[ऋषि- अंग औरव । देवता- इन्द्र । छन्द- जगती ।]
10303
तव त्य इन्द्र सख्येषु वह्नय ऋतं मन्वाना व्यदर्दिरुर्वलम् ।
यत्रा दशस्यन्नुषसो रिणन्नपः कुत्साय मन्मन्नह्यश्च दंसय:॥1॥
सज्जन को सदा सुरक्षा देना दुष्टों का करना संहार ।
विजय सत्य की ही होती है असत की सतत होती हार ॥1॥
10304
अवासृजः प्रस्वः श्वञ्चयो गिरीनुदाज उस्त्रा अपिबो मधु प्रियम् ।
अवर्धयो वनिनो अस्य दंससा शुशोच सूर्य ऋतजातया गिरा ॥2॥
हे इन्द्र - देव तुम जल देते हो पानी से होते पेड पल्लवित ।
गो - माता के तुम रक्षक हो सज्जन से रहते सदा द्रवित ॥2॥
10305
वि सूर्यो मध्ये अमुचद्रथं दिवो विदद्दासाय प्रतिमानमार्यः ।
दृळहानि पिप्रोरसुरस्य मायिन इन्द्रो व्यास्यच्चकृवॉं ऋजिश्वना॥3॥
सूर्य - देवता प्रतिदिन आते जगती का तम हर लेते हैं ।
सज्जन का मान बढाते हैं वे उन्हें सुरक्षा भी देते हैं ॥3॥
10306
अनाधृष्टानि धृषितो व्यास्यन्निधींरदेवॉं अमृणदयास्यः ।
मासेव सूर्यो वसु पूर्यमा ददे गृणानः शत्रूँरश्रृणाद्विरुक्मता ॥4॥
हे इन्द्र - देव हे बलशाली दुष्टों का दमन जरूरी है ।
सदा हमारी रक्षा करना हर लेना जो कमजोरी है ॥4॥
10307
अयुध्दसेनो विभ्वा विभिन्दता दाशद्वृत्रहा तुज्यानि तेजते ।
इन्द्रस्य वज्रादबिभेदभिश्नथः प्राक्रामच्छुन्ध्यूरजहादुषा अनः ॥5॥
सभी असुर तुमसे डरते हैं तुम सज्जनता के पोषक हो ।
हम पर भी दया - दृष्टि रखना तुम सच्चाई उदघोषक हो ॥5॥
10308
एता त्या ते श्रुत्यानि केवला यदेक एकमकृणोरयज्ञम् ।
मासां विधानमदधा अधि दवि त्वया विभिन्नं भरति प्रधिं पिता॥6॥
हे प्रचुर पराक्रम के स्वामी तुम हम सबकी रक्षा करना ।
तुम निधान हो यश - वैभव के धन - धान्य सदा देते रहना ॥6॥
10303
तव त्य इन्द्र सख्येषु वह्नय ऋतं मन्वाना व्यदर्दिरुर्वलम् ।
यत्रा दशस्यन्नुषसो रिणन्नपः कुत्साय मन्मन्नह्यश्च दंसय:॥1॥
सज्जन को सदा सुरक्षा देना दुष्टों का करना संहार ।
विजय सत्य की ही होती है असत की सतत होती हार ॥1॥
10304
अवासृजः प्रस्वः श्वञ्चयो गिरीनुदाज उस्त्रा अपिबो मधु प्रियम् ।
अवर्धयो वनिनो अस्य दंससा शुशोच सूर्य ऋतजातया गिरा ॥2॥
हे इन्द्र - देव तुम जल देते हो पानी से होते पेड पल्लवित ।
गो - माता के तुम रक्षक हो सज्जन से रहते सदा द्रवित ॥2॥
10305
वि सूर्यो मध्ये अमुचद्रथं दिवो विदद्दासाय प्रतिमानमार्यः ।
दृळहानि पिप्रोरसुरस्य मायिन इन्द्रो व्यास्यच्चकृवॉं ऋजिश्वना॥3॥
सूर्य - देवता प्रतिदिन आते जगती का तम हर लेते हैं ।
सज्जन का मान बढाते हैं वे उन्हें सुरक्षा भी देते हैं ॥3॥
10306
अनाधृष्टानि धृषितो व्यास्यन्निधींरदेवॉं अमृणदयास्यः ।
मासेव सूर्यो वसु पूर्यमा ददे गृणानः शत्रूँरश्रृणाद्विरुक्मता ॥4॥
हे इन्द्र - देव हे बलशाली दुष्टों का दमन जरूरी है ।
सदा हमारी रक्षा करना हर लेना जो कमजोरी है ॥4॥
10307
अयुध्दसेनो विभ्वा विभिन्दता दाशद्वृत्रहा तुज्यानि तेजते ।
इन्द्रस्य वज्रादबिभेदभिश्नथः प्राक्रामच्छुन्ध्यूरजहादुषा अनः ॥5॥
सभी असुर तुमसे डरते हैं तुम सज्जनता के पोषक हो ।
हम पर भी दया - दृष्टि रखना तुम सच्चाई उदघोषक हो ॥5॥
10308
एता त्या ते श्रुत्यानि केवला यदेक एकमकृणोरयज्ञम् ।
मासां विधानमदधा अधि दवि त्वया विभिन्नं भरति प्रधिं पिता॥6॥
हे प्रचुर पराक्रम के स्वामी तुम हम सबकी रक्षा करना ।
तुम निधान हो यश - वैभव के धन - धान्य सदा देते रहना ॥6॥
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