[ऋषि- निध्रुवि काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8149
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवांसि धारय॥1॥
हे प्रभु परमेश्वर तुम हमको सुख- कर जीवन करो प्रदान ।
विज्ञान-ज्ञान से हो पहचान हे दीन-बन्धु हे दया-निधान॥1॥
8150
इषमूर्जं च पिन्वस इन्द्राय मत्सरिन्तमः । चमूष्वा नि सीदसि॥2॥
सेना में सतत शस्त्र हों शामिल समयानुकूल परिमार्जन हो ।
सामर्थ्य बढे हम बढें निरन्तर अन्वेषण का परिशोधन हो ॥2॥
8151
सुत इन्द्राय विष्णवे सोमःकलशे अक्षरत् । मधुमॉ अस्तु वायवे॥3॥
अन्तर्मन पावन हो सब का सदाचार अति आवश्यक है ।
राज-धर्म के गुण भी देना यह हर घर हेतु सहायक है॥3॥
8152
एते असृग्रमाशवोSति ह्वरांसि बभ्रवः । सोमा ऋतस्य धारया॥4॥
राज - धर्म का ज्ञान हमें दो साहस - धीरज गुण अपनायें ।
हमसे शत्रु खौफ खाए पर हम सत् - पथ पर ही जायें ॥4॥
8153
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । अपघ्नन्तो अराव्णः॥5॥
हे परमेश्वर यह विनती है उत्तम - विचार का देना दान ।
परहित में यह जीवन जाए ऐसा कुछ करना कृपा-निधान॥5॥
8154
सुता अनु स्वमा रजाSभ्यर्षन्ति बभ्रवः । इन्द्रं गच्छन्त इन्दवः॥6॥
जिनका अन्तर्मन पावन है उनको मिलता है आत्म - ज्ञान ।
चिन्तन से सब सम्भव हो जाता बन जाता है मनुज- महान ॥6॥
8155
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः॥7॥
प्रभु तुमसे है यही प्रार्थना सत् - पथ पर तुम ही ले चलना ।
कर्मानुकूल फल तुम देते हो मेरी भी सुधि लेते रहना ॥7॥
8156
अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे॥8॥
अनन्त -शक्ति के तुम स्वामी हो हम सबका तुम रखना ध्यान ।
हम भी समर्थ बन जायें प्रभु-वर कर्म-योग का हो अभियान॥8॥
8157
उत त्या हरितो दश सूरो अयुक्त यातवे । इन्दुरिन्द्र इति ब्रुवन्॥9॥
मन सुमिरन - पथ पर लग जाए ऐसी कोई युक्ति बताओ ।
भव - सागर को पार कर सकें इस लायक तुम हमें बनाओ ॥9॥
8158
परीतो वायवे सुतं गिर इन्द्राय मत्सरम् । अव्यो वारेषु सिञ्चत॥10॥
अज्ञान तिमिर छँट जाये मेरा ज्ञान - योग की गली बताओ ।
आनन्द का अमृत मिल जाए ऐसी कोई डगर बताओ ॥10॥
8159
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम दुष्टरम् । यो दूणाशो वनुष्यता॥11॥
वह अलभ्य धन हमको देना जो विज्ञान - ज्ञान आश्रित हो ।
लूट न ले कोई चोरी न हो वह अमूल्य - धन परमार्थित हो ॥11॥
8160
अभ्यर्ष सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । अभि वाजमुत श्रवः॥12॥
अतुलित - धन के हम स्वामी हों तुम देना सबको धन - धान ।
श्लाघनीय - बल देना भगवन बना रहे यह स्वाभिमान ॥12॥
8161
सोमो देवो न सूर्योSद्रिभिः पवते सुतः । दधानः कलशे रसम्॥13॥
आनन्द - रस हो हर जीवन में यह वसुधा है परिवार हमारा ।
समर्थ रहें हम सब जीवन भर एकमात्र हो तुम्हीं सहारा ॥13॥
8162
एते धामान्यार्या शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तमक्षरन्॥14॥
सदाचार ही श्रेष्ठ बनाता मानव पावन - पथ पा जाता है ।
शुभ- चिन्तन है अति आवश्यक प्रभु पथ पर पहुँचाता है ॥14॥
8163
सुता इन्द्राय वज्रिणे सोमासो दध्याशिरः । पवित्रमत्यक्षरन्॥15॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाला आनन्द - लहर को पाता है ।
सज्जन इसका लाभ उठाता आनन्द- उसे मिल जाता है॥15॥
