[ऋषि- उचथ्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8047
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतं सोमं पवित्र आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे॥1॥
प्रभु के करीब यदि जाना हो अपने - मन का रखो ध्यान ।
प्रभु को पावन-मन ही प्रिय है आरम्भ करें अब यह अभियान॥1॥
8048
दिवः पीयूषमुत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । सुनोता मधुमुत्तमम्॥2॥
जिसको मन की तृप्ति चाहिए जिसको पाना है सन्तोष ।
वह उपासना करे निरन्तर पा जाएगा वह परि - तोष ॥2॥
8049
तव त्य इन्दो अन्धसो देवा मधोर्व्यश्नते । पवमानस्य मरुतः॥3॥
परमेश्वर पावन मन में रहता साधक पाता है परमानन्द ।
आनन्द हेतु बल नहीं चाहिए सरल - सहज है ब्रह्मानन्द ॥3॥
8050
त्वं हि सोम वर्धयन्त्सुतो मदाय भूर्णये । वृषन्त्स्तोतारमूतये॥4॥
वेद - ज्ञान की महिमा अद्भुत अपरा - परा का यह भण्डार ।
परमात्मा - सान्निध्य यहीं है सब विषयों का यह आगार ॥4॥
8051
अभ्यर्ष विचक्षण पवित्रं धारया सुतः। अभि वाजमुत श्रवः ॥5॥
तुम अनन्त बल के स्वामी हो आओ अन्तर्मन में बस जाओ ।
यश - वैभव का दान हमें दो मोक्ष - द्वार तक तुम पहुँचाओ॥5॥
8047
अध्वर्यो अद्रिभिः सुतं सोमं पवित्र आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे॥1॥
प्रभु के करीब यदि जाना हो अपने - मन का रखो ध्यान ।
प्रभु को पावन-मन ही प्रिय है आरम्भ करें अब यह अभियान॥1॥
8048
दिवः पीयूषमुत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । सुनोता मधुमुत्तमम्॥2॥
जिसको मन की तृप्ति चाहिए जिसको पाना है सन्तोष ।
वह उपासना करे निरन्तर पा जाएगा वह परि - तोष ॥2॥
8049
तव त्य इन्दो अन्धसो देवा मधोर्व्यश्नते । पवमानस्य मरुतः॥3॥
परमेश्वर पावन मन में रहता साधक पाता है परमानन्द ।
आनन्द हेतु बल नहीं चाहिए सरल - सहज है ब्रह्मानन्द ॥3॥
8050
त्वं हि सोम वर्धयन्त्सुतो मदाय भूर्णये । वृषन्त्स्तोतारमूतये॥4॥
वेद - ज्ञान की महिमा अद्भुत अपरा - परा का यह भण्डार ।
परमात्मा - सान्निध्य यहीं है सब विषयों का यह आगार ॥4॥
8051
अभ्यर्ष विचक्षण पवित्रं धारया सुतः। अभि वाजमुत श्रवः ॥5॥
तुम अनन्त बल के स्वामी हो आओ अन्तर्मन में बस जाओ ।
यश - वैभव का दान हमें दो मोक्ष - द्वार तक तुम पहुँचाओ॥5॥
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