[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री-3 पुर उष्णिक् ।]
8085
प्र गायत्रेण गायत पवमानं विचर्षणिम् । इन्दुं सहस्त्रचक्षसम्॥1॥
शुभ - चिन्तन हो पावन - मन से कर्म - मार्ग हो तेरी राह ।
कर्म - मार्ग में चलो निरन्तर करना नहीं कोई परवाह ॥1॥
8086
तं त्वा सहस्त्रचक्षसमथो सहस्त्रभर्णसम् । अति वारमपाविषुः॥2॥
सर्व समर्थ वही परमात्मा हम सबका पोषण करता है ।
वह पूजनीय है वह प्रणम्य है हम सबकी विपदा हरता है ॥2॥
8087
अति वारान्पवमानो असिष्यदत्कलशॉ अभि धावति।इन्द्रस्य हार्द्याविशन्॥3॥
ज्ञान रूप में वह परमात्मा हम सबके भीतर रहता है ।
अन्तर्मन पावन हो तब ही वह उस मन में रमता है॥3॥
8088
इन्द्रस्य सोम राधसे शं पवस्व विचर्षणे । प्रजावद्रेत आ भर॥4॥
हे प्रभु कर्म - योग सिखलाना कर्म - मार्ग तक तुम पहुँचाना ।
सत्पथ पर हम चलें निरन्तर अज्ञान - तिमिर से मुझे बचाना॥4॥
8085
प्र गायत्रेण गायत पवमानं विचर्षणिम् । इन्दुं सहस्त्रचक्षसम्॥1॥
शुभ - चिन्तन हो पावन - मन से कर्म - मार्ग हो तेरी राह ।
कर्म - मार्ग में चलो निरन्तर करना नहीं कोई परवाह ॥1॥
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तं त्वा सहस्त्रचक्षसमथो सहस्त्रभर्णसम् । अति वारमपाविषुः॥2॥
सर्व समर्थ वही परमात्मा हम सबका पोषण करता है ।
वह पूजनीय है वह प्रणम्य है हम सबकी विपदा हरता है ॥2॥
8087
अति वारान्पवमानो असिष्यदत्कलशॉ अभि धावति।इन्द्रस्य हार्द्याविशन्॥3॥
ज्ञान रूप में वह परमात्मा हम सबके भीतर रहता है ।
अन्तर्मन पावन हो तब ही वह उस मन में रमता है॥3॥
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इन्द्रस्य सोम राधसे शं पवस्व विचर्षणे । प्रजावद्रेत आ भर॥4॥
हे प्रभु कर्म - योग सिखलाना कर्म - मार्ग तक तुम पहुँचाना ।
सत्पथ पर हम चलें निरन्तर अज्ञान - तिमिर से मुझे बचाना॥4॥
ज्ञान रूप में वह परमात्मा हम सबके भीतर रहता है ।
ReplyDeleteअन्तर्मन पावन हो तब ही वह उस मन में रमता है॥3॥
साधना का सुंदर सूत्र