[ऋषि- गोतम राहूगण । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7931
प्र सोमासः स्वाध्य1: पवमानासो अक्रमुः। रयिं कृण्वन्ति चेतनम्॥1॥
जन्म - भूमि है अतिशय प्यारी जो इसकी रक्षा करता है ।
उज्ज्वल - यश उसको मिलता है अमर सदा वह ही रहता है॥1॥
7932
दिवस्पृथिव्या अधि भवेन्दो द्युम्नवर्धनः। भवा वाजानां पतिः॥2॥
कितना भी कोई तेजस्वी हो चाहे जितना भी हो वह वीर ।
परा - शक्ति है सब से ऊपर सब को समझाते रहते धीर ॥2॥
7933
तुभ्यं वाता अभिप्रियस्तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः। सोम वर्धन्ति ते महः॥3॥
स्वस्थ - अॅग - प्रत्यंग प्राप्त कर जन्म- भूमि हित आते काम ।
मातृ - भूमि - हित मर मिटते हैं उनके प्यारे पुत्र तमाम ॥3॥
7934
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम् । भवा वाजस्य सङ्गथे॥4॥
परमात्मा सब को सुख देते हम सब पर करते उपकार ।
सबकी विपदा हर लेते हैं परमेश्वर हैं सब के आधार ॥4॥
7935
तुभ्यं गावो घृतं पयो बभ्रो दुदुह्रे अक्षितम् । वर्षिष्ठे अधि सानवि॥5॥
अद्भुत है यह प्रकृति हमारी अद्भुत है रिमझिम - बरसात ।
परमात्मा भी अद्भुत होगा अद्भुत हैं उनके दिन - रात ॥5॥
7936
स्वायुधस्य ते सतो भुवनस्य पते वयम् । इन्दो सखित्वमुश्मसि॥6॥
वह परमात्मा सखा - सदृश है यही भाव मुझको प्यारा है ।
आनन्द - रस वह ही देता है पर वह प्रभु सब से न्यारा है ॥6॥
7931
प्र सोमासः स्वाध्य1: पवमानासो अक्रमुः। रयिं कृण्वन्ति चेतनम्॥1॥
जन्म - भूमि है अतिशय प्यारी जो इसकी रक्षा करता है ।
उज्ज्वल - यश उसको मिलता है अमर सदा वह ही रहता है॥1॥
7932
दिवस्पृथिव्या अधि भवेन्दो द्युम्नवर्धनः। भवा वाजानां पतिः॥2॥
कितना भी कोई तेजस्वी हो चाहे जितना भी हो वह वीर ।
परा - शक्ति है सब से ऊपर सब को समझाते रहते धीर ॥2॥
7933
तुभ्यं वाता अभिप्रियस्तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः। सोम वर्धन्ति ते महः॥3॥
स्वस्थ - अॅग - प्रत्यंग प्राप्त कर जन्म- भूमि हित आते काम ।
मातृ - भूमि - हित मर मिटते हैं उनके प्यारे पुत्र तमाम ॥3॥
7934
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम् । भवा वाजस्य सङ्गथे॥4॥
परमात्मा सब को सुख देते हम सब पर करते उपकार ।
सबकी विपदा हर लेते हैं परमेश्वर हैं सब के आधार ॥4॥
7935
तुभ्यं गावो घृतं पयो बभ्रो दुदुह्रे अक्षितम् । वर्षिष्ठे अधि सानवि॥5॥
अद्भुत है यह प्रकृति हमारी अद्भुत है रिमझिम - बरसात ।
परमात्मा भी अद्भुत होगा अद्भुत हैं उनके दिन - रात ॥5॥
7936
स्वायुधस्य ते सतो भुवनस्य पते वयम् । इन्दो सखित्वमुश्मसि॥6॥
वह परमात्मा सखा - सदृश है यही भाव मुझको प्यारा है ।
आनन्द - रस वह ही देता है पर वह प्रभु सब से न्यारा है ॥6॥
प्रभु की महिमा है...
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