Wednesday, 27 November 2013

सूक्त - 109

[ऋषि- जुहू ब्रह्मजाया । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- त्रिष्टुप-अनुष्टुप ।]

10056
तेSवदन्प्रथमा  ब्रह्मकिल्बिषेSकूपारः  सलिलो  मातरिश्वा ।
वीळुहरास्तप  उग्रो   मयोभूरापो  देवीः  प्रथमजा  ऋतेन ॥1॥

सर्व - प्रथम  परमेश्वर  ने  अव्यक्त - वाक्  को  प्रकट  किया ।
बृहस्पति  ने  अव्यक्त  दोष  को  सूझ - बूझ से  दूर किया॥1॥ 

10057
सोमो  राजा  प्रथमो  ब्रह्मजायां  पुनः  प्रायच्छदहृणीयमानः।
अन्वर्तिता वरुणो मित्र आसीदग्निर्होता हस्तगृह्या निनाय॥2॥

अव्यक्त  ब्रह्म - जाया  वाणी  को  बृहस्पति  ने  स्वीकार किया ।
आदित्य-अम्बु का अनुमोदन था अग्नि-ऑंच से ठीक किया॥2॥

10058
हस्तेनैव    ग्राह्य    आधिरस्या    ब्रह्मजायेयमिति    चेदवोचन् ।
न   दूताय  प्रह्ये  तस्थ  एषा  तथा   राष्ट्रं   गुपितं   क्षत्रियस्य ॥3॥

अप्रकट  वाणी  प्रकट  हो  गई  इसे  वेद-ऋचा  ने  ग्रहण  किया ।
पर प्रकट होकर भी अप्रकट है किञ्चित् अर्थान्तर ओढ लिया॥3॥

10059
देवा   एतस्यामवदन्त    पूर्वे    सप्तऋषयस्तपसे    ये    निषेदुः ।
भीमा  जाया  ब्राह्मणस्योपनीता  दुर्धां  दधाति  परमे व्योमन्॥4॥ 

सप्त - ऋषि  एवम्  देवताओं  ने  वाणी   की   गरिमा   गाई   है ।
यह वागीशा अति समर्थ है विलक्षण  महिमा  लेकर आई  है ॥4॥

10060
ब्रह्मचारी   चरति   वेविषद्विषः  स   देवानां   भवत्येकमङ्गम् ।
तेन जायामन्वविन्दद् बृहस्पतिःसोमेन नीतां जुह्वं1न देवा:॥5॥

ब्रह्मचारी  बहुत  सजग  होता  है  वह  सत्कर्म  सदा  करता  है ।
वह  ईश्वर  के  अँग  की  तरह  दायित्व  निभाता  रहता  है ॥5॥

10061
पुनर्वै           देवा            अददुः          पुनर्मनुष्या          उत ।
राजानः       सत्यं       कृण्वाना       ब्रह्मजायां      पुनर्ददुः  ॥6॥ 

वाणी का वैभव अति-विचित्र है विचार-विनिमय का यही श्रोत है।
आपस में हम बातें करते हैं हर चितन वाणी से ओत-प्रोत है ॥6॥

10062
पुनर्दाय          ब्रह्मजायां           कृत्वी           देवैर्निकिल्बिषम् ।
ऊर्जं               पृथिव्या              भक्त्वायोरुगायमुपासते   ॥7॥

वाक् - शक्ति   की  क्षमता  अद्भुत  यह  सब  पर  पडती  है भारी ।
प्रेम - परस्पर  यह  बोती  है  अकस्मात्  बन   जाती  आरी ॥7॥      

5 comments:

  1. CHETANA KO JAGRIT KARATE ANMOL AUR CHIR NAWIN SANGRAHNIY AUR NIT PATHANIY ..
    SUPRABHAT SANG PRANAM SUKTON KE PRAKASHAN HETU

    ReplyDelete
  2. वाक् - शक्ति की क्षमता अद्भुत यह सब पर पडती है भारी ।
    प्रेम - परस्पर यह बोती है अकस्मात् बन जाती आरी

    यह सत्य है ! शुभकामनायें आपको !!

    ReplyDelete
  3. चरैवेति चरैवेति -बढियां चल रहा है प्रांजल अनुवाद

    ReplyDelete
  4. व्यक्त सृष्टि,
    सब पूर्वनियत सा,
    बीजरूप।

    ReplyDelete

  5. ---अर्थ सही नहीं हैं...
    ---सही अर्थ इस प्रकार होगा..यथा...
    -पुनर्दाय ब्रह्मजाया कृत्वी देवैर्निल्बिषम्‌ ।
    ऊर्जं पृथिव्या भक्तवायो रुगायमुपासते ॥ ऋ 10-109-7 अथर्व 5-17-11
    ब्राह्मी विद्धया को पुनः लाकर देवो ने बृहस्पति देव को दोषमुक्त किया है तत्पश्चात पृथ्वी के सारविततम अन्न (उत्पाद) का विभाजन करके सभी सुखपूर्वक यज्ञीय उपासना करने लगे
    [दिव्य वाणी व यज्ञीय प्रक्रिया से भूमि पर पदार्थो के वर्गीकरण तथा सदुपयोग का क्रम चल पड़ा । यह प्रक्रिया बार-बार दुहराई जाती है ]

    ReplyDelete