[ऋषि- सप्तर्षि-गण 1-भरद्वाज 2- कश्यप 3- गोतम 4- अत्रि 5- विश्वामित्र 6- जमदग्नि 7- वसिष्ठ । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- अनुष्टुप ।]
10296
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः ।
उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः ॥1॥
निर्बल को निपुण बनाना भगवन सतत सुरक्षा देते रहना ।
दीर्घायु बना देना प्रभु हमको दोषी को क्षमा नहीं करना ॥1॥
10297
द्वाविमौ वाता वात आ सिन्धोरा परावतः ।
दक्षं ते अन्य आ वातु परान्यो वातु यद्रपः॥2॥
हे पवन- देव है यही प्रार्थना हम सक्षम- समर्थ बन जायें ।
धीर-वीर हम बनें रहें प्रभु षडरिपु पर सतत विजय पायें ॥2॥
10298
आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः ।
त्वं हि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे ॥3॥
आधि-व्याधि का करे निवारण हे प्रभु ऐसी औषधि लाओ ।
जो दोषों से हमें बचाए हित- कारी औषधियॉं दे जाओ ॥3॥
10299
आ त्वागमं शन्तातिभिरथो अरिष्टतातिभः ।
दक्षं ते भद्रमाभार्षं परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥4॥
हे मनुज तुम्हारी रक्षा होगी सुख-शान्ति तुम्हारा धन होगा ।
सदा-सहायक होंगे सप्त-ऋषि हर मानुष रोग-मुक्त होगा ॥4॥
10300
त्रायन्तामिह देवास्त्रायतां मरुतां गणः ।
त्रायन्तां विश्वाभूतानि यथायमरपा असत् ॥5॥
हे भरद्वाज हे गौतम मुनि तुम हर विपदा से हमें बचाओ ।
पवन -देव अनुकूल रहें नित रोग-शोक को दूर भगाओ ॥5॥
10301
आप विद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः ।
आपः सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥6॥
जल उपचार है सब रोगों का जड से रोग दूर करता है ।
जल भी तो अनुपम औषधि है सब रोगों को वह हरता है॥6॥
10302
हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यांजिह्वा वाचः पुरोगवी ।
अनामयित्नुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप स्पृशामसि ॥7॥
स्पर्श-चिकित्सा अति उत्तम है मनुज निरोगी- मन पाता है ।
दस-अँगुलि की महिमा अद्भुत पुनर्नवा - तन हो जाता है॥7॥
10296
उत देवा अवहितं देवा उन्नयथा पुनः ।
उतागश्चक्रुषं देवा देवा जीवयथा पुनः ॥1॥
निर्बल को निपुण बनाना भगवन सतत सुरक्षा देते रहना ।
दीर्घायु बना देना प्रभु हमको दोषी को क्षमा नहीं करना ॥1॥
10297
द्वाविमौ वाता वात आ सिन्धोरा परावतः ।
दक्षं ते अन्य आ वातु परान्यो वातु यद्रपः॥2॥
हे पवन- देव है यही प्रार्थना हम सक्षम- समर्थ बन जायें ।
धीर-वीर हम बनें रहें प्रभु षडरिपु पर सतत विजय पायें ॥2॥
10298
आ वात वाहि भेषजं वि वात वाहि यद्रपः ।
त्वं हि विश्वभेषजो देवानां दूत ईयसे ॥3॥
आधि-व्याधि का करे निवारण हे प्रभु ऐसी औषधि लाओ ।
जो दोषों से हमें बचाए हित- कारी औषधियॉं दे जाओ ॥3॥
10299
आ त्वागमं शन्तातिभिरथो अरिष्टतातिभः ।
दक्षं ते भद्रमाभार्षं परा यक्ष्मं सुवामि ते ॥4॥
हे मनुज तुम्हारी रक्षा होगी सुख-शान्ति तुम्हारा धन होगा ।
सदा-सहायक होंगे सप्त-ऋषि हर मानुष रोग-मुक्त होगा ॥4॥
10300
त्रायन्तामिह देवास्त्रायतां मरुतां गणः ।
त्रायन्तां विश्वाभूतानि यथायमरपा असत् ॥5॥
हे भरद्वाज हे गौतम मुनि तुम हर विपदा से हमें बचाओ ।
पवन -देव अनुकूल रहें नित रोग-शोक को दूर भगाओ ॥5॥
10301
आप विद्वा उ भेषजीरापो अमीवचातनीः ।
आपः सर्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥6॥
जल उपचार है सब रोगों का जड से रोग दूर करता है ।
जल भी तो अनुपम औषधि है सब रोगों को वह हरता है॥6॥
10302
हस्ताभ्यां दशशाखाभ्यांजिह्वा वाचः पुरोगवी ।
अनामयित्नुभ्यां त्वा ताभ्यां त्वोप स्पृशामसि ॥7॥
स्पर्श-चिकित्सा अति उत्तम है मनुज निरोगी- मन पाता है ।
दस-अँगुलि की महिमा अद्भुत पुनर्नवा - तन हो जाता है॥7॥
सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाए...!
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