[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8061
अस्य प्रत्नामनु द्युतं शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः। पयः सहस्त्रसामृषिम्॥1॥
विज्ञानी ज्ञान - साधना करता नित - नूतन अन्वेषण करता है ।
वेद - ज्ञान सामर्थ्य बढाता मन के अवगुण को हरता है ॥1॥
8062
अयं सूर्य इवोपदृगयं सरांसि धावति । सप्त प्रवत आ दिवम् ॥2॥
वह परमात्मा खुद प्रकाश है आलोक - किरण उससे बहती है ।
दिया-सदृश है यह आत्मा भी काया को आलोकित करती है॥2॥
8063
अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि । सोमो देवो न सूर्यः॥3॥
सौम्य - सूर्य की तरह बिखरता परमेश्वर जग का प्रेरक है ।
सबको सुख - वैभव देता है हम सबका पालक - पोषक है ॥3॥
8064
परि णो देववीतये वाजॉ अर्षसि गोमतः। पुनान इन्दविन्द्रयुः॥4॥
प्रभु की दया से ही साधक को दिव्य - शक्ति का मिलता दान ।
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो वरद - हस्त रखना भगवान ॥4॥
8061
अस्य प्रत्नामनु द्युतं शुक्रं दुदुह्रे अह्रयः। पयः सहस्त्रसामृषिम्॥1॥
विज्ञानी ज्ञान - साधना करता नित - नूतन अन्वेषण करता है ।
वेद - ज्ञान सामर्थ्य बढाता मन के अवगुण को हरता है ॥1॥
8062
अयं सूर्य इवोपदृगयं सरांसि धावति । सप्त प्रवत आ दिवम् ॥2॥
वह परमात्मा खुद प्रकाश है आलोक - किरण उससे बहती है ।
दिया-सदृश है यह आत्मा भी काया को आलोकित करती है॥2॥
8063
अयं विश्वानि तिष्ठति पुनानो भुवनोपरि । सोमो देवो न सूर्यः॥3॥
सौम्य - सूर्य की तरह बिखरता परमेश्वर जग का प्रेरक है ।
सबको सुख - वैभव देता है हम सबका पालक - पोषक है ॥3॥
8064
परि णो देववीतये वाजॉ अर्षसि गोमतः। पुनान इन्दविन्द्रयुः॥4॥
प्रभु की दया से ही साधक को दिव्य - शक्ति का मिलता दान ।
परमेश्वर तुम ही प्रणम्य हो वरद - हस्त रखना भगवान ॥4॥
वह परमात्मा खुद प्रकाश है आलोक - किरण उससे बहती है ।
ReplyDeleteदिया-सदृश है यह आत्मा भी काया को आलोकित करती है॥2॥
आत्मा का दीपक ऐसे ही प्रज्वलित रहे..