8164
प्र सोम मधुमत्तमो राये अर्ष पवित्र आ । मदो यो देववीतमः॥16॥
जो उद्योगी परमानन्द का कर पाते हैं अनुसन्धान ।
वह हैं बहुत बडे वैज्ञानिक ऐसे जन हैं विरल महान॥16॥
8165
तमी मृजन्त्यायवो हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥17॥
जो प्रभु का सुमिरन करते हैं परमानन्द वही पाते हैं ।
उनका दोनों लोक सुधरता ज्ञान - देहरी दिखलाते हैं ॥17॥
8166
आ पवस्व हिरण्यवदश्वावत् सोम वीरवत् । वाजं गोमन्तमा भर॥18॥
प्रभु का वैभव भी अनन्त है नहीं कहीं कोई हिसाब है ।
विज्ञान-ज्ञान का अद्भुत बल है फिर भी वह कोरी किताब है॥18॥
8167
परि वाजे न वाजयुमव्यो वारेषु सिञ्चत । इन्द्राय मधुमत्तमम्॥19॥
कर्म - मार्ग पर जो चलते हैं प्रभु उनकी रक्षा करता है ।
लक्ष्य-पूर्ति में साथ निभाता पिता-समान ध्यान रखता है॥19॥
8168
कविं मृजन्ति मर्ज्यं धीभिर्विप्रा अवस्यवः । वृषा कनिक्रदर्षति॥20॥
सत् - पथ पर चलने वाला ही उस प्रभु का दर्शन पाता है ।
अत्यन्त सूक्ष्म है प्रेम - गली हर कोई जिज्ञासा-वश आता है॥20॥
8169
वृषणं धीभिरप्तुरं सोममृतस्य धारया । मती विप्रा: समस्वरन्॥21॥
मनो- कामना पूरी करते सज्जन - सँग उन्हें प्यारा है ।
पावन मन से जो भी मॉगो वह देगा वही सहारा है ॥21॥
8170
पवस्व देवायुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः । वायुमा रोह धर्मणा॥22॥
कर्म-योग का अनुगामी जब उस परमेश्वर को भजता है ।
प्रभु उसको पावन मन देकर उत्तम-गुण प्रदान करता है॥22॥
8171
पवमान नि तोशसे रयिं सोम श्रवाय्यम् । प्रियः समुद्रमा विश॥23॥
परमेश्वर का रूप निराला दुष्टों का जीवन हर लेते हैं ।
पर सज्जन को आश्रय देते उनको अभय - दान देते हैं॥23॥
8172
अपघ्नन् पवसे मृधः क्रतुवित्सोम मत्सरः। नुदस्वादेवयुं जनम्॥24॥
दुष्ट - दलन प्रभु ही करते हैं वे खुद हैं दुष्टों के काल ।
पर उनको सज्जन प्यारा है सन्तों के बन जाते हैं ढाल॥24॥
8173
पवमाना असृक्षत सोमा: शुक्रास इन्दवः । अभि विश्वानि काव्या॥25॥
अनन्त शक्ति का वह स्वामी है वह ही है आलोक - प्रदाता ।
वह ही सबकी रक्षा करता वह ही पिता वही है माता ॥25॥
8174
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः॥26॥
परमेश्वर हमसे यह कहते हैं पराक्रमी - जन आगे आयें ।
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है नेक - कर्म में हाथ बटायें॥26॥
8175
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि॥27॥
हे शूर - वीर तुम सुनो ध्यान से तुम रक्षा का दायित्व निभाओ ।
सबकी रक्षा करो निरन्तर सबका सद्भाव सदा तुम पाओ ॥27॥
8176
पुनानः सोम धारयेन्दो विश्वा अप स्त्रिधः। जहि रक्षांसि सुक्रतो॥28॥
हे धीर-वीर हे शूर - वीर तुम नष्ट करो यह दुराचार ।
सज्जन की है यह पावन धरती वसुधा में हो बस सदाचार॥28॥
8177
अपघ्नन्त्सोम रक्षसोSभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥29॥
जो शूर- वीर हैं सौम्य वही यश- वैभव का भी स्वामी है ।
उत्तम गुण के संग वह रहता ऐश्वर्य उसी का अनुगामी है ॥29॥
8178
अस्मे वसूनि धारय सोम दिव्यानि पार्थिवा । इन्दो विश्वानि वार्या॥30॥
हे शूर-वीर हो देश प्रथम यह जन्म-भूमि भारत माता है ।
गौरव-गान करें हम इसका यह ही ऐश्वर्य - प्रदाता है ॥30॥
8149
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवांसि धारय॥1॥
