[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7943
प्र सोमासो विपश्चितोSपां न यन्त्यूर्मयः। वनानि महिषा इव॥1॥
वेद - ऋचा आमन्त्रित करती कानों में कुछ - कुछ कहती है ।
जिनका अन्तः - मन पावन है उनको आकर्षित करती है ॥1॥
7944
अभि द्रोणानि बभ्रवः शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तरक्षरन्॥2॥
सद् - विद्या का अविरल प्रसार हो हर मनुज करे अपना विकास ।
यश - वैभव भी मिले निरन्तर फिर आयें कालिदास और भास॥2॥
7945
सुता इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भयः। सोमा अर्षन्ति विष्णवे॥3॥
माता ही पहली गुरुवानी है देव - सदृश ही है महतारी ।
चरैवेति वह सिखलाती है उसकी महिमा अतिशय भारी ॥3॥
7946
तिस्त्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः। हरिरेति कनिक्रदत्॥4॥
शब्द - ब्रह्म है वह परमात्मा सब साधक करते साक्षात्कार ।
आस्था हो यदि अन्तर्मन में फिर हो जाती है तरणी पार॥4॥
7947
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीरृतस्य मातरः। मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्॥5॥
वेद - ऋचा अज्ञान मिटा - कर अन्तर्मन करती है उज्ज्वल ।
साधक परमानन्द पाते हैं कर्मानुकूल ही मिलता फल ॥5॥
7948
रायः समुद्रांश्चतुरोSस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्त्रिणः॥6॥
अनन्त - बलों का वह स्वामी है परमेश्वर है कृपा - निधान ।
मेरी भी सुधि लेते रहना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥6॥
7943
प्र सोमासो विपश्चितोSपां न यन्त्यूर्मयः। वनानि महिषा इव॥1॥
वेद - ऋचा आमन्त्रित करती कानों में कुछ - कुछ कहती है ।
जिनका अन्तः - मन पावन है उनको आकर्षित करती है ॥1॥
7944
अभि द्रोणानि बभ्रवः शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तरक्षरन्॥2॥
सद् - विद्या का अविरल प्रसार हो हर मनुज करे अपना विकास ।
यश - वैभव भी मिले निरन्तर फिर आयें कालिदास और भास॥2॥
7945
सुता इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भयः। सोमा अर्षन्ति विष्णवे॥3॥
माता ही पहली गुरुवानी है देव - सदृश ही है महतारी ।
चरैवेति वह सिखलाती है उसकी महिमा अतिशय भारी ॥3॥
7946
तिस्त्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः। हरिरेति कनिक्रदत्॥4॥
शब्द - ब्रह्म है वह परमात्मा सब साधक करते साक्षात्कार ।
आस्था हो यदि अन्तर्मन में फिर हो जाती है तरणी पार॥4॥
7947
अभि ब्रह्मीरनूषत यह्वीरृतस्य मातरः। मर्मृज्यन्ते दिवः शिशुम्॥5॥
वेद - ऋचा अज्ञान मिटा - कर अन्तर्मन करती है उज्ज्वल ।
साधक परमानन्द पाते हैं कर्मानुकूल ही मिलता फल ॥5॥
7948
रायः समुद्रांश्चतुरोSस्मभ्यं सोम विश्वतः। आ पवस्व सहस्त्रिणः॥6॥
अनन्त - बलों का वह स्वामी है परमेश्वर है कृपा - निधान ।
मेरी भी सुधि लेते रहना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥6॥
प्रभु की कृपा सब पर बरसती रहे...
ReplyDelete