Friday, 30 May 2014

सूक्त - 19

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7853
यत्सोम चित्रमुक्थ्यं दिव्यं पार्थिवं वसु । तन्नः पुनान आ भर॥1॥

हे पूजनीय पावन परमेश्वर यश - वैभव का सब को  दो दान ।
हीरे - पन्नों से भरी है धरती अन्वेषण - गुण करो प्रदान॥1॥

7854
युवं हि स्थःस्वर्पती इन्द्रश्च सोम गोपती।ईशाना पिप्यतं धियः॥2॥

गुरुजन से उत्तम - विद्या सीखो पूरी - पीढी को सिखलाते हैं ।
उन  से वाणी का वैभव जानो परा - अपरा समझाते  हैं ॥2॥

7855
वृषा पुनान आयुषु स्तनयन्नधि बर्हिषि । हरिःसन्योनिमासदत्॥3॥

मानव - मन की जो अभिलाषा है परमात्मा पूरी  करते  हैं ।
वह  ही  सबको प्रेरित करते सबकी विपदा  वे  हरते  हैं ॥3॥

7856
अवावशन्त धीतयो वृषभस्याधि रेतसि । सूनोर्वत्सस्य मातरः॥4॥

जैसे  गो- माता  बछरू  को  गो - रस  से  तंदरुस्त  करती  है ।
बस वैसी है प्रकृति हमारी आहार का ध्यान सदा रखती है॥4॥

7857
कुविद्वृषण्यन्तीभ्यः पुनानो गर्भमादधत् । या: शुक्रं दुहते पयः॥5॥

धरा - गगन अतिशय अद्भुत है कितनी  सुन्दर  है यह धरती ।
पर मानव तो सुन्दरतम है कवि की कलम हमेशा कहती ॥5॥

7858
उप शिक्षापतस्थुषो भियसमा धेहि शत्रुषु । पवमान विदा रयिम्॥6॥

सत्पथ पर हम चलें निरन्तर सब का  सुख  हो  मेरा  ध्येय ।
सज्जन का जीवन सुख - कर हो वसुन्धरा हो श्रेय - प्रेय॥6॥

7859
नि शत्रोः सोम वृष्ण्यं नि शुष्मं नि वयस्तिर । दूरे वा सतो अन्ति वा॥7॥

दुष्ट - दमन अति आवश्यक है सज्जन का तुम रखना ध्यान ।
सत्कर्मों  की  चले  श्रृँखला  वरद - हस्त  रखना भगवान ॥7॥   

1 comment:

  1. दुष्ट - दमन अति आवश्यक है सज्जन का तुम रखना ध्यान...सूक्तों में भी ये उल्लिखित है...

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