हे प्रभु परमेश्वर तुम हमको सुख- कर जीवन करो प्रदान ।
विज्ञान-ज्ञान से हो पहचान हे दीन-बन्धु हे दया-निधान॥1॥
8150
इषमूर्जं च पिन्वस इन्द्राय मत्सरिन्तमः । चमूष्वा नि सीदसि॥2॥
सेना में सतत शस्त्र हों शामिल समयानुकूल परिमार्जन हो ।
सामर्थ्य बढे हम बढें निरन्तर अन्वेषण का परिशोधन हो ॥2॥
8151
सुत इन्द्राय विष्णवे सोमःकलशे अक्षरत् । मधुमॉ अस्तु वायवे॥3॥
अन्तर्मन पावन हो सब का सदाचार अति आवश्यक है ।
राज-धर्म के गुण भी देना यह हर घर हेतु सहायक है॥3॥
8152
एते असृग्रमाशवोSति ह्वरांसि बभ्रवः । सोमा ऋतस्य धारया॥4॥
राज - धर्म का ज्ञान हमें दो साहस - धीरज गुण अपनायें ।
हमसे शत्रु खौफ खाए पर हम सत् - पथ पर ही जायें ॥4॥
8153
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । अपघ्नन्तो अराव्णः॥5॥
हे परमेश्वर यह विनती है उत्तम - विचार का देना दान ।
परहित में यह जीवन जाए ऐसा कुछ करना कृपा-निधान॥5॥
8154
सुता अनु स्वमा रजाSभ्यर्षन्ति बभ्रवः । इन्द्रं गच्छन्त इन्दवः॥6॥
जिनका अन्तर्मन पावन है उनको मिलता है आत्म - ज्ञान ।
चिन्तन से सब सम्भव हो जाता बन जाता है मनुज- महान ॥6॥
8155
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः॥7॥
प्रभु तुमसे है यही प्रार्थना सत् - पथ पर तुम ही ले चलना ।
कर्मानुकूल फल तुम देते हो मेरी भी सुधि लेते रहना ॥7॥
8156
अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे॥8॥
अनन्त -शक्ति के तुम स्वामी हो हम सबका तुम रखना ध्यान ।
हम भी समर्थ बन जायें प्रभु-वर कर्म-योग का हो अभियान॥8॥
8157
उत त्या हरितो दश सूरो अयुक्त यातवे । इन्दुरिन्द्र इति ब्रुवन्॥9॥
मन सुमिरन - पथ पर लग जाए ऐसी कोई युक्ति बताओ ।
भव - सागर को पार कर सकें इस लायक तुम हमें बनाओ ॥9॥
8158
परीतो वायवे सुतं गिर इन्द्राय मत्सरम् । अव्यो वारेषु सिञ्चत॥10॥
अज्ञान तिमिर छँट जाये मेरा ज्ञान - योग की गली बताओ ।
आनन्द का अमृत मिल जाए ऐसी कोई डगर बताओ ॥10॥
8159
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम दुष्टरम् । यो दूणाशो वनुष्यता॥11॥
वह अलभ्य धन हमको देना जो विज्ञान - ज्ञान आश्रित हो ।
लूट न ले कोई चोरी न हो वह अमूल्य - धन परमार्थित हो ॥11॥
8160
अभ्यर्ष सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । अभि वाजमुत श्रवः॥12॥
अतुलित - धन के हम स्वामी हों तुम देना सबको धन - धान ।
श्लाघनीय - बल देना भगवन बना रहे यह स्वाभिमान ॥12॥
8161
सोमो देवो न सूर्योSद्रिभिः पवते सुतः । दधानः कलशे रसम्॥13॥
आनन्द - रस हो हर जीवन में यह वसुधा है परिवार हमारा ।
समर्थ रहें हम सब जीवन भर एकमात्र हो तुम्हीं सहारा ॥13॥
8162
एते धामान्यार्या शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तमक्षरन्॥14॥
सदाचार ही श्रेष्ठ बनाता मानव पावन - पथ पा जाता है ।
शुभ- चिन्तन है अति आवश्यक प्रभु पथ पर पहुँचाता है ॥14॥
8163
सुता इन्द्राय वज्रिणे सोमासो दध्याशिरः । पवित्रमत्यक्षरन्॥15॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाला आनन्द - लहर को पाता है ।
सज्जन इसका लाभ उठाता आनन्द- उसे मिल जाता है॥15॥
8164
प्र सोम मधुमत्तमो राये अर्ष पवित्र आ । मदो यो देववीतमः॥16॥
जो उद्योगी परमानन्द का कर पाते हैं अनुसन्धान ।
