Sunday, 3 November 2013

सूक्त- 137

[ऋषि- सप्तर्षि-गण 1-भरद्वाज 2- कश्यप 3- गोतम 4- अत्रि 5- विश्वामित्र 6- जमदग्नि 7- वसिष्ठ । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- अनुष्टुप ।]

10296
उत  देवा अवहितं  देवा  उन्नयथा  पुनः ।
उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः ॥1॥

निर्बल को निपुण बनाना भगवन सतत सुरक्षा देते रहना ।
दीर्घायु बना देना प्रभु हमको दोषी को क्षमा नहीं करना ॥1॥

10297
द्वाविमौ वाता वात आ सिन्धोरा परावतः ।
दक्षं ते अन्य आ वातु परान्यो वातु यद्रपः॥2॥

हे  पवन- देव है यही प्रार्थना हम सक्षम- समर्थ  बन  जायें ।
धीर-वीर हम बनें रहें प्रभु षडरिपु पर सतत विजय पायें ॥2॥

10298
आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः ।
त्वं  हि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे ॥3॥

आधि-व्याधि का करे निवारण हे प्रभु ऐसी  औषधि लाओ ।
जो दोषों से  हमें बचाए हित- कारी औषधियॉं दे जाओ ॥3॥

10299
आ त्वागमं शन्तातिभिरथो अरिष्टतातिभः ।
दक्षं ते भद्रमाभार्षं परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥4॥

हे मनुज तुम्हारी रक्षा होगी सुख-शान्ति तुम्हारा धन होगा ।
सदा-सहायक होंगे सप्त-ऋषि हर मानुष रोग-मुक्त होगा ॥4॥

10300
त्रायन्तामिह    देवास्त्रायतां    मरुतां    गणः ।
त्रायन्तां विश्वाभूतानि यथायमरपा असत् ॥5॥

हे भरद्वाज हे  गौतम मुनि तुम हर विपदा से  हमें बचाओ ।
पवन -देव अनुकूल रहें नित रोग-शोक को दूर भगाओ ॥5॥

10301
आप     विद्वा     उ   भेषजीरापो     अमीवचातनीः ।
आपः सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥6॥

जल  उपचार  है  सब  रोगों  का  जड  से  रोग दूर करता है ।
जल भी तो अनुपम औषधि है सब रोगों को वह हरता है॥6॥

10302
हस्ताभ्यां   दशशाखाभ्यांजिह्वा   वाचः   पुरोगवी ।
अनामयित्नुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप स्पृशामसि ॥7॥

स्पर्श-चिकित्सा अति उत्तम है मनुज निरोगी- मन पाता है ।
दस-अँगुलि की महिमा अद्भुत पुनर्नवा - तन हो जाता है॥7॥



  

1 comment:

  1. सुंदर प्रस्तुति !
    दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाए...!
    ===========================
    RECENT POST -: दीप जलायें .

    ReplyDelete