Thursday, 8 May 2014

सूक्त - 59

[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8081
पवस्व गोजिदश्वजिद्विश्वजित्सोम रण्यजित् । प्रजावद्रत्नमा भर॥1॥

हे  प्रभु  यश - वैभव  के  स्वामी  यश - वैभव  का  दे  दो  दान ।
अन्न - धान - फल हमको देना दया - दृष्टि रखना भगवान॥1॥

8082
पवस्वाद्भ्यो अदाभ्यः पवस्वौषधीभ्यः। पवस्व धिषणाभ्यः॥2॥

हे  प्रभु  पूजनीय  परमेश्वर  तुम्हें  नमन  है  बारम्बार ।
तुम अमृत सम औषधि देते रक्षा करते हो हर बार ॥2॥

8083
त्वं सोम पवमानो विश्वानि दुरिता तर । कविः सीद नि बर्हिषि॥3॥

प्रभु  मेरे  अवगुण  हर  लेना  दे  देना  गुण  का  भण्डार ।
खट् - रागों से मुझे बचाना एक तुम्हीं  तो हो आधार ॥3॥

8084
पवमान स्वर्विदो जायमानोSभवो महान् । इन्दो विश्वॉ अभीदसि॥4॥

जो प्रभु की उपासना करते हैं प्रभु रखते हैं उनका ध्यान ।
विज्ञानी अन्वेषण करता बनता है  फिर  देश महान ॥4॥

1 comment:

  1. प्रभु मेरे अवगुण हर लेना दे देना गुण का भण्डार ।
    खट् - रागों से मुझे बचाना एक तुम्हीं तो हो आधार ॥3॥

    करणीय प्रार्थना..

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