[ऋषि- उचथ्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8052
तव द्युक्षः सनद्रयिर्भरद्वाजं नो अन्धसा । सुवानो अर्ष पवित्र आ॥1॥
जब मानव पावन - मन लेकर कोई अभिलाषा करता है ।
तब मनो-कामना पूरी होती सबका ध्यान वही रखता है ॥1॥
8053
तव प्रत्नेभिरध्वभिरव्यो वारे परि प्रियः। सहस्त्रधारो यात्तना॥2॥
वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत यह आनन्द की सरिता है ।
विविध - विधा में यह बहती है कवि की कोमल कविता है ॥2॥
8054
चरुर्न यस्तमीङ्खयेन्दो न दानमीङ्खय । वधैर्वधस्नवीङ्खय॥3॥
हे परमेश्वर राह दिखाना सत् - पथ पर मुझको ले चलना ।
आनन्द - मार्ग है कहॉ किधर है तुम मेरे मन में ही रहना ॥3॥
8055
नि शुष्ममिन्दवेषां पुरुहूत जनानाम् । यो अस्मॉ आदिदेशति॥4॥
चारों बल मुझको देना प्रभु हम सब बन जायें विद्या - वान ।
सत्कर्मों में रुचि हो सबकी हे दीन - बन्धु हे दया - निधान ॥4॥
8056
शतं न इन्द ऊतिभिः सहस्त्रं वा शुचीनाम् । पवस्व मंहयद्रयिः॥5॥
अनन्त - शक्ति के तुम स्वामी हो मुझको भी तुम देना बल ।
कर्म - मार्ग पर चलूँ निरन्तर पा जाऊँ मैं भी शुभ - शुभ फल ॥5॥
8052
तव द्युक्षः सनद्रयिर्भरद्वाजं नो अन्धसा । सुवानो अर्ष पवित्र आ॥1॥
जब मानव पावन - मन लेकर कोई अभिलाषा करता है ।
तब मनो-कामना पूरी होती सबका ध्यान वही रखता है ॥1॥
8053
तव प्रत्नेभिरध्वभिरव्यो वारे परि प्रियः। सहस्त्रधारो यात्तना॥2॥
वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत यह आनन्द की सरिता है ।
विविध - विधा में यह बहती है कवि की कोमल कविता है ॥2॥
8054
चरुर्न यस्तमीङ्खयेन्दो न दानमीङ्खय । वधैर्वधस्नवीङ्खय॥3॥
हे परमेश्वर राह दिखाना सत् - पथ पर मुझको ले चलना ।
आनन्द - मार्ग है कहॉ किधर है तुम मेरे मन में ही रहना ॥3॥
8055
नि शुष्ममिन्दवेषां पुरुहूत जनानाम् । यो अस्मॉ आदिदेशति॥4॥
चारों बल मुझको देना प्रभु हम सब बन जायें विद्या - वान ।
सत्कर्मों में रुचि हो सबकी हे दीन - बन्धु हे दया - निधान ॥4॥
8056
शतं न इन्द ऊतिभिः सहस्त्रं वा शुचीनाम् । पवस्व मंहयद्रयिः॥5॥
अनन्त - शक्ति के तुम स्वामी हो मुझको भी तुम देना बल ।
कर्म - मार्ग पर चलूँ निरन्तर पा जाऊँ मैं भी शुभ - शुभ फल ॥5॥
वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत यह आनन्द की सरिता है ।
ReplyDeleteविविध - विधा में यह बहती है कवि की कोमल कविता है ॥2॥
मनहर पंक्तियाँ..