वह हैं बहुत बडे वैज्ञानिक ऐसे जन हैं विरल महान॥16॥
8165
तमी मृजन्त्यायवो हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥17॥
जो प्रभु का सुमिरन करते हैं परमानन्द वही पाते हैं ।
उनका दोनों लोक सुधरता ज्ञान - देहरी दिखलाते हैं ॥17॥
8166
आ पवस्व हिरण्यवदश्वावत् सोम वीरवत् । वाजं गोमन्तमा भर॥18॥
प्रभु का वैभव भी अनन्त है नहीं कहीं कोई हिसाब है ।
विज्ञान-ज्ञान का अद्भुत बल है फिर भी वह कोरी किताब है॥18॥
8167
परि वाजे न वाजयुमव्यो वारेषु सिञ्चत । इन्द्राय मधुमत्तमम्॥19॥
कर्म - मार्ग पर जो चलते हैं प्रभु उनकी रक्षा करता है ।
लक्ष्य-पूर्ति में साथ निभाता पिता-समान ध्यान रखता है॥19॥
8168
कविं मृजन्ति मर्ज्यं धीभिर्विप्रा अवस्यवः । वृषा कनिक्रदर्षति॥20॥
सत् - पथ पर चलने वाला ही उस प्रभु का दर्शन पाता है ।
अत्यन्त सूक्ष्म है प्रेम - गली हर कोई जिज्ञासा-वश आता है॥20॥
8169
वृषणं धीभिरप्तुरं सोममृतस्य धारया । मती विप्रा: समस्वरन्॥21॥
मनो- कामना पूरी करते सज्जन - सँग उन्हें प्यारा है ।
पावन मन से जो भी मॉगो वह देगा वही सहारा है ॥21॥
8170
पवस्व देवायुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः । वायुमा रोह धर्मणा॥22॥
कर्म-योग का अनुगामी जब उस परमेश्वर को भजता है ।
प्रभु उसको पावन मन देकर उत्तम-गुण प्रदान करता है॥22॥
8171
पवमान नि तोशसे रयिं सोम श्रवाय्यम् । प्रियः समुद्रमा विश॥23॥
परमेश्वर का रूप निराला दुष्टों का जीवन हर लेते हैं ।
पर सज्जन को आश्रय देते उनको अभय - दान देते हैं॥23॥
8172
अपघ्नन् पवसे मृधः क्रतुवित्सोम मत्सरः। नुदस्वादेवयुं जनम्॥24॥
दुष्ट - दलन प्रभु ही करते हैं वे खुद हैं दुष्टों के काल ।
पर उनको सज्जन प्यारा है सन्तों के बन जाते हैं ढाल॥24॥
8173
पवमाना असृक्षत सोमा: शुक्रास इन्दवः । अभि विश्वानि काव्या॥25॥
अनन्त शक्ति का वह स्वामी है वह ही है आलोक - प्रदाता ।
वह ही सबकी रक्षा करता वह ही पिता वही है माता ॥25॥
8174
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः॥26॥
परमेश्वर हमसे यह कहते हैं पराक्रमी - जन आगे आयें ।
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है नेक - कर्म में हाथ बटायें॥26॥
8175
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि॥27॥
हे शूर - वीर तुम सुनो ध्यान से तुम रक्षा का दायित्व निभाओ ।
सबकी रक्षा करो निरन्तर सबका सद्भाव सदा तुम पाओ ॥27॥
8176
पुनानः सोम धारयेन्दो विश्वा अप स्त्रिधः। जहि रक्षांसि सुक्रतो॥28॥
हे धीर-वीर हे शूर - वीर तुम नष्ट करो यह दुराचार ।
सज्जन की है यह पावन धरती वसुधा में हो बस सदाचार॥28॥
8177
अपघ्नन्त्सोम रक्षसोSभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥29॥
जो शूर- वीर हैं सौम्य वही यश- वैभव का भी स्वामी है ।
उत्तम गुण के संग वह रहता ऐश्वर्य उसी का अनुगामी है ॥29॥
8178
अस्मे वसूनि धारय सोम दिव्यानि पार्थिवा । इन्दो विश्वानि वार्या॥30॥
हे शूर-वीर हो देश प्रथम यह जन्म-भूमि भारत माता है ।
गौरव-गान करें हम इसका यह ही ऐश्वर्य - प्रदाता है ॥30॥
सुन्दर जीवन जीने के सूत्र
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ReplyDeleteलूट न ले कोई चोरी न हो वह अमूल्य - धन परमार्थित हो ॥11॥
सुंदर भावपूर्ण प्रार्थना..आभार !