित्रेव ऋता शतरा शातपन्ता ।
वाजेवोच्चा वयसा घर्म्येष्ठा मेषेवेषा सपर्या 3 पुरीषा ॥5॥
सुख- कर स्वस्थ और अति-सुंदर सूर्य-सलिल सम रहते हो।
आलोकवान हे शक्ति-पुञ्ज तुम सूर्य-सोम सम लगते हो॥5॥
10028
सृण्येव जर्भरी तुर्फरीतू नैतोशेव तुर्फरी पर्फरीका ।
उदन्यजेव जेमना मदेरू ता मे जराय्वजरं मरायु ॥6॥
दुष्ट- जनों के काल-सदृश हो तुम सबका पोषण करते हो ।
सुंदर छवि आलोकित होती तन को तुम नीरोग रखते हो॥6॥
10029
पज्रेव चर्चरं जारं मरायु क्षद्येवार्थेषु तर्तरीथ उग्रा ।
ऋभु नापत्खरमज्रा खरज्रुर्वायुर्न पर्फरत्क्षयद्रयीणाम् ॥7॥
संकट से तुम हमें बचाते बेडा - पार तुम्हीं करते हो ।
समीर सदृश सर्वत्र संचरित धन-धान से घर को भरते हो॥7॥
10030
घर्मेव मधु जठरे स सनेरू भगेविता तुर्फरी फारिवारम् ।
पतरेव चचरा चन्द्रनिर्णिङ्मनऋङ्गा मनन्या3 न जग्मी॥8॥
हे अश्विनीकुमार हे महाबली तुम ही धन की रक्षा करते हो ।
प्रभु मनोकामना पूरी करना तुम ही जीवन को गढते हो॥8॥
10031
बृहन्तेव गम्भरेषु प्रतिष्ठां पादेव गाधं तरते विदाथः ।
कर्णेव शासरन हि स्मराथोंSशेव नो भजतं चित्रमप्नः॥9॥
स्वभाव तुम्हारा सहज- सरल है प्रभु -पूजन स्वीकार करो ।
सत्-कारज में मन लग जाए सद्-भावों का भण्डार भरो॥9॥
10032
आरङ्गरेव मध्वेरयेथे सारघेव गवि नीचीनबारे ।
कीनारेव स्वेदमासिष्विदाना क्षामेवोर्जा सूयवसात्सचेथे॥10॥
कृषक सदृश तुम श्रम करते हो तुम दोनों का है आवाहन ।
तुमसे श्रध्दा-पूर्वक कहते हैं ग्रहण करो तुम हविष्यान्न॥10॥
10033
ऋध्याम स्तोमं सनुयाम वाजमा नो मन्त्रं सरथेहोप यातम्।
यशो न पक्वं मधु गोष्वन्तरा भूतांशो अश्विनोःकाममप्रा:॥11॥
पावन- पथ- पर- पॉंव रखें हम यही प्रार्थना हम करते हैं ।
सानिध्य- सदा सबको देना प्रभु बार-बार तुमसे कहते हैं ॥11॥
10023
उभा उ नूनं तदिदर्थयेथे वि तन्वाथे धियो वस्त्रापसेव ।
सध्रीचीना यातवे प्रेमजीगः सुदिनेव पृक्ष आ तंसयेथे॥1॥
सूर्य - सोम -सम- सुख देते हो तुम दोनों अश्विनीकुमार ।
धन- वैभव तुम ही देते हो करते हो यश का विस्तार ॥1॥
10024
उष्टारेव फर्वरेषु श्रयेथे प्रायोगेव श्वात्र्या शासुरेथः ।
दूतेव हि ष्ठो यशसा जनेषु माप स्थातं महिषेवावपानात्॥2॥
तुम दोनों साथ-साथ रहते हो जन-हित का करते हो काम।
कभी दूर न होना भगवन करते हैं हम तुम्हें प्रणाम ॥2॥
10025
साकंयुजा शकुनस्येव पक्षा पश्वेव चित्रा यजुरा गमिष्टम्।
अग्निरिव देवयोरर्दीदिवांसा परिज्मानेव यजथः पुरुत्रा॥3॥
प्रणयातुर पंछी के पंखों जैसे तुम प्रेम-पाश में बँधे परस्पर।
