Saturday, 24 May 2014

सूक्त - 31

[ऋषि- गोतम राहूगण । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7931
प्र सोमासः स्वाध्य1: पवमानासो अक्रमुः। रयिं कृण्वन्ति चेतनम्॥1॥

जन्म - भूमि  है  अतिशय  प्यारी  जो  इसकी  रक्षा  करता  है ।
उज्ज्वल - यश उसको मिलता है अमर सदा वह ही रहता है॥1॥

7932
दिवस्पृथिव्या अधि भवेन्दो द्युम्नवर्धनः। भवा वाजानां पतिः॥2॥

कितना  भी  कोई  तेजस्वी  हो  चाहे  जितना  भी  हो  वह  वीर ।
परा - शक्ति  है  सब  से ऊपर  सब   को समझाते  रहते धीर ॥2॥

7933
तुभ्यं वाता अभिप्रियस्तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः। सोम वर्धन्ति ते महः॥3॥

स्वस्थ - अ‍ॅग - प्रत्यंग  प्राप्त  कर  जन्म- भूमि  हित आते  काम ।
मातृ - भूमि - हित  मर  मिटते  हैं  उनके  प्यारे  पुत्र  तमाम ॥3॥

7934
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम् । भवा वाजस्य सङ्गथे॥4॥

परमात्मा  सब  को  सुख  देते  हम  सब  पर  करते  उपकार ।
सबकी  विपदा  हर  लेते  हैं  परमेश्वर  हैं  सब  के आधार ॥4॥

7935
तुभ्यं गावो घृतं पयो बभ्रो दुदुह्रे अक्षितम् । वर्षिष्ठे अधि सानवि॥5॥

अद्भुत  है  यह  प्रकृति  हमारी  अद्भुत  है  रिमझिम - बरसात ।
परमात्मा  भी  अद्भुत  होगा  अद्भुत  हैं   उनके दिन - रात ॥5॥

7936
स्वायुधस्य ते सतो भुवनस्य पते वयम् । इन्दो सखित्वमुश्मसि॥6॥

वह  परमात्मा  सखा - सदृश  है  यही  भाव  मुझको  प्यारा  है ।
आनन्द - रस  वह  ही  देता  है पर वह प्रभु सब से न्यारा है ॥6॥


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