[ऋषि- विहव्य आङ्गिरस । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- त्रिष्टुप-जगती ।]
10231
ममाग्मे वर्चो विहवेष्वस्तु वयं त्वेन्धानास्तन्वं पुषेम ।
मह्यं नमन्तां प्रदिशश्चत्स्त्रस्त्वयाध्क्षेण पृतना जयेम ॥1॥
प्रभु हम तेजस्वी बन जायें यज्ञ- धूम से पुष्टि मिले ।
दशों - दिशाओं में यश पायें मन से भी संतुष्टि मिले ॥1॥
10232
मम देवा विहवे सन्तु सर्व इन्द्रवन्तो मरुतो विष्णुरग्निः ।
ममान्तरिक्षमुरुलोकमस्तु मह्यं वातः पवतां कामे अस्मिन् ॥2॥
सूर्य - अग्नि - और पवन - देव से आश्रय की है हमें अपेक्षा ।
अन्तरिक्ष में यश फैले और प्राण - पवन दें हमें सुरक्षा ॥2॥
10233
मयि देवा द्रविणमा यजन्ता मय्याशीरस्तु मयि देवहूतिः ।
दैव्या होतारो वनुषन्त पूर्वेSरिष्टा: स्याम तन्वा सुवीरा: ॥3॥
हे अग्नि - देव धन - वैभव दे दो करते हैं तेरा आवाहन ।
तन- मन से परिपुष्ट रहें प्रभु सुख संतति- पायें मन-भावन ॥3॥
10234
मह्यं यजन्तु मम यानि हव्याकूतिः सत्या मनसो मे अस्तु ।
एनो मा नि गां कतमच्चनाहं विश्वे देवासो अधि वोचता नः॥4॥
संकल्प पूर्ण करना प्रभु मन का दुष्कर्मों से हमें बचाना ।
हविष्यान्न देते हैं प्रभुवर अविरल आशीष हमें दे जाना ॥4॥
10235
देवीः षळुर्वीरुरु नः कृणोत विश्वे देवास इह वीरयध्वम् ।
मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रक्षाम द्विषते सोम राजन् ॥5॥
हे षट् - देवी धन - वैभव दो दुष्टों से तुम हमें बचाना ।
तन - मन से हम हों बलशाली संतति गुण-सम्पन्न बनाना॥5॥
10236
अग्ने मन्युं प्रतिनुदन्परेषामदब्धो गोपा: परि पाहि नस्त्वम् ।
प्रत्यञ्चो यन्तु निगुतः पुनस्ते3मैषां चित्तं प्रबुधां वि नेशत् ॥6॥
सदा सुरक्षा देना प्रभुवर सद् - बुध्दि सभी को दे देना ।
शुभ-शुभ चिन्तन हो हम सबका सुख सन्मति सबको देना ॥6॥
10237
धाता धातृणां भुवनस्य यस्पतिर्देवं त्रातारमभिमातिषाहम् ।
इमं यज्ञमश्विनोभा बृहस्पतिर्देवा: पान्तु यजमानं न्यर्थात् ॥7॥
हे इन्द्र- देव है यही प्रार्थना निर्विघ्न यज्ञ - सम्पादन हो ।
प्रज्ञा- जागृत हो जाए प्रभु शुभ-शुभ ही यह अनुष्ठान हो ॥7॥
10238
उरुव्यचा नो महिषः शर्म यंसदस्मिन्हवे पुरुहूतः पुरुक्षुः ।
स नः प्रजायै हर्यश्च मृळयेन्द्र मा नो रीरिषो मा परा दा: ॥8॥
हे अग्नि- देव हे इन्द्र-देव सबकी सन्तति सतत सुखी हो ।
तुम वरद - हस्त लेकर आना कोई भी यहॉं दुखी न हो ॥8॥
10239
ये नः सपत्ना अप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे तान् ।
वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशं मोग्रं चेत्तारमधिराजमक्रन्॥9॥
भीतर - बाहर के दुश्मन से प्रभु सदा हमारी रक्षा करना ।
शौर्य - धैर्य दे देना प्रभु-वर सद्-गुण ही हो मेरा गहना ॥9॥
