[ऋषि- बृहद्दिव आथर्वण । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10163
तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ उग्रस्त्वेष्नृम्णः ।
सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यं विश्वे मदन्त्यूमा: ॥1॥
समस्त भुवन में देशकाल में बल में तेज में प्रभु तुम ही हो ।
अज्ञान-तमस को मित्र मिटाता जग प्रेरक-बल भी तुम हो॥1॥
10164
वावृधानः शवसा भूर्योजा: शत्रुर्दासाय भियसं दधाति ।
अव्यनच्च व्यनच्च सस्नि सं ते नवन्त प्रभृता मदेषु ॥2॥
मित्र मेघ पर भारी पडता चर-अचर जीव का संचालक है ।
रवि प्रभूत बल का स्वामी हैं वह ही तो आनंद-दायक है ॥2॥
10165
त्वे क्रतुमपि वृञ्जन्ति विश्वे द्विर्यदेते त्रिर्भवन्त्यूमा: ।
स्वादोः स्वादीयः स्वादुना सृजा समदः सु मधु मधुनाभि योधी:॥3॥
हम अनुष्ठान करते हैं प्रभु-वर सत्कर्मों का पाठ- पढाना ।
सदा स्वस्थ हों सदा निरोगी धन-संतति को सतत बढाना ॥3॥
10166
इति चिध्दि त्वा धना जयन्तं मदेमदे अनुमदन्ति विप्रा: ।
ओजीयो धृष्णो स्थिरमा तनुष्व मा त्वा दभन्यातुधाना दुरेवा:॥4॥
तुम धन - वैभव के स्वामी हो प्रभु तेजस्वी हमें बनाना ।
निर्भय होकर जियें जगत में सन्मार्ग हमें अब तुम्हीं बताना ॥4॥
10167
त्वया वयं शाशद्महे रणेषु प्रपश्यन्तो युधेन्यानि भूरि ।
चोदयामि त आयुधा वचोभिः सं ते शिशामि ब्रह्मणा वयांसि॥5॥
तेरी दया से जीत मिली है दुश्मन मेरा हुआ है निर्बल ।
सद्-विचार में बल है भगवन तुम ही तो हो मेरा संबल ॥5॥
10168
स्तुषेय्यं पुरुवर्पसमृभ्वमिनतममाप्त्यमाप्त्यानाम् ।
आ दर्षते शवसा सप्त दानून्प्र साक्षते प्रतिमानानि भूरि ॥6॥
सब रूपाकार में तुम ही तुम हो सतत नमन हम करते हैं ।
सदा सुरक्षा देना भगवन तेरी गरिमा गाते रहते हैं ॥6॥
10169
नि तद्दधिषेSवरं परं च यस्मिन्नाविथावसा दुरोणे ।
आ मातरा स्थापयसे जिगत्नू अत इनोषि कर्वरा पुरूणि ॥7॥
हम हविष्यान्न देते हैं प्रभु तुम धन - धान हमें देना ।
तुम हो सम्पूर्ण विश्व के स्वामी जग - रक्षा - स्वयं लेना ॥7॥
10170
इमा ब्रह्म बृहद्दिवो विवक्तीन्द्राय शूषमग्रियः स्वर्षा: ।
महो गोत्रस्य क्षयति स्वराजो दुरश्च विश्वा अवृणोदप स्वा:॥8॥
अमित ज्ञान आलोक-प्रभा के लिए स्वयं हम हों आनन्दित ।
वह हम सबको सहज-सुलभ है वेद-ऋचायें करें निनादित ॥8॥
10171
एवा महान्बृहद्दिवो अथर्वावोचत्स्वां तन्व1मिन्द्रमेव ।
स्वसारो मातरिभ्वरीररिप्रा हिन्वन्ति च शवसा वर्धयन्ति च॥9॥
ज्ञानी प्रभु से बातें करता है होते हैं अनगिन सम्वाद ।
परा - पकृति आमोद बढाती करती रहती सतत निनाद ॥9॥