तुम दोनों अति तेजस्वी हो पाते हो सम्मान निरन्तर ॥3॥
10026
आपी यो अस्मे पितरेव पुत्रोग्रेव रुचा नृपतीव तुर्यै ।
इर्येव पुष्ट्यै किरणेव भुज्यै श्रुष्टीवानेव हवमा गमिष्टम्॥4॥
मातु-पिता सम प्रेम निभाते सबके हित का रखते हो ध्यान।
आदित्य-अनिल सम तेजस्वी तुम खा लेना हविष्यान्न॥4॥
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वंसगेव पूषर्या शिम्बाता मित्रेव ऋता शतरा शातपन्ता ।
वाजेवोच्चा वयसा घर्म्येष्ठा मेषेवेषा सपर्या 3 पुरीषा ॥5॥
सुख- कर स्वस्थ और अति-सुंदर सूर्य-सलिल सम रहते हो।
आलोकवान हे शक्ति-पुञ्ज तुम सूर्य-सोम सम लगते हो॥5॥
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सृण्येव जर्भरी तुर्फरीतू नैतोशेव तुर्फरी पर्फरीका ।
उदन्यजेव जेमना मदेरू ता मे जराय्वजरं मरायु ॥6॥
दुष्ट- जनों के काल-सदृश हो तुम सबका पोषण करते हो ।
सुंदर छवि आलोकित होती तन को तुम नीरोग रखते हो॥6॥
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पज्रेव चर्चरं जारं मरायु क्षद्येवार्थेषु तर्तरीथ उग्रा ।
ऋभु नापत्खरमज्रा खरज्रुर्वायुर्न पर्फरत्क्षयद्रयीणाम् ॥7॥
संकट से तुम हमें बचाते बेडा - पार तुम्हीं करते हो ।
समीर सदृश सर्वत्र संचरित धन-धान से घर को भरते हो॥7॥
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घर्मेव मधु जठरे स सनेरू भगेविता तुर्फरी फारिवारम् ।
पतरेव चचरा चन्द्रनिर्णिङ्मनऋङ्गा मनन्या3 न जग्मी॥8॥
हे अश्विनीकुमार हे महाबली तुम ही धन की रक्षा करते हो ।
प्रभु मनोकामना पूरी करना तुम ही जीवन को गढते हो॥8॥
10031
बृहन्तेव गम्भरेषु प्रतिष्ठां पादेव गाधं तरते विदाथः ।
कर्णेव शासरन हि स्मराथोंSशेव नो भजतं चित्रमप्नः॥9॥
स्वभाव तुम्हारा सहज- सरल है प्रभु -पूजन स्वीकार करो ।
सत्-कारज में मन लग जाए सद्-भावों का भण्डार भरो॥9॥
10032
आरङ्गरेव मध्वेरयेथे सारघेव गवि नीचीनबारे ।
कीनारेव स्वेदमासिष्विदाना क्षामेवोर्जा सूयवसात्सचेथे॥10॥
कृषक सदृश तुम श्रम करते हो तुम दोनों का है आवाहन ।
तुमसे श्रध्दा-पूर्वक कहते हैं ग्रहण करो तुम हविष्यान्न॥10॥
10033
ऋध्याम स्तोमं सनुयाम वाजमा नो मन्त्रं सरथेहोप यातम्।
यशो न पक्वं मधु गोष्वन्तरा भूतांशो अश्विनोःकाममप्रा:॥11॥
पावन- पथ- पर- पॉंव रखें हम यही प्रार्थना हम करते हैं ।
सानिध्य- सदा सबको देना प्रभु बार-बार तुमसे कहते हैं ॥11॥
प्रखर समन्वय, एक अंग हम।
ReplyDeleteसतत क्रियाशील है आपकी लेखनी...प्रणाम...
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