[ऋषि- सुदास् पैजवन । देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10268
प्रो ष्वस्मै पुरोरथमिन्द्राय शूषमर्चत । अभीके चिदु लोककृत्सङ्गे समत्सु
वृत्रहास्माकं बोधि चोदिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥1॥
हे इन्द्र- देव हे शक्ति- पुञ्ज प्रभु दुष्टों से तुम हमें बचाओ ।
दुर्जन को सही राह दिखलाओ धन और धान हमें दे जाओ ॥1॥
10269
त्वं सिन्धूँरवासृजोSधराचो अहन्नहिम् । अशत्रुरिन्द्र जज्ञिषे विश्वं पुष्यसि
वार्यं तं त्वा परि ष्वजामहे । नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥2॥
हे इन्द्र - देव हे जल - दाता तुम संत - जनों के पालक हो ।
हम हविष्यान्न अर्पित करते हैं तुम ही हम सबके रक्षक हो ॥2॥
10270
वि षु विश्वा अरतयोSर्यो नशन्त नो धियः। अस्तासि शत्रवे वधं यो न इन्द्र
जिघांसति या ते रातिर्ददिर्वसु नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु॥3॥
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है तुम सज्जन का पालन करना ।
धन- धान्य सम्पदा देना प्रभुवर सबका हित करते रहना ॥3॥
10271
यो न इन्द्राभितो जनो वृकायुरादिदेशति। अधस्पदं तमीँ कृधि विबाधो असि
सासहि र्नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥4॥
बाहर - भीतर के दुश्मन से प्रभु रक्षा करना सदा हमारी ।
तेरी शरण में हम आए हैं स्तुति करते हैं सदा तुम्हारी ॥4॥
10272
यो न इन्द्राभिदासति सनाभिर्यश्च निष्ट्यः। अव तस्य बलं तिर महीव द्यौरध
त्मना नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥5॥
जो असत् मार्ग पर भटक रहे हैं सही राह उनको दिखलाना ।
अतुलित बल के स्वामी हो तुम मेरे मन का दोष मिटाना ॥5॥
10273
वयमिन्द्र त्वायवः सखित्वमा रभामहे । ऋतस्य नः पथा नयाति विश्वानि
दुरिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥6॥
तुम्हें सदा से अपना माना मित्र - भाव के तुम पोषक हो ।
दुर्जन तुमसे भय खाते हैं अपनों के तुम ही रक्षक हो ॥6॥
10274
अस्मभ्यं सु त्वमिन्द्र तां शिक्ष या दोहते प्रति वरं जरित्रे ।
अच्छिद्रोध्नी पीपयद्यथा नः सहस्त्रधारा पयसा मही गौः॥7॥
हे प्रभु तुम प्रेरक बन जाओ तन और मन परि-पुष्ट बनाओ ।
मनो- कामना पूरी कर दो पोषक-रस हमको दे जाओ ॥7॥
10268
प्रो ष्वस्मै पुरोरथमिन्द्राय शूषमर्चत । अभीके चिदु लोककृत्सङ्गे समत्सु
वृत्रहास्माकं बोधि चोदिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥1॥
हे इन्द्र- देव हे शक्ति- पुञ्ज प्रभु दुष्टों से तुम हमें बचाओ ।
दुर्जन को सही राह दिखलाओ धन और धान हमें दे जाओ ॥1॥
10269
त्वं सिन्धूँरवासृजोSधराचो अहन्नहिम् । अशत्रुरिन्द्र जज्ञिषे विश्वं पुष्यसि
वार्यं तं त्वा परि ष्वजामहे । नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥2॥
हे इन्द्र - देव हे जल - दाता तुम संत - जनों के पालक हो ।
हम हविष्यान्न अर्पित करते हैं तुम ही हम सबके रक्षक हो ॥2॥
10270
वि षु विश्वा अरतयोSर्यो नशन्त नो धियः। अस्तासि शत्रवे वधं यो न इन्द्र
जिघांसति या ते रातिर्ददिर्वसु नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु॥3॥
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है तुम सज्जन का पालन करना ।
धन- धान्य सम्पदा देना प्रभुवर सबका हित करते रहना ॥3॥
10271
यो न इन्द्राभितो जनो वृकायुरादिदेशति। अधस्पदं तमीँ कृधि विबाधो असि
सासहि र्नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥4॥
बाहर - भीतर के दुश्मन से प्रभु रक्षा करना सदा हमारी ।
तेरी शरण में हम आए हैं स्तुति करते हैं सदा तुम्हारी ॥4॥
10272
यो न इन्द्राभिदासति सनाभिर्यश्च निष्ट्यः। अव तस्य बलं तिर महीव द्यौरध
त्मना नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥5॥
जो असत् मार्ग पर भटक रहे हैं सही राह उनको दिखलाना ।
अतुलित बल के स्वामी हो तुम मेरे मन का दोष मिटाना ॥5॥
10273
वयमिन्द्र त्वायवः सखित्वमा रभामहे । ऋतस्य नः पथा नयाति विश्वानि
दुरिता नभन्तामन्यकेषां ज्याका अधि धन्वसु ॥6॥
तुम्हें सदा से अपना माना मित्र - भाव के तुम पोषक हो ।
दुर्जन तुमसे भय खाते हैं अपनों के तुम ही रक्षक हो ॥6॥
10274
अस्मभ्यं सु त्वमिन्द्र तां शिक्ष या दोहते प्रति वरं जरित्रे ।
अच्छिद्रोध्नी पीपयद्यथा नः सहस्त्रधारा पयसा मही गौः॥7॥
हे प्रभु तुम प्रेरक बन जाओ तन और मन परि-पुष्ट बनाओ ।
मनो- कामना पूरी कर दो पोषक-रस हमको दे जाओ ॥7॥
हे प्रभु तुम प्रेरक बन जाओ तन और मन परि-पुष्ट बनाओ ।
ReplyDeleteमनो- कामना पूरी कर दो पोषक-रस से संतृप्त कराओ ॥7॥
प्रभु को नमन !