Friday, 23 May 2014

सूक्त - 33

[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7943
प्र सोमासो विपश्चितोSपां न यन्त्यूर्मयः। वनानि महिषा इव॥1॥

वेद - ऋचा आमन्त्रित  करती  कानों  में  कुछ - कुछ  कहती  है ।
जिनका  अन्तः - मन  पावन  है उनको आकर्षित करती  है ॥1॥

7944
अभि द्रोणानि बभ्रवः शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तरक्षरन्॥2॥

सद् - विद्या का अविरल प्रसार हो हर  मनुज  करे अपना  विकास ।
यश - वैभव भी मिले निरन्तर फिर आयें कालिदास और भास॥2॥

7945
सुता इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भयः। सोमा अर्षन्ति विष्णवे॥3॥

माता  ही  पहली  गुरुवानी  है  देव - सदृश  ही  है  महतारी ।
चरैवेति वह सिखलाती है उसकी महिमा अतिशय भारी ॥3॥

7946
तिस्त्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः। हरिरेति कनिक्रदत्॥4॥

शब्द - ब्रह्म  है  वह परमात्मा सब साधक करते साक्षात्कार ।
आस्था हो यदि अन्तर्मन में फिर हो जाती  है तरणी पार॥4॥

7947
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीरृतस्य मातरः। मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्॥5॥

वेद - ऋचा अज्ञान मिटा - कर अन्तर्मन करती है उज्ज्वल ।
साधक परमानन्द पाते  हैं  कर्मानुकूल ही मिलता फल ॥5॥

7948
रायः समुद्रांश्चतुरोSस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्त्रिणः॥6॥

अनन्त - बलों का वह स्वामी है परमेश्वर है कृपा - निधान ।
मेरी  भी  सुधि  लेते  रहना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥6॥
 

1 comment:

  1. प्रभु की कृपा सब पर बरसती रहे...

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