10231
ममाग्मे वर्चो विहवेष्वस्तु वयं त्वेन्धानास्तन्वं पुषेम ।
मह्यं नमन्तां प्रदिशश्चत्स्त्रस्त्वयाध्क्षेण पृतना जयेम ॥1॥
प्रभु हम तेजस्वी बन जायें यज्ञ- धूम से पुष्टि मिले ।
दशों - दिशाओं में यश पायें मन से भी संतुष्टि मिले ॥1॥
10232
मम देवा विहवे सन्तु सर्व इन्द्रवन्तो मरुतो विष्णुरग्निः ।
ममान्तरिक्षमुरुलोकमस्तु मह्यं वातः पवतां कामे अस्मिन् ॥2॥
सूर्य - अग्नि - और पवन - देव से आश्रय की है हमें अपेक्षा ।
अन्तरिक्ष में यश फैले और प्राण - पवन दें हमें सुरक्षा ॥2॥
10233
मयि देवा द्रविणमा यजन्ता मय्याशीरस्तु मयि देवहूतिः ।
दैव्या होतारो वनुषन्त पूर्वेSरिष्टा: स्याम तन्वा सुवीरा: ॥3॥
हे अग्नि - देव धन - वैभव दे दो करते हैं तेरा आवाहन ।
तन- मन से परिपुष्ट रहें प्रभु सुख संतति- पायें मन-भावन ॥3॥
10234
मह्यं यजन्तु मम यानि हव्याकूतिः सत्या मनसो मे अस्तु ।
एनो मा नि गां कतमच्चनाहं विश्वे देवासो अधि वोचता नः॥4॥
संकल्प पूर्ण करना प्रभु मन का दुष्कर्मों से हमें बचाना ।
हविष्यान्न देते हैं प्रभुवर अविरल आशीष हमें दे जाना ॥4॥
10235
देवीः षळुर्वीरुरु नः कृणोत विश्वे देवास इह वीरयध्वम् ।
मा हास्महि प्रजया मा तनूभिर्मा रक्षाम द्विषते सोम राजन् ॥5॥
हे षट् - देवी धन - वैभव दो दुष्टों से तुम हमें बचाना ।
तन - मन से हम हों बलशाली संतति गुण-सम्पन्न बनाना॥5॥
10236
अग्ने मन्युं प्रतिनुदन्परेषामदब्धो गोपा: परि पाहि नस्त्वम् ।
प्रत्यञ्चो यन्तु निगुतः पुनस्ते3मैषां चित्तं प्रबुधां वि नेशत् ॥6॥
सदा सुरक्षा देना प्रभुवर सद् - बुध्दि सभी को दे देना ।
शुभ-शुभ चिन्तन हो हम सबका सुख सन्मति सबको देना ॥6॥
10237
धाता धातृणां भुवनस्य यस्पतिर्देवं त्रातारमभिमातिषाहम् ।
इमं यज्ञमश्विनोभा बृहस्पतिर्देवा: पान्तु यजमानं न्यर्थात् ॥7॥
हे इन्द्र- देव है यही प्रार्थना निर्विघ्न यज्ञ - सम्पादन हो ।
प्रज्ञा- जागृत हो जाए प्रभु शुभ-शुभ ही यह अनुष्ठान हो ॥7॥
10238
उरुव्यचा नो महिषः शर्म यंसदस्मिन्हवे पुरुहूतः पुरुक्षुः ।
स नः प्रजायै हर्यश्च मृळयेन्द्र मा नो रीरिषो मा परा दा: ॥8॥
हे अग्नि- देव हे इन्द्र-देव सबकी सन्तति सतत सुखी हो ।
तुम वरद - हस्त लेकर आना कोई भी यहॉं दुखी न हो ॥8॥
10239
ये नः सपत्ना अप ते भवन्त्विन्द्राग्निभ्यामव बाधामहे तान् ।
वसवो रुद्रा आदित्या उपरिस्पृशं मोग्रं चेत्तारमधिराजमक्रन्॥9॥
भीतर - बाहर के दुश्मन से प्रभु सदा हमारी रक्षा करना ।
शौर्य - धैर्य दे देना प्रभु-वर सद्-गुण ही हो मेरा गहना ॥9॥
सर्वतो भद्र कामना -एक उदात्त चिन्तन और अभिव्यक्ति -जिसे आप की नई ऊर्जा दे रही हैं
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