10163
तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ उग्रस्त्वेष्नृम्णः ।
सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यं विश्वे मदन्त्यूमा: ॥1॥
समस्त भुवन में देशकाल में बल में तेज में प्रभु तुम ही हो ।
अज्ञान-तमस को मित्र मिटाता जग प्रेरक-बल भी तुम हो॥1॥
10164
वावृधानः शवसा भूर्योजा: शत्रुर्दासाय भियसं दधाति ।
अव्यनच्च व्यनच्च सस्नि सं ते नवन्त प्रभृता मदेषु ॥2॥
मित्र मेघ पर भारी पडता चर-अचर जीव का संचालक है ।
रवि प्रभूत बल का स्वामी हैं वह ही तो आनंद-दायक है ॥2॥
10165
त्वे क्रतुमपि वृञ्जन्ति विश्वे द्विर्यदेते त्रिर्भवन्त्यूमा: ।
स्वादोः स्वादीयः स्वादुना सृजा समदः सु मधु मधुनाभि योधी:॥3॥
हम अनुष्ठान करते हैं प्रभु-वर सत्कर्मों का पाठ- पढाना ।
सदा स्वस्थ हों सदा निरोगी धन-संतति को सतत बढाना ॥3॥
10166
इति चिध्दि त्वा धना जयन्तं मदेमदे अनुमदन्ति विप्रा: ।
ओजीयो धृष्णो स्थिरमा तनुष्व मा त्वा दभन्यातुधाना दुरेवा:॥4॥
तुम धन - वैभव के स्वामी हो प्रभु तेजस्वी हमें बनाना ।
निर्भय होकर जियें जगत में सन्मार्ग हमें अब तुम्हीं बताना ॥4॥
10167
त्वया वयं शाशद्महे रणेषु प्रपश्यन्तो युधेन्यानि भूरि ।
चोदयामि त आयुधा वचोभिः सं ते शिशामि ब्रह्मणा वयांसि॥5॥
तेरी दया से जीत मिली है दुश्मन मेरा हुआ है निर्बल ।
सद्-विचार में बल है भगवन तुम ही तो हो मेरा संबल ॥5॥
10168
स्तुषेय्यं पुरुवर्पसमृभ्वमिनतममाप्त्यमाप्त्यानाम् ।
आ दर्षते शवसा सप्त दानून्प्र साक्षते प्रतिमानानि भूरि ॥6॥
सब रूपाकार में तुम ही तुम हो सतत नमन हम करते हैं ।
सदा सुरक्षा देना भगवन तेरी गरिमा गाते रहते हैं ॥6॥
10169
नि तद्दधिषेSवरं परं च यस्मिन्नाविथावसा दुरोणे ।
आ मातरा स्थापयसे जिगत्नू अत इनोषि कर्वरा पुरूणि ॥7॥
हम हविष्यान्न देते हैं प्रभु तुम धन - धान हमें देना ।
तुम हो सम्पूर्ण विश्व के स्वामी जग - रक्षा - स्वयं लेना ॥7॥
10170
इमा ब्रह्म बृहद्दिवो विवक्तीन्द्राय शूषमग्रियः स्वर्षा: ।
महो गोत्रस्य क्षयति स्वराजो दुरश्च विश्वा अवृणोदप स्वा:॥8॥
अमित ज्ञान आलोक-प्रभा के लिए स्वयं हम हों आनन्दित ।
वह हम सबको सहज-सुलभ है वेद-ऋचायें करें निनादित ॥8॥
10171
एवा महान्बृहद्दिवो अथर्वावोचत्स्वां तन्व1मिन्द्रमेव ।
स्वसारो मातरिभ्वरीररिप्रा हिन्वन्ति च शवसा वर्धयन्ति च॥9॥
ज्ञानी प्रभु से बातें करता है होते हैं अनगिन सम्वाद ।
परा - पकृति आमोद बढाती करती रहती सतत निनाद ॥